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रविवार, 20 जनवरी 2013

ट्रेन में मस्त चुदाई अजनबी लड़की की


मेरा नाम अजय है और मैं भोपाल से मुम्बई जा रहा था। मेरे आरक्षित बर्थ के सामने वाले बर्थ पर एक खूबसूरत कमसिन लड़की बैठी हुई थी।
रात को ठीक 12 बजे जब ट्रेन के सभी यात्री सोने की तैयारी कर रहे थे, मैं भी अपने बर्थ पर सोने की तैयारी कर रहा था। तभी अचानक मेरी सामने वाली बर्थ से आवाज आई-क्या आपको नींद आ रही है? मैंने कहा-नहीं! तो लड़की ने कहा-तो फिर बात करिये न! ऊपर वाली बर्थ पर लड़की के माँ बाप सो गये थे। फिर मैंने लड़की से पूछा कि आप क्या कर रही हैं? लड़की ने कहा-मैं एमबीबीएस की तैयारी कर रही हूँ।फिर लड़की अपने बर्थ से उठ कर मेरे बर्थ पर आ गई। दिसम्बर माह होने के कारण सर्दी अपने पूरे शबाब पर थी। मैंने उसे अपना कंबल ओढ़ने को कहा। लड़की मेरे साथ कंबल में मेरे से सट के बैठ गई। उसके शरीर की खुशबू मेरे जहन में अजीब सी हलचल पैदा कर रही थी। फिर उसने मेरे पैर पर हाथ रखा और धीरे-धीरे सहलाने लगी। फिर धीरे-धीरे उसके हाथ की हरकत बढ़ने लगी। फिर मैने जिप खोल कर अपना 9" का लन्ड ऊसके हाथ में पकड़ा दिया। लड़की काफी चुदासी लग रही थी। उसने झट से मेरे लन्ड को अपने हाथों में ले कर जोर-जोर से सहलाने लगी। तब मैँने उसे अपने बर्थ पर लिटा लिया, मैँने उसके लिप पर लँऽऽऽम्म्म्बा किस किया तो लड़की के सारे बदन में सिरहन सी दौड़ गई। उसने मुझे अपनी बांहों में कस लिया। मैंने उसकी शर्ट की बटन को खोलना चालू कर दिया, वो कुछ नहीं बोली और इस तरह हो गई कि उसके मक्खन जैसे स्तन मेरे सामने आ गये। मैंने उसके स्तन चूसना चालू कर दिया। वो सीईईईईई कर के मेरे लँड पर टूट पड़ी और मेरे लँड को जो ३.५"मोटाई का है को लालीपाप की तरह चूसने लगी। मैंने उसकी पैंट के हुक ख़ोल कर उसकी पैंटी में हाथ डाल कर उसकी चूत में ऊंगली करना चालू कर दिया। वो सीऽऽ ई कर के पैर फैला के लेट गई। मैंने अपने लँड को उसकी चूत पर रगड़ना चालू कर दिय। वो आह उह उई श श करने लगी। जब मैंने अपने लँड को उसकी चूत में ठेला तो चार ईन्च तक अंदर चला गया। उसके मुँह से अजीब अजीब सी आवाज़ें निकलने लगी और वो अपने चूतड़ हिलाने लगी। मैंने एक धक्का और दिया तो आधे से ज्यादा लँड अंदर चला गया। उसकी आँखोँ से आँसू आ गये, फिर भी बोले जा रही थी- और डालो ! मैंने पूरा लँड उसकी चूत में डाल दिया और ट्रेन के ईँजन की तरह धक्के मारना शुरू कर दिया। थोड़ी देर बाद लड़की झड़ गई। मैंने अपने लँड को चूत से निकाल कर उसके मुंह में दे दिया। वो मेरे लँड को आईसक्रीम की तरह चूसने लगी। मैं धक्के मारने लगा फिर मैं उसके मुँह में झड़ गया। वो मेरी सारी क्रीम को पी गई और मेरे लँड को चाट कर साफ कर दिया। इस तरह मैंने रात में उसको 5 बार चोदा। फिर मेरा स्टेशन आ गया।

बुधवार, 16 जनवरी 2013

क्लास टीचर

मैं 18 साल का था और मेरा उस टाइम 6' का शरीर से लम्बा तगड़ा था।मुझे 1 टीचर मधु पढ़ाती थी। उस की उमर 27 - 28 साल थी पर उसको बच्चा नहीं था। उसका पति सरकारी जॉब में था। और वो काफ़ी समय टूर पर रहता था। मधु का पति बाहर गया हुआ था। और उसको एक नये मकान की जरुरत थी। वो किराये पर रहती थी। हमारे पड़ोस में एक नया मकान बना था। वो काफ़ी खुला और हवादार था। जब मधु ने पूछा तो मैने उस मकान का पता दिया। उसी दिन मधु मेरे साथ घर आयी। और वो मकान देखने मेरी मां के साथ चली गई। मधु को मकान काफ़ी पसंद आया और किराया भी काफ़ी जायज था, सो मधु ने मकान मालिक को अगले महीने की 1 तारीख को आने के लिये कहा और एडवांस किराया दे दिया। अगस्त महीने की 1 तारीख को मधु अपने सामान के साथ उस मकान में शिफ़्ट कर गई। दोस्तों यहां से असली बात शुरु होती है। मधु ने हमारे पड़ोस में आने के बाद मेरी मां से दोस्ती कर ली और मुझे एक्सट्रा पढ़ाई बिना कोई tution fees के करवाने की बात कर ली। बस मेरी मां को क्या चहिये था। मधु ने मुझे घर पर बुलाना शुरु कर दिया और अकेले में पढ़ाने लगी। पहले ही दिन जब मैं उसके घर गया तो देखा कि उसने लूज़ कमीज और लंहगा पहन रखा था। उसने ब्रा नहीं पहनी थी और कमीज का गला भी खुला था। मधु ने मुझे पढ़ाना शुरु किया और बीच-बीच वो अपनी चूचियां अपने हाथ से दबा देती, उसकी बड़ी-बड़ी चूचियों की गोलियां जैसे बाहर आने को हो जाती। मैं उसकी इस हरकत को देख के मस्ती में भर जाता और मन कर रहा था कि मैं ही उसकी चूचियां दबा दूं, पर हिम्मत नहीं हो रही थी। मेरा कुंवारा लंड तन कर सख्त हो गया था। और मेरी पैंट को फ़ाड़ के बाहर निकलने को तैयार था। पर मैं मधु को कुछ कह नहीं पा रहा था। कोई 2 घंटे पढ़ाने के बाद मधु ने मुझे कहा "कमल तुम अब घर जाओ और यहां सोने के लिये अपने माता-पिता से पूछ कर आना"। मैने कहा "अच्छा मैडम"। जब मैं चलने लगा तो मधु ने कहा "कमल तुम रहने दो यहीं पर रुको। मैं ही पूछ आती हूं"। कह कर मधु ने अपना कमीज मेरे सामने ही खोल दिया और बड़बड़ाने लगी "इतना करने के बाद भी कुछ नहीं किया पता नहीं रात को क्या करेगा" फ़िर मधु ने अपनी ब्रा पहनी और मुझे हुक लगाने को कहा।" आआआआआआआआआआअ ह्हह्हह्हह्हह्हह्हह्हह्हह्हह्हह्हह्हह्हह्हह्ह ह्ह आआआऐईईईईइ" हुक लगते हुए मेरे मुंह से निकल ही गया।" कमल अगर तुम मेरी मानोगे तो इससे भी ज्यादा मजा आयेगा। तुम बस यहीं मेरा इन्तजार करो और बुक खोल के बैठ जाओ। मधु ने साड़ी पहनी और मेरे घर चली गई। कोई 30 मिनट के बाद वो वापस आयी। और मेरा पैजामा और कमीज साथ ले आयी।" कमल तेरी मां तो सिर्फ़ पैजामा दे रही थी। बोली कमल रात को पैजामा और बनियान में सोता है। पर मैं शर्ट भी ले आयी। उनको शक नहीं होगा कि मैने क्या किया है" फ़िर मधु ने अपनी साड़ी उतार दी और सिर्फ़ पेटीकोट और ब्लाउज़ में हो गई। मेरा लंड काफ़ी तन गया और मैने मधु को हिम्मत करके कह ही दिया" मैडम 1 बात कहूं-आप जब मेरे सामने कपड़े बदलती हो तो मुझे ऐसा लगता है कि मैं ही आपका आदमी हूं" उसने कहा" कमल तो फ़िर तुम मेरे को औरत की तरह इस्तेमाल करो" फ़िर मैने हिम्मत कर ही ली। और मधु की चूचियां पीछे से पकड़ ली और मेरा 7 इंच का लंड उसकी कमर पर लग रहा था। मैने उसकी गर्दन पर किस किया, मधु सिसकी " ऊऊऊऊऊफ़्फ़फ़्फ़फ़्फ़फ़्फ़फ़्फ़फ़्फ़फ़्फ़फ़्फ़फ़ूऊऊऊऊऊऊऊऊऊ आआआआआआह्हह्हह्हाआआआअ कमल प्लीज जोर से" मैने उसकी चूचियां जोर से दबाई और उसने अपनी कमर का पूरा दबाव मेरे लंड पर डाल दिया। मैने मधु के ब्लाउज़ को ऊपर सरका कर उसकी नंगी चूचियों को दबाया और 1 हाथ उसकी सफ़ाचट चूत पर ले गया। चूत गीली थी मेरा लंड काफ़ी जोर मार रहा था। मधु ने मेरे से अलग हो कर मेरा लंड पैंट से बाहर निकाल लिया "ओईईईईईईइ माआआआआआआअ ये तो गधे का लौड़ा है मेरी चूत का तो बुरा हाल कर देगा" बस फ़िर उसने आनन फ़ानन में मेरा लौड़ा मुंह में ले लिया।क्योंकि अब तक मैने न ही मुठ मारी थी और न ही कभी किसी को चोदा था सो मेरा लंड उस के मुंह में ही झड़ गया 1 जोर की पिचकारी उसके मुंह में गई। मैं सिसक रहा था वो भी पानी पी कर खिलखिला के हसने लगी और अपना वीर्य से भरा मुंह मेरे होंठों पर रगड़ने लगी मेरा लंड आधा हो गया था फ़िर से खड़ा होने लगा।वो बिल्कुल नंगी हो गई और मेरे को भी एक दम नंगा कर लिया। फ़िर मधु मेरे को बेड पर ले गई और मैं उसके गुलाम की तरह से उसका कहना मानने लगा। बेड पर वो मेरे को बूब्स चूसने कही और मेरे लंड पर मुठ मारने लगी 2 ही मिनट में मेरा लंड खड़ा हो गया। मधु ने मेरे को अपनी दोनो टांगे मेरे कंधे पर रखने को कहा और मेरा लंड अपनी गरम चूत में ले लिया। मेरा लंड उस की चूत में गया मेरे को ऐसा लगा कि किसी गरम भट्टी में मेरा लंड घुस गया है। मेरे लंड के अंदर जाते ही वो चिहुंकी आआआआआआआआअह्हह्हह्हह्हह्हह्हह्हाआआआआ। कमल मजा आ रहा है जोर से चोदो प्लीज। मैं उसको चोदने लगा। क्योंकि मैं पहली बार ही चोद रहा था और मेरा लंड काफ़ी टाइट था वो पसीने में भर गई और जोर से सिसकी भरती रही। मेरी एक चुदाई में वो 3 बार झड़ गई और फ़िर मैं झड़ा। मेरे झड़ते ही वो ढीली हो गई और वो लम्बी लम्बी सांसे लेने लगी।इस तरह मैने उसको रात में तीन बार चोदा फ़िर वो मेरे से लिपट कर सो गई।

सीमा का बलात्कार

ये कहानी है, एक खुशहाल परिवार की। जिसमें एक भाई रोहित 21 साल का, बहन सीमा 18 साल की, डैडी श्री सूर्यकान्त और उनकी पत्नी साक्षी हैं। सूर्यकान्त: साक्षी मेरी टाई नहीं मिल रही, कहाँ है? साक्षी: यहीं होगी…. ओह! ये रही, आप भी ना!….रोहित: मम्मी मेरे जूते नहीं दिख रहे! साक्षी : तुम आकर जाने कहाँ रख देते हो? तुम्हारा रोज़ का यही काम होता है, ये लो ! और आज सम्भाल कर रखना! हर रोज़ इसी तरह रोहित कॉलेज़, सीमा स्कूल और मिस्टर सूर्यकान्त अपने ऑफ़िस जाते हैं। यही है रोज़ का इस घर का किस्सा! समय बीत रहा है। एक दिन अचानक किसी का फ़ोन आया कि सीमा को कोई अगवा करके ले गया है। और वो दो लाख रूपए मांग रहा है। पैसे ना देने पर सीमा का क्या हाल हो सकता है। आप सभी जानते हैं। घर पर सभी परेशान थे कि क्या होगा! पुलिस में खबर नहीं कर सकते। क्योंकि अपहरणकर्ता ने मना किया है और लड़की का मामला है। रोहित का दिमाग बहुत तेज़ चलता है, इसलिए उसने अपनी तिगड़म लड़ानी शुरु कर दी। सीमा के बारे में सभी को बहुत फ़िक्र हो रही थी, सूर्यकान्त की तो रातों की नींद भी उड़ चुकी थी, उन्हें दो लाख रूपए इकट्ठे करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया गया था। आज तीन दिन हो चुके थे। लेकिन सीमा का कोई अता-पता नही था। आज रोहित भी घर नहीं आया। उसने फ़ोन करके कहा कि वो अपने दोस्त के घर पर ही रहेगा। घर पर बहुत चिन्ता और परेशानी का माहौल था। अब देखते हैं कि रोहित कहाँ है? रोहित को पता लग चुका है कि सीमा कहाँ है और वो आज उसे छुडाने की कोशिश में है। सीमा को शहर से करीब 50 किलोमीटर दूर एक गाँव में रखा गया है। रोहित अपनी कोशिश में जुटा हुआ अपनी मंजिल के बहुत करीब पहुँच गया था। रोहित ये जान कर हैरान था कि अपहरणकर्ता का जो पता उसे मिला था। उसके आस-पास कोई भी सुरक्षा नहीं थी, बस एक सुनसान सी जगह थी। रोहित ने अपनी जेब में एक खंज़र भी रखा हुआ था। रोहित उस कमरे के पास पहुंचा और कमरे के अन्दर देखने के लिए कोई खिड़की वगैरह तलाशने लगा। क्यूंकि रोहित जानना चाहता था कि अन्दर आदमी कितने हैं? लेकिन अंदर देखते ही रोहित की आँखें फटी की फटी रह गईं, अंदर सीमा किसी लड़के के लण्ड को मुंह में लेकर बड़े ही प्यार से चूस रही थी। रोहित ने लड़के को पहचानने की कोशिश की-अरेऽऽऽऽ! यह तो रोहित का पड़ोसी श्याम है! रोहित को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। वो बस एकटक अन्दर झांक रहा था। श्याम और सीमा दोनों एक ही बिस्तर पर नंगे लेटे हुए थे, श्याम सीमा की चूत में उंगली डाले हुए था, सीमा अपने चूतड़ों को उठा कर श्याम के लण्ड को अपने मुँह में लेकर चूस रही थी। अब श्याम का पानी निकल चुका था। और सीमा बहुत प्यार से उसका रसपान कर रही थी। अब श्याम ने सीमा की चूत को चाटना शुरू किया। वो कभी उस की चूत में ऊँगली डालता और कभी अपनी जीभ डालता। दोनों बहुत मस्त हो रहे थे और रोहित ये सारा नज़ारा अपनी आँखों से देख रहा था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी छोटी बहन ऐसा कुछ अपनी मर्ज़ी से कर रही होगी। देखते ही देखते श्याम का लण्ड एक बार फिर से तन कर खड़ा हो गया। सीमा ने कहा- श्याम तुम 3 दिन से सिर्फ मेरी चूत का मज़ा ले रहे हो, लेकिन एक बार भी तुमने मेरी गाण्ड की सैर नहीं की। प्लीज़, आज मेरी गाण्ड मारो ताकि मुझे भी तो पता चले कि गाण्ड मरवाने में कितना मज़ा आता है। इतना बोलते ही श्याम ने सीमा को घोड़ी बना दिया और सीमा की गाण्ड पर हल्का सा थूक लगा कर उसकी गाण्ड मारने की तैयारी करने लगा। गाण्ड का छेद छोटा होने के कारण लण्ड अंदर नहीं जा पा रहा था। बहुत कोशिश के बाद लण्ड अंदर चला गया। सीमा दर्द और मज़े से कराह रही थी, श्याम उसे भरपूर मज़ा दे रहा था। कमरे से सिस्कारियों की आवाजें साफ़ सुनाई दे रही थी। सीमा बार-बार चुदने को बेताब नज़र आ रही थी। रोहित की समझ में अब सब कुछ आने लगा था। गाण्ड चोदने के बाद एक बार फिर से श्याम ने सीमा के मोम्मे चूसने शुरू किये, सीमा ने कहा- चूसो मेरी जान! इन मोम्मों का सारा रस चूस लो, अब हमारे पास 4 दिन और हैं, इन 4 दिनों में जी भर के मेरे मोम्मे चूसो, मेरी चूत का भोंसड़ा बना दो और मेरी गाण्ड को फ़ाड़ डालो। इसी बीच रोहित अन्दर आ गया, सीमा उसे देखते ही खड़ी हो गई, शायद सीमा समझ चुकी थी कि रोहित को सारी हकीक़त का पता चल गया, सीमा और श्याम ने रोहित के पैर पकड़ लिए और घर पर कुछ भी ना बताने की अर्ज़ करने लगे। सीमा ने रोहित को बताया कि वो श्याम को बहुत पसंद करती है। लेकिन मॉम और डैड को बताने से डरती है, श्याम को जब 2 लाख रुपये मिल जाते तो वो दोनों भाग कर शादी करने वाले थे। रोहित ने उनकी बात सुनी और कहा- मैं तुम दोनों की शादी करवा दूंगा। लेकिन सीमा को मेरे साथ घर वापिस चलना होगा, बाकी सब मैं देख लूँगा। सीमा ने अपने कपड़े पहने और रोहित के साथ घर की ओर चल पड़ी। रास्ते में रोहित ने गाड़ी रोक दी, सीमा समझ नहीं पा रही थी कि क्या होने वाला है। रोहित ने सीमा को गाड़ी से बाहर निकाला और एक ज़ोरदार तमाचा उसके गाल पर रसीद कर दिया। सीमा ने पूछा तो रोहित ने जवाब दिया- मेरी बहना श्याम ने तुमसे ज़बरदस्ती की और तुम्हारा बलात्कार भी किया है। और ज़बरदस्ती करने वाला तमाचा बड़ी जोर से मारता है, तुम बाकी सभी जगह से ठीक लग रही हो, किसी भी तरह से ऐसा नहीं लगता कि तुम्हारा अपहरण और बलात्कार हुआ है। 2-3 ज़ोरदार तमाचे रसीद करने के बाद दोनों घर की ओर चल दिए। घर पर अपनी बेटी को वापस आया हुआ देखकर सबके चेहरों पर ख़ुशी छा गई, सभी रोहित की तारीफ़ कर रहे थे, सीमा ने मॉम और डैड को बताया कि अपहरणकर्ता बहुत ही खतरनाक था, रोहित भैया ने जान पर खेल कर मुझे उसके चंगुल से आज़ाद कराया। सीमा ने मम्मी को ये भी बताया कि अपहरणकर्ता 3 दिन तक लगातार उसका बलात्कार करता रहा! सीमा की यह बात सुनकर मॉम के होश उड़ गए, सभी कहने लगे कि अब सीमा की शादी कैसे हो पायेगी। रोहित ने बात को संभाला और कहा कि सीमा के लिए कोई अच्छा लड़का मैं देख दूंगा, आप बस सीमा का ख्याल रखो, अभी सीमा को गहरा सदमा लगा है, क्या जाने सीमा ने 3 दिन कितनी परेशानी में काटे हैं! थोड़े दिन बाद ही रोहित ने सीमा और श्याम की शादी की बात घर पर कर दी, दोनों परिवार राज़ी हो गए और सीमा से श्याम की शादी हो गई। आजकल दोनों बेहद खुश हैं।

सोमवार, 14 जनवरी 2013

टेनिस टूरनामेन्ट और अटैच्ड बाथरूम

उस दिन बस में वरुण के मुंह से इतनी सीरियस बातें सुनने के बाद मैं उससे अपने दिल की बात कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। और मैंने सोच लिया कि अपने मन की बात उसे कभी नहीं बताऊंगी, क्योंकि मैं वरुण को किसी भी रूप में खोना नहीं चाहती थी। उसके साथ के लिए अगर मुझे उसकी दोस्ती निभानी पड़ती है तो वही सही। इसीलिए मैंने अपने दिल के अरमान अपने होठों तक कभी ना पहुंचने देने का तय किया, पर नज़रें हमेशा दिल का साथ देती हैं। दिमाग और जुबान चाहे कितनी भी कोशिश करके खुद को जताने से रोक लें। पर दिल की बात कहने के लिए सिर्फ़ एक नज़र ही काफ़ी होती है। उस दिन शाम को हम होटल पहुंचे। जयपुर वाली ब्रांच ने दो कमरे बुक करा रखे थे, एक बिना ऐसी डबल बेडरूम दो विद्यार्थियों के लिए और एक ऐसी सिंगल बेडरूम हमारे अध्यापक के लिए।
सर ने वरुण से कहा- मैं बेड शिफ़्ट करवा देता हूं, तुम मेरे कमरे में मेरे साथ सो जाना और कृति वहां आराम से सो जाएगी। सर को मुझ पर और वरुण पर भरोसा नहीं था और हो भी क्यों? कच्ची उमर में ही ऐसी गलतियां होती हैं, पर वरुण ने सर को भरोसा दिलाते हुए कहा,"आप जैसा सोच रहे हैं, वैसा कभी नहीं होगा, मुझे अपनी मर्यादा और समाज के बंधनों का पूरा ख्याल है, मुझे आपके साथ सोने में कोई दिक्कत नहीं है
। अगर आपका कमरा भी बिना ऐसी हो तो। मुझे ऐसी से अलर्ज़ी है, ऐसी की हवा में मेरे सर में तेज़ दर्द हो जाता है।" उसकी वाजिब परेशानी सुनकर सर मान गए और सर और हम अपने-अपने बैग लेकर अपने कमरे में चले गए। सर के कमरे का तो पता नहीं पर हमारा कमरा काफ़ी अच्छा था। वहां कमरे के बीचों बीच दो बिस्तर लगे थे। दोनो के बीच का फ़ासला करीबन चार फ़ीट रहा होगा। जिसपे क्रीम कलर की बेडशीट थी। उसपे एक ओढ़ने के लिए कम्बल और एक चादर थी। अटैच्ड बाथरूम था। कमरे में घुसते ही सबसे पहले सामने की तरफ़ एक खिड़की थी, जिसके उस तरफ़ एक खूबसूरत बागीचा था। उस खिड़की पर जाली वाले परदे लगे थे। और दरवाजा सरकाने वाला था। वहीँ खिड़की के बायीं तरफ़ एक टेबल रखी थी। जिस पर एक रूम सर्विस के लिए फोन, इंटर कॉम नम्बर की लिस्ट, एक पानी का जग और दो गिलास पड़े थे। टेबल के ठीक बायीं तरफ़ कुछ दूरी पे एक टेबल और थी जिस पर टीवी रखा था (पर उसपे सिर्फ़ न्यूज़ चैनल ही आते थे )। टीवी की टेबल के निचले हिस्से में एक कप बोर्ड था, उसमें उस दिन का न्यूज़ पेपर था। हिन्दी और इंग्लिश दोनों और एक स्पोर्ट्स मैगजीन थी। टीवी से दोनों बिस्तर की दूरी एक बराबर थी। दोनों बिस्तर के बीच में एक और साइड टेबल रखी थी। जिसपे एक लैंप रखा था जिसके दो स्विच कनेक्शन दोनों बिस्तर की तरफ़ थे। वरुण मेरे से आगे चल रहा था इसीलिए कमरे में भी पहले वोही घुसा था। और उसने घुसने के साथ ही खिड़की के पास वाले बिस्तर पर अपना बैग पटक दिया और राक्केट पास वाली मेज़ पर रख दिया। मेरे पास और कोई चोइस न थी इसीलिए मैंने अपना सामान दूसरे बिस्तर पर रख दिया। और बाथरूम देखने चली गई। बाथरूम कमरे के मुकाबले बेहद सुंदर था। व्हाइट टाईल्स, व्हाइट कमोड, व्हाइट वाश बेसिन, सुंदर सजावटी शीशा। के साथ सभी टोंटियां सिल्वर कलर की थी। वहाँ हस्त फव्वारा भी था और सीलिंग फव्वारा भी, सलैब पर दो व्हाइट टोवेल्स रखे थे। साथ में साबुन, शैंपू, कंघा। खैर मैं वापिस कमरे में आई। वरुण ने कमेन्ट किया। अन्दर जाके सो गई थी क्या। इत्ती देर लगा दी। कभी किसी होटल में नहीं गई हो क्या। ऐसे देख रही हो जैसे कभी देखा न हो। मैंने उसे कहा। तुम्हे देखूं तो तुम्हे दिक्कत है, होटल को देखूं तो तुम्हे दिक्कत है। मतलब अब मुझे सब काम तुम्हारे हिसाब से करने होंगे। इसपे उसका मुंह सड़ गया। और वो अपने बैग से चेंज करने के लिए कपड़े निकलने लगा। कपड़े निकलने के बाद उसने बाथरूम में जाकर कपड़े बदल लिए। और उसके बाद मैंने भी जाकर कपड़े बदल लिए। हम दोनों ने अपने-अपने बैग अपने पलंग के नीचे घुसा दिए!! वो खिड़की से बाहर का नज़ारा देखने लगा। बगीचे में बहुत सरे पेड़ थे। खूब सारे फूल और उन पर मंडराते भँवरे और तितलियाँ पर मेरे भँवरे का मूड ऑफ़ था। वो अपने फूल से नाराज़ था!!! मैंने टीवी के नीचे से अखबार उठाया और पलंग पे बैठ के पढने लगी। थोड़ी देर बाद फोन की घंटी बजी। वरुण फोन के पास था। इसीलिए उसीने फोन उठाया। सर का फोन था वो चाए, नाश्ता लेने के लिए हमें होटल के वेटिंग एरिया में बुला रहे थे। फोन रखते ही उसने कहा- चलो! मैंने कहा - कहाँ? तो वरुण कहने लगा-अब आई हो तो सोच रहा हूँ तुम्हे थोड़ा आस-पास घुमा लाऊ!!! मैंने कहा सच कहता" इतनी खुश मत हो। वो सर नीचे बुला रे हैं चलोये वरुण की पुरानी आदत थी। दिल में सपने जगा के तोड़ देना। पहले भी उसने ऐसा मेरे साथ कई बार किया था। मैंने थके हुए भाव से कहा चलो। और हम नीचे पहुंचे सर पहले ही तीन चाय का आर्डर दे चुके थे। सर ने पूछा की कमरे में कोई दिकत तो नहीं है। हम दोनों ने एक ही स्वर में कहा, हाँ। सर ने फ़िर पूछा क्या दिक्कत है। हम दोनों ने एक दूसरे की तरफ़ इशारा करते हुए कहा। सर हँसने लगे। कहते अभी से लड़ रहे हो साथ में खेलोगे कैसे। हम दोनों एक दूसरे की तरफ़ देखने लगे। और साथ-साथ बोले। हम और साथ में। ना ह। सर फ़िर से मुस्कुरा दिए। तब तक चाए आ गई और कुछ बढ़िया से पकोड़े भी। मुझे पकोड़े बेहद पसंद हैं और तब मैंने जाना कि वरुण को भी पकोड़े बहुत पसंद हैं। चाय पीने के बाद सर ने हमें बताया कि चूँकि अलग-अलग शहरों से स्कूल के बच्चे आए हुए हैं। इसीलिए उन सभी के डिनर का इन्तेजाम स्कूल मैनेजमेंट ने ही किया है। जिस से बच्चे आपस में घुल मिल सकें और एक दूसरे को जन सकें। जिससे उनमें खेल भावना जागृत हो। हम दोनों ह्म्म्म स्वर निकला। चाय पीने के बाद सर ने मुझसे पूछा कि अगर तुम प्रक्टिस करना चाहती हो तो में तुम्हे ले चलता हूँ। साथ में दोनों मिलके प्रक्टिस कर लेना। वहां और बच्चे भी होंगे। और तुम्हारी ट्यूनिंग भी सेट हो जायेगी। मैंने सर से कहा सर अब तो आ गई हूँ। न भी चाहूँ तो भी खेलना ही पड़ेगा। अब जो होगा देखा जाएगा। ये तो आपको मुझे लाने से पहले सोचना चाहिए था। सर कहते तुम नहीं जाना चाहती वो दूसरी बात है। चलो तुम दोनों जा के रेस्ट करो। थक गए होंगे लंबे सफर में। वरुण उठने लगा। मैंने सर से कहा, सर इसे समझा लो। जब देखो मुंह सड़ाये रखता है। अब यहाँ कोई और है भी तो नहीं जिससे मैं बात कर सकूँ। सर कहते वरुण इसका ख्याल रखो और हाँ जो कहती है सुन लिया करो। कम से कम सिर्फ़ कहती ही है न। बीवी की तरह बेलन थोड़े ही मारती है। सर मुस्कुराते हुए बोले। इसके जवाब मैं वरुण बोला-सर हम तो बेलन खाने को भी तैयार हैं पर मरने वाली तो आये। और हंस पड़ा। फ़िर हम दोनों अपने कमरे की तरफ़ चले गए। जा ही रहे थे कि सर ने पीछे से वरुण को आवाज लगाई" कोई तकलीफ हो तो, मुझे इंटर कॉम से कॉल कर लेना। और हाँ तुम्हे याद है ना मैंने क्या कहा थावरुण ने उन्हें आश्वस्त करते हुए-हाँ मैं सर हिलाया। हमारे कमरे में आते ही वरुण भड़कते हुए बोला। कम से काम मोका देख के तो बोल लिया करो की क्या बोल रही हो। क्या जरूरत थी ये कहने की सर से। ये हम दोनों के बीच की बात है। ओरों को हमारे बीच मैं क्यूँ लाती हो। मुझे अच्छा लगा कि उसने मुझे डांट लगायी। और हम दोनों के झगडे को अपनी पर्सनल बात मानी। और सार्वजनिक करने से मना किया। मैंने उससे कहा-अगर यही बात पहले आपके होठों से फूट पड़ती तो मुझे गैरों से आपको सिले हुए होंठो को खुलवाना ना पड़ता। बस इतना कहने की देर थी उसने कहा- कृति यू आर टू मच, यू आर जस्ट इम्पोस्सिब्ल। तुम्हारे साथ रहना तो दूर, बात करना ही बेकार है। उसके बात ख़तम होने से पहले ही मैंने उसे कहा- सो यू डू। (जाने क्यूँ हम दोनों के दिल में एक दूसरे के लिए बेइन्तहां प्यार होते हुए भी हमारा ज्यादातर वक्त झगडों और लडाइयों में गुजरता थाये सब सुनने के बाद वो बिस्तर पर खिड़की की ओर करवट लेके सो गया। ठीक दो घंटे बाद दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी। मैंने खोलने से पहले अंदर से पूछा। वो सर थे। मैंने दरवाजा खोला। और सर अंदर आये मैंने सर को बैठने के लिए कुर्सी दी। सर वरुण की तरफ़ देख के बोले। इसे क्या हुआ। मैंने कहा सर, इसे कुछ हो भी नहीं सकता। कुम्भकरण की इस छटी पुश्त को कहाँ से उठा के लाये हो। जब से आया है सो ही रहा है। पिछले दो घंटे से देख रही हूँ। इस मनहूस टीवी पे भी तो न्यूज़ के अलावा कुछ और नहीं आता। और फ़िर इन्सान अखबार कितनी बार पढ लेगा। सर ने कहा तुम इतना ही बोरे हो रही हो तो मेरे साथ चलो। मैं डिनर के लिए स्कूल कम्पाउंड में जा रहा हूँ। (मुझे सर से ज्यादा वरुण पे भरोसा था। इसीलिए मैंने जाने से मना कर दिया) मैंने कहा- नहीं सर, मुझे भूख नहीं है, शाम को पकोड़े कुछ ज्यादा ही हो गए थे। अगर पेट ख़राब हो गया तो सुबह खेलना मुश्किल हो जाएगा। और वैसे भी मैं भी सोने की ही तैयारी कर रही थी। सर कहते- ठीक है जैसा तुम ठीक समझो पर हाँ, कल सुबह 8 बजे नीचे मुख्य हॉल में पहुँच जाना। 9 बजे तुम दोनों का मैच है। चंडीगढ़ के साथ। सर ने मुझे गुड नाईट किया। और सर के जाने के बाद में अपने बिस्तर पे लैंप जला के अपना नोवेल पढने लगी। पर थोड़ी-थोड़ी देर बाद मुझे उसे देखने की इच्छा होती। 

जाने मुझे क्या हो रहा था .... वो इतना पास होते भी मुझे ख़ुद से दूर जाता हुआ महसूस हो रहा था .. पर मैं उसे चाहकर भी रोक नहीं पा रही थी ..आँखों में उसे देखने की प्यास थी की ख़तम होने का नाम नहीं ले रही थी .. रात के ११ बज चुके थे .. और मैं सोने की नाकाम कोशिश कर रही थी .. परेशां थी .. ख़ुद से या उस से पता नहीं ..!!
बिस्तर पर उठ के बैठी ..तो देखा कि .. खिड़की से आती चाँद कि चंचल चांदनी परदे से छन छन के उसके चेहरे पे पड़ रही है .. उसके रेशमी धागों से बाल उसकी आँखों पे थे .. मैंने खिड़की के पास पड़ी कुर्सी उठाई और उसके चेहरे के ठीक आगे कुर्सी लगा के बैठे बैठे उसे निहारने लगी ..कुछ भी कहो .. उसे जितना देखती थी .. उसे और देखने कि इच्छा होती थी .. मैं उसके मोह जाल मैं फंसती जा रही थी. उसकी दांई हथेली उसके दांए गाल के नीचे ऐसे लग रही थी जैसे पत्ते पर ओस की पहली बूंद होती है…इतनी सौम्य कि बस देखते रहने का मन कर रहा था और वो इतने भोलेपन से सो रहा था जैसे बच्चा अपनी मां की गोद में सिर रख के सोता है…दुनिया से बेखबर, एकदम निश्चिन्त होके।
उसका बायां हाथ उसके दाएं हाथ के नीचे रखा था और उसकी टांगें सुकड़ी हुई थीं… उसे पंखे की हवा में भी ठण्ड लग रही थी शायद ! मैंने उसे अपनी चादर औढा दी।
उसके रेशम से बाल कभी उसके माथे को चूमते तो कभी उसकी आंखों को हल्के से सहला के चले जाते, मानो उसकी आंखों में सपने भर रहे हों !!




यूं ही देखते देखतेवक्त गुज़र गया, सुबह के चार बज गए, पता ही नहीं चला…!!! इस से पहले वो जागता, मैंने कुर्सी वापिस उसी जगह रख दी जहां पड़ी थी और खिड़की के पास जा के खड़ी हो गई क्योंकि नींद तो मुझे आने वाली थी नहीं… और फ़िर आए भी क्यूं… मैं अपनी जिन्दगी के कुछ यादगार लम्हें गुजार रही थी जिन्हें शायद ही मैं कभी भूल पाऊंगी…!!!
धीरे धीरे रात की कालिमा को भोर के उज़ियारे ने धो दिया। आसमान में चिड़ियां गश्त लगाने लगी थी, पन्छी हर तरफ़ गाने लगे थे, मानो सभी को उठने का संदेश दे रहे हों… और सबको शुभ-प्रभात कह रहे हो ! तकरीबन साढे पांच बजे वो आंखें मलता हुआ उठा- अरे तुम तो काफ़ी जल्दी उठ गई… मुझे लगा कि अब तक तुम सो रही होगी !
तो मैंने कहा,"कुछ मूर्ख लोग होते हैं जो वक्त को इस तरह सो के बरबाद कर देते हैं पर मैं उन में से नहीं हूं…!!!
कहता- तुम सोई नहीं क्या…
मैंने आश्चर्यचकित होते हुए कहा- हैं…???
वो फ़िर बोला- तुम्हारी आंखें क्यों सूजी हुई हैं, रो रही थी क्या?!?!
मैंने कहा- आंसू पौंछने वाला अगर कोई होता तो शायद जरूर रोती… सहारा देने वाला होता तो शायद ठोकर खाकर जरूर गिरती… कोई हाथ थामने वाला होता तो शायद जरूर बहकती… पर अफ़सोस ऐसा कोई नहीं है…!!!
वो आंखें झुका के सब सुन ध्यान से रहा था.. खड़े होके मेरे पास आया..कन्धे पे हाथ रखके उसने मुझ से पूछा- क्या बात है?..सुबह सुबह शेर-ओ-शायरी ! क्या हुआ मेरी स्वीटी को…इतनी सेन्टी क्यूं हो?? किसी की याद आ गई क्या???
मैंने उसे कहा- याद उसकी आती है जो दूर हो... कोई है जो सब कुछ देखके भी आंखें बंद कर लेता है, सुन कर भी अनसुना कर देता है। वो हर वक्त मेरे पास होता है...पर मेरे साथ नहीं होता... पर पता नहीं मैं भी उसके इतने ही करीब हूँ या नहीं ...
उसने मुझे दिलासा देते हुए कहा .. कोई पागल ही होगा जो तुमसे प्यार करना नहीं चाहेगा .. तुम उसे कह के तो देखो शायद कुछ हो जाए ..
मैंने कहा .. उसे कहने से कुछ फायदा नहीं उस बेदर्द में दिल ही नहीं है .. दिल होता तो शायद अब तक समझ जाता ... (उसे अब तक पता नहीं चला था कि मैं उसी की बात कर रही थी .. इडियट कहीं का )




उसने कहा .. और ऐसा भी तो हो सकता है कि वो सब कुछ समझता हो, जानता हो.. वो सब कुछ तुम्हारी आँखों में पढ़ लेता हो, पर शायद तुम्हारे मुँह से सुनना चाहता हो .. शायद उसे लगता हो कि अगर वो कहेगा तो कहीं तुम उसे मना न कर दो .. कहीं उसे ये डर न हो कि उसकी इगो हर्ट हो जायेगी ... उसके शब्द सुन के मेरी आंखें भर आई .. क्यूंकि बस में जिसने मेरे दिल को इतनी चोट पहुंचाई .. क्या ये वरुण वही इन्सान था जो तब मुझसे इतने प्यार से बात कर रहा था ...
मैं उसे तब भी कुछ नहीं कह सकी. . बस उसकी आँखों में झांकती रही और कब आखों से आंसू छलक गए पता भी नहीं चला .. उसने कंधे से हाथ हटा के मेरे आंसू पौंछे और मेरे सर पर अपना हाथ रख दिया .. उसने कहा .. थोड़े आंसू बचा लो .. तुम लड़कियों के पास एक यही तो हथियार है ... उसे बर्बाद मत ।करो .. और हाँ थोड़े इसीलिए बचा के रखा करो क्यूंकि ये अनमोल हैं. और मैं तुम्हे रोते हुए नहीं देख सकता ...
मुझे चुप कराने के बाद उसने कहा मैं मोर्निंग वाक् पे जा रहा हूँ, चलोगी ?.. थोडी फ्रेश भी हो जोगी .. और थोड़ा वार्म अप भी कर लोगी .. लेग्स की मस्सल्स भी खुल जाएँगी .. और तुम्हे खेलते वक्त दिक्कत भी नहीं होगी ..मुझे उसकी बात ठीक लगी और मैं उसके साथ ट्रैक सुइट पहन कर मोर्निंग वाक् पे चली गई।
वापिस आकर हम दोनों फ्रेश हुए अपने स्पोर्ट्स ड्रेस पहने और अपने अपने बल्ले ले के नीचे हॉल मैं चले गए .. जहाँ सर नाश्ता कर रहे थे ...हमारे पहुँचते ही सर ने कहा- अरे आ गए तुम दोनों .. वैरी गुड ! वरुण ने व्हाइट शोर्ट्स और टी -शर्ट पहनी थी .. और सर पे हेयर-बैंड था ताकि बाल खेलते वक्त उसकी आखों में ना आयें ... मैंने चोटी बनाई थी .. एक व्हाइट टी -शर्ट और व्हाइट मिनी स्कर्ट पहनी थी ..हाँ इस बार वरुण ने मेरी स्कर्ट को लेकर कोई आपत्ति नहीं जताई .. क्यूंकि उसे मालूम था टेनिस में कभी कभी एक और से दूसरी और तेज़ और बड़े क़दमों से भागना पड़ता है .. जो कि लम्बी स्कर्ट में नहीं किया जा सकता ..
हम दोनों तैयार थे। नाश्ते में हमने एक एक ग्लास ओरंज़ जूस और कुछ फल लिए ..और पहुँच गए गेम वेन्यु पर ..९ बजे खेल शुरू होना था .. हमारी प्रतिद्वंदी टीम चंडीगढ़ के स्कूल की थी। लड़की सुंदर थी (ज्यादातर सरदारनियाँ सुंदर होती हैं ) उसके नैन नक्श एक दम टिपिकल सरदारनियों जैसे थे और लड़का सरदार था। हमारा खेल शुरू हुआ, हम दोनों को शुरू में तालमेल की वजह से कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ा, पर ब्रेक में वरुण ने मुझे उसके साथ खेलने के कुछ टिप्स सिखाये और नेक्स्ट हाफ में हमने बहुत अच्छा किया और हम मैच जीत गए। १२ बजे खेल ख़तम हुआ। ये हमारा क्वाटर फाईनल था।




इसके बाद हमें सेमी फाइनल में जयपुर के स्कूल की टीम के साथ खेलना था और वो मैच उसी दिन २ बजे होना था। मुकाबला कड़ा था। खेल शुरू होने से पहले हम दोनों ने एक दूसरे को बेस्ट ऑफ़ लक कहा और कड़ी मेहनत के बाद हम वो गेम ६ -४, ५ -४, ६ -५ से जीत गए। गेम ४.३० बजे ख़तम हुआ। निकलते समय मैंने दूसरी टीम की लड़की से हाथ मिलाया और वरुण ने लड़के से .. उसके बाद वरुण ने लड़की से मिलाया और मैंने लड़के से।
सामने वाली टीम के लड़के ने मुझसे हाथ मिलते वक्त कहा कि मैं ये मैच जीत जाता अगर तुम न खेल रही होती, मेरा सारा ध्यान तो तुम्हारी टांगों पर था, सच कहूँ युअर लेग्स आर सो स्टन्निंग .. ये सुनने के बाद मैंने सीधा वरुण के चेहरे पे देखा, उसने बात सुनी थी पर उसने कुछ प्रतिक्रिया नहीं दिखाई, हाथ छुड़ाने पर मुझे अपने हाथ मैं एक पर्ची मिली, जो हाथ मिलाते वक्त उस लड़के ने मेरे हाथ पे रखी थी, उसपे लिखा था .. "७ बजे शाम को इसी मैदान की पार्किंग में मिलो.!!!!"
हम सर के साथ वापिस होटल आ गए। उस वक्त ५ .३० बजे थे। सर हमारी बहुत तारीफ़ कर रहे थे, पर मैं अपने मन में यही सोच रही थी कि अभी डेड़ घंटा बाकी है। हम दोनों कमरे में गए, और मैंने वो स्लिप मेज़ पे रख दी। पहले वरुण फ्रेश हो के बाहर आया, और मैं फ्रेश होने बाथ रूम में चली गई। मैं नहा ही रही थी, मुझे लगा कि कमरे का दरवाजा खुला है। मैंने वरुण को अंदर से ही आवाज़ लगाई पर कोई जवाब नहीं मिला। जल्दी जल्दी में मैंने नहाना धोना ख़तम किया और कपड़े पहन के बाहर आई। ६.४५ हुए थे, मुझे पता था वरुण कहाँ गया है।
मैं भी उसके पीछे पीछे चल दी। वहां पहुँच के मैंने सिर्फ़ इतना देखा कि वरुण पार्किंग से बाहर आ रहा है, मैं छुप गई और उसके जाने के बाद मैं पार्किंग में गई। वहां वो लड़का एक गाड़ी के पीछे जख्मी पड़ा था। वरुण ने उसे बहुत मारा था, मेरे पहुँचते ही वो रो रो के सॉरी मैडम, सॉरी दीदी कहने लगा और तो और पाँव छूने लगा।
उसने मुझसे कराहती हुई आवाज़ में कहा- वो आपका भाई है क्या? मैंने कहा- नहीं! उसने फ़िर से पूछा- प्रेमी ??? मैंने कहा नहीं ! हम दोनों का रिश्ता इन सब रिश्तों से ऊपर है .. वो तुम नहीं समझोगे .. आज जो तुमने गलती की .. दोबारा किसी के साथ मत करना .. ये कह के मैं वहां से निकल गई .. निकलते समय मैंने ...ग्राउंड की अथॉरिटी को इन्फोर्म किया कि पार्किंग मैं कोई लड़का जख्मी पड़ा है और उसे फर्स्ट ऐड की जरूरत है।
उसके बाद मैं होटल पहुँची, करीबन ७ .३० बजे। उसने आते ही पूछा- कहाँ गई थी? मैंने कहा- जहाँ तुम गए थे! कहता- मैं तो कहीं नहीं गया, यहीं था, थोड़ी देर के लिए सर के कमरे में गया था, लौटा तो देखा तुम कमरे में नहीं हो।
मैंने कहा," जब तुम्हे झूठ बोलना आता नहीं तो बोलते क्यूँ हो ... क्यूँ मारा तुमने उस लड़के को ..." वरुण कहने लगा .."किस लड़के को .. तुम किसकी बात कर रही हो .. "
मैं चुप हो गई मैं उसके जख्मों को कुरेदना नहीं चाहती थी .. और न ही दोबारा झगड़ा करना चाहती थी .. हम दोनों बहुत थक गए थे .. और आज भी कल ही की तरह बिना खाए पिए सो गए .. और उस दिन मुझे चैन की नींद आई .. क्यूंकि मैं आश्वस्त हो चुकी थी की वरुण के दिल में भी मेरे लिए कुछ न कुछ तो जरूर है ...
सुबह १० बजे हमारा फाइनल था मुंबई टीम के साथ .. मैं जल्दी उठ गई .. आज का दिन मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण था .. इसलिए नहा धोकर पूजा की .. तब तक वरुण भी उठ गया .. रोज़ की तरह आज फ़िर से वो मोर्निंग वाक् पे गया ..जाने से पहले उसने मुझसे पूछा ..पर मैंने ही मना कर दिया .. क्यूंकि कमरे पर और भी काम थे करने को .. पैकिंग करनी थी .. चेक आउट करना था ...




जब वो मोर्निंग वाक् से आया तब तक मैं दोनो बिस्तर ठीक कर चुकी थी, हम दोनों के बैग पैक कर चुकी थी उसके पहनने वाले कपड़े निकाल के रख दिए थे (बिल्कुल बीवियों की तरह ) आने के बाद उसने पूछा- अरे! ये कमरा इतना व्यवस्थित कैसे हो गया? मैंने कहा- मैंने किया और कौन करेगा? कहता- तुम कबसे इस होटल की सफाई कर्मचारी बन गई .... और यह कहके हंसने लगा ... मैंने भी उसकी बैटन को मजाक मैं लेते हुए कहा .. जब से तुम जमादार बने हो तभी से ...
मैं उसके आने तक तैयार हो चुकी थी, आने के बाद वो भी नहा धो के तैयार हो गया, हम दोनों अपने अपने बैग ले के नीचे पहुंचे। सर हमारा इंतजार कर रहे थे। हम तीनों ने रजिस्टर पर चेक आउट करने के लिए हस्ताक्षर किए और सामान उठा के स्टेडियम चले गए। वहां लॉकर में सामान रख दिया। तब तक ९ .४५ हो चुके थे, मैच शुरू होने में सिर्फ़ १५ मिनट बाकी थे।
मैच शुरू हुआ। मुंबई टीम का लड़का बेहद स्मार्ट था, और लड़की सांवली सी थी लेकिन उसके फीचर बहुत अच्छे थे। उनकी टीम बहुत अच्छे खेल के प्रदर्शन के बाद यहाँ तक पहुँची थी। मैं बहुत नर्वस थी (ऐसे मौकों पर मैं अक्सर नर्वस हो जाया करती हूँ ) मुझे ख़ुद पे भरोसा नहीं था कि मैं इन्हे चुनौती दे भी पाऊँगी या नहीं, पर वरुण पे भरोसा था ...उनकी टीम ने हमारा खेल पिछले दो मैचों में देखा था।
खैर पहला सेट हम जीत गए, पर दूसरा सेट शुरू होने के साथ बाल बार बार मेरी तरफ़ ही आ रही थी और वरुण बार बार भाग कर बाल अपने बल्ले पर ले रहा था। वो जानता था कि मैं कांफिडेंट नहीं हूँ और ये बात सामने वाली टीम को भी पता थी। इसीलिए वो हमारी कमजोरी का फायदा उठा रहे थे। आखिर कार वही हुआ जिसका डर था- वरुण भी आखिर कब तक अकेले मोर्चा संभालता, वो भी इन्सान है उसे भी थकन होती है, नतीजतन हम दूसरा सेट हार गए और फ़िर एक के बाद एक तीसरा और चौथा भी ..
हम मैच हार गए ..
और सब कुछ हुआ मेरे कारण .. जब ये बात मैंने वरुण से कही .. तो उसने कहा हम मैच तुम्हारी वजह से नहीं हारे .. हम मैच इसलिए हारे क्यूंकि .. मेरी प्रक्टिस वंशिका के साथ हुई थी, तुम्हारे साथ नहीं, ऐसे में दिक्कतें तो आती ही हैं। सर ने भी मुझे दिलासा देते हुए कहा- कोई बात नहीं बेटे ! तुम तीन में से २ मैच तो जीते न, ये मत देखो कि तुम आखिर में हारे या जीते .. तुम ये देखो कि तुमने खेल भावना से खेले या नहीं .. अगर हाँ तो तुम हारने के बावजूद जीत गए क्यूंकि इस से तुम्हे बहुत कुछ सीखने को मिला और फ़िर हर हार के बाद कोई कुछ न कुछ तो सीखता ही है, तुमने भी सीखा ही होगा .
जब तक खेल में कोई हारेगा नहीं तो सामने वाला जीतेगा कैसे ...!! सर की बातों ने मुझ पे और मेरे मूड पे काफी असर किया .. उसके बाद हमने कुछ रेफ्रेश्मेंट्स ली और थोड़ी देर आराम करने के बाद हम वहां से २ बजे निकल पड़े बस लेने के लिए। बसों की हड़ताल थी इसलिए हमें टैक्सी करनी पड़ी। सर साथ में थे इसलिए रास्ते भर हमने ज्यादा बातचीत नहीं की और सर ने मुझे करीबन ७ बजे और वरुण को मेरे बाद टैक्सी से ही हमारे घर छोड़ा।
इस एक्सपेरिएंस के बाद मुझे तो पूरा यकीन हो गया भले वरुण बाहर से दिखाता न हो .. पर उसके मन में एक सॉफ्ट कार्नर जरूर है मेरे लिए .. शायद इसलिए क्यूंकि .. मैं उसकी सबसे करीबी और अच्छी दोस्त थी .. या फ़िर शायद कुछ और l

शनिवार, 12 जनवरी 2013

मेरा सामूहिक बलात्कार

मेरा नाम नेहा है। 22 साल की खूबसूरत महिला हूं। दो साल पहले मेरी शादी कोटा नीवासी शरद से हुई है। मैं दिल्ली के ग्रीन पार्क में रहती थी। मेरी एक ननद रेखा भी करोल बाग मे रहती है। उसके पति राजकुमार ठाकुर का स्पेयर पार्ट का व्यवसाय है। रेखा दीदी बहुत ही हँसमुख महिला है। राज जी मुझे अक्सर गहरी नज़रों से घूरते रहते थे। मगर मैंने नज़र अंदाज़ किया। मैं बहुत सेक्सी लडकी हूँ। मेरे कालेज मे मुझे काफी चाहने वाले थे। मगर मैंने सीर्फ दो लड़कों को ही लीफ़्ट दी थी। लेकिन मैंने किसी को अपना बदन छूने नहीं दिया। मैं चाहती थी की सुहाग रात को ही मैं अपना बदन अपने पाती के हवाले करूं। मगर मुझे क्या पता था की मैं शादी से पहले ही सामूहिक सम्भोग का शिकार हो जाउंगी। वो भी ऐसे आदमी से जो मुझे सारी जिंदगी रोंदता रहेगा। शादी की सारी बात-चीत रेशमा दीदी ही कर रही थी। इसलिए अक्सर उनके घर आना-जाना लगा रहता था। कभी-कभी मैं सारे दिन वहीँ रूक जाती थी। एक बार तो रात को भी वहीँ रुकना पड़ा। मेरे घर वालों के लिए भी ये नॉर्मल बात हो गयी थी। वो मुझे वहाँ जाने से नहीं रोकते थे। शादी को सीर्फ बीस दिन बाक़ी थे। अक्सर रेखा दीदी के घर आना-जान पड़ता था। इस बार भी उन्होंने फ़ोन कर कहा, "बन्नो, कल शाम को घर आना दोनों जेवरों का आर्डर देने चलेंगे और शाम को कहीँ खाना-वाना खाकर देर रात तक घर लौटेंगे। अपनी मम्मी को बता देना की कल तू हमारे यहीं रात को रुकेगी। सुबह नहा धोकर ही वापस भेजूंगी।" "जी आप ही मम्मी को बता दो ना," मैंने फ़ोन मम्मी को पकडा दिया। उन्होने मम्मी को कंवीन्स कर लीया। अगले दिन शाम को 6 बजे तैयार हो कर अपनी होने वाली ननद के घर को निकले। सर्दियों के दीन थे, इस्लीये अँधेरा छाने लगा था। मैं करोल बाग स्थित उनके घर पर पहुंची। दरवाजा बंद था। मैंने बेल बजाया। काफी देर बाद राज जी ने दरवाजा खोला। "दीदी हैं?" मैंने पूछा, वो कुछ देर तक मेरे बदन को ऊपर से नीचे तक घूरते रहे। कुछ बोला नहीं। "हटीय़े मुझे ऐसे क्या देखते रहतें हैं। बताओं दीदी को," मैंने उनसे मजाक किया, "कहॉ है दीदी?" उन्होने बेडरुम की तरफ इशारा किया और दरवाजे को बंद कर दीया। तब तक भी मुझे कोई अस्वाभावीक कुछ नहीं लगा। मगर बेडरुम के दरवाजे पर पहुँचते ही मुझे चक्कर आ गया। अंदर दो आदमी बेड पर बैठे हुये थे। उनके बदन पर सीर्फ शोट्स था। ऊपर से वे नीवस्त्र थे। उनकी हाथों मे शराब के ग्लास थे। और सामने ट्रे मे कुछ स्नेक्क्स और एक आधी बोतल रखी हुई थी। अचानक पास मे नज़र गयी। टीवी पर कोई ब्लू फिल्म चल रही थी। मैंने वहाँ से भाग जाने मे ही अपनी भलाई समझी। वापस जाने के लिए जैसे ही घूमी राज की छाती से टकरा गयी। "जानू इतनी जल्दी भी क्या है। कुछ देर हमारी महफ्लि मे भी तो बैठो। दीदी तो कुछ देर बाद आ ही जायेगी," कहकर उसने मुझे जोर से धक्का दिया। मैं उन लोगों के बीच जा गिरी। उन्होंने दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया। "मुझे छोड़ दो। मेरी कुछ ही दिनों मे शादी होने वाली है। जीजाजी आप तो मुझे बचा लो। मैं आपके साले की होने वाली बीवी हूँमैंने उनके सामने हाथ जोड़ कर मन्नतें की। "भाई मैं भी तो देखूं तू मेरे साले को सन्तुष्ट कर पायेगी या नहींमैं दरवाजे को ठोकने लगी। "दीदी-दीदी मुझे बचाओ," की आवाज लगाने लगी। "तेरी दीदी तो अचानक अपने मायके कोटा चली गयी। तुम्हारी होने वाली सास की तबीयत कल रात को खराब हो गयी थी" यह कहकर राज मुझे दरवाजे के पास आकर मुझे लगभग घसीटते हुये बेड़ तक ले गए। "मुझे तेरा ख़याल रखने को कह गयी थी। इसलिय आज सारी रात हम तेरा ख़याल रखेंगेंकहकर उसने मेरे बदन से चुन्नी नोच कर फेंक दी। तीनों मुझे घसीटते हुये बेड़ पर लेकर आये। कुछ ही देर मे मेरे बदन से सलवार और कुर्ता अलग कर दिया। मैं दोनो हाथों से अपने योवन को छुपाने की असफल कोशीश कर रही थी। तीन जोडी हाथ मेरी छातीयों को बुरी तरह मसल रहे थे। और मैं छूटने के लिये हाथ पैर चला रही थी। बार-बार उनसे रहम की भीख मांगती। फिर मेरी छातीयों पर से ब्रॉ़ को अलग कर दिया। तीनों ने मेरी छातीयों को मसल-मसल कर लाल कर दिया था। फिर मेरे चूचुक को चूसने और काटने का दौर चला। मैं दर्द से चीखी जा रही थी। मगर सुनने वाला कोई नहीं था। एक ने मेरे मुँह मे कपड़ा ठूंस कर उसे मेरी ओढ़नी से बाँध दिया। जिससे मेरे मुँह से आवाज ना निकले। अचानक दो उंगलीयाँ मेरे टांगों की जोड़ पर पहुंच कर पैंटी को एक तरफ सरका दिया और दोनो उंगलीयाँ बड़ी बेदर्दी से मेरी चुत मे प्रवेश कर गयी। कुंवारी चुत पर यह पहला हमला था इसलीये मैं दर्द से चीख उठी। "अरे यार ये तो पुरा सोलीड माल है। बिल्कुल अन्छुई" उन लोगों की आँखों मे भूख कुछ और बढ गयी। मेरी पेंटी को चार हाथों ने फाड़ कर टुकड़े-टुकड़े कर दिया। मैं अब बिलकुल नीवस्त्र उनके बीच लेटी हुई थी। मैंने भी अब अपने हथियार दाल दिये। "देख हम तो तुझे जरूर चोदेंगे। अगर तू भी हमारी मदद करती है तो यह घटना जींदगी भर याद रहेगी और अगर तू हाथ पैर मारती है तो हम तेरे साथ बुरी तरह से बालात्कार करेंगे। जिसे तू सारी उमर नहीं भूलेगी. अब बोल तू हमारे खेल मे शामिल होगी या नहीं" मैंने मुँह से कुछ कहा नहीं मगर अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया। इससे उनको पता लग गया की अब मैं उनका विरोध नहीं करूंगी। "प्लीज भैया मैं कुंवारी हूँ," मैंने एक आखरी कोशिश की। "हर लडकी कुछ दिन तक कुंवारी रहती है। अब चल उठ," राज ने कहा, "अगर तू राजी ख़ुशी करवा लेती है तो दर्द कम होगा और अगर हमे जोर जबरदस्ती करनी पडे तो नुकसान तेरा ही होगा" मैं रोते हुये उठ कर खड़ी हो गयी। "हाथों को अपने सिर पर रखो" मैंने वैसा ही किया। "टागों को चौड़ी करो" "अब पीछे घुमो।" उन्होने मेरे नग्न शरीर को हर एंगल से देखा। फिर तीनों उठकर मेरे बदन से जोंक की तरह चिपक गए। मेरे अंगों को तरह-तरह से मसलने लगे। मुझे खींच कर बिस्तर पर लिया दिया और मेरी टांगों को चौड़ा करके एक तो मेरी चुत से अपने होंठ से चिपका दिया। दुसरा मेरे सतनों को बुरी तरह से चूस रह था, मसल रह था। मेरे कुंवारे बंदन में सीहरण सी दौड़ने लगी। मेरा विरोध पूरी तरह समाप्त हो चुका था। अब मैं `आह ऊऊह' कर सिस्कारियां भरने लगी। मेरी क़मर अपने आप उसके जीभ को अधिक से अधिक अंदर लेने के लिये ऊपर उठने लगी। अपने हाथों से दुसरे का मुँह अपने स्तनों पर दबाने लगी। अचानक मेरे बदन मे एक अजीब से थर्थाराहत हुई और मैंने चूत से कुछ बहता हुआ महसूस किया। ये था मेरा पहला वीर्यपात, जो किसी का लंड अंदर गए बिना हो गया था। मैं निठाल हो गयी। कुछ ही देर बाद मैं गरम हो गई। तब तक राज अपने कपडे खोल कर पूरी तरह नग्न हो गया था। मैं एकटक उसके तन्तनाते हुये लुंड को देख रही थी। उसने मेरे सिर को हाथों से थामा और अपना लंड मेरे होंठों से सटा दिया। "मुँह खोल," राज ने कहा। "नही," मुँह को जोर से बंद किये हुए, मैंने इनकार मे सर हिलाया। "अभी ये साली मुँह नहीं खोल रही है। इसका इलाज़ कर," राज ने मेरी चुत से सटे हुये आदमी से कहा। उसने मेरी चूत के दाने को दांतों के बीच दबा कर काट दिया। मैं "आआआअह्" करके चीख उठी और उसका मोटा तगड़ा लंड मेरे मुँह मे समता चला गया। मेरे मुँह से "गूं...............ग गोऊँ" जैसी आवाजें निकल रहे थे। उसके लंड से अलग तरह की समेल आ रही थी। मैं उसके लंड को अपने मुँह से निकाल देना चाहती थी। मगर राज मेरे सीर को सख्ती से अपने लंड पर दबाये हुये था। जब मैं थोड़ी शांत हुई तो उसका लंड मेरे मुँह के अंदर बहार होने लगा। आधा लंड बाहर निकालकर फिर तेजी से अंदर कर देता। लंड गले तक पहुंच जाता था। इसी तरह कुछ देर तक मेरे मुँह को चोद्ता रहा। तब तक बाक़ी दोनो भी नग्न हो चुके थे। राज ने अपना लंड मुँह से निकला लिया। उसकी जगह दुसरे एक ने अपना लंड मेरे मुँह मे डाल दिया। राज मेरी टांगों की तरफ चला गया। उसने मेरे दोनो टांगो को फैला दिया और अपना लंड मेरी चुत से छुया। मैं उसके लंड के प्रवेश का इंतज़ार करने लगी। उसने अपनी दो उंगलीयों से मेरी चुत की फंकों को एक दुसरे से अलग किया और दोनो के बीच अपने लंड को रखा। फिर एक जोर के झटके के साथ उसका लंड मेरी चुत के दीवारों से रगड़ खाता हुआ कुछ अंदर चला गया। सामने प्रवेश द्वार बंद था। अब अगले झटके के साथ उसने उस द्वार को पार कर लिया। तेज दर्द के कारण मेरी ऑंखें छलक आयी। ऐसा लगा मानो कोई लोहे का सरीया मेरे आर पार कर दिया हो। मेरी टाँगें दर्द से छटपटाने लगी। मगर मैं चीख नहीं पा रही थी। क्योकी एक मोटा लंड मेरे गले को पुरी तरह से बाँध रखा था। राज अपने लंड को पूरा अंदर डाल कर कुछ देर तक रुका। मेरा दर्द धीरे-धीरे कम होने लगा तो उसने भी अपने लंड को हरकत दे दी। वो तेजी से अंदर बाहर करने लगा। मेरी चुत से रीस-रीस कर खून की बूँदें चाद्दर पर गिरने लगी। तीसरा मेरे सतनों को मसल रह था। मुझे बदन में दर्द की जगह मजा आ रहा था। राज मुझे जोर-जोर से धक्के लगा रहा था। उसका लंड काफी अंदर तक मुझे चोट कर रह था। जो मुझे मुख मैथुन कर रह था वो ज्यादा देर नहीं रूक पाया और मेरे मुँह मे अपने लंड को पूरा अंदर कर वीर्य की पीचकारी छोड़ दी। यह पहला वाकया था, जब मैंने किसी का वीर्य चखा था। मुझे उतना बुरा नहीं लगा। उसने अपने टपकते हुये लंड को बाहर निकाला। वीर्य की कुछ बूँदें मेरे गल्लों और होंठों पर गिरी। होंठों से लंड तक वीर्य का एक महीन तार सा जुदा हुआ था। तभी राज ने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी और जोर-जोर से धक्के देने लगा। हर धक्के के साथ "हुंह हुंह" की आवाज निकल रही थी। मेरे शरीर मे वापस येंथान होने लगी और मेरी चुत से पानी छूट गया। वो तब भी रुकने का नाम नही ले रह था। कोई आधे घंटे तक लगातार धक्के मारने के बाद वो धीमा हुआ। उसका लंड झटके लेने लगा। मैं समझ गयी अब उसका वीर्य पात होने वाला है। "प्लेज अन्दर मत डालो। मैं प्रेग्नंत नहीं होना चाहती," मैंने गिड़गिड़ाते हुए कहा। मगर मेरी मिन्नते सुनने वाला वहाँ कौन था। उसने ढ़ेर सारा विर्य मेरी चुत मे डाल ही दिया। उसके लंड के बहार निकलते ही जो आदमी मेरे सतनों को लाल कर दिया था। वो कूद कर मेरे जांघों के बीच पहुँचा। और एक झटके मे अपना लंड अंदर कर दीया। उसका उतावलापन देख कर ऐसा लग रह था मानो कितने दिन से भूखा हो। कुछ देर तक जोर-जोर से धक्के मरने के बाद वो भी मेरे ऊपर ढ़ेर हो गया। कुछ देर सुस्ता लेने के कारण जीस आदमी ने मेरे साथ मुख मैथुन कीया था उसका लंड वापस खड़ा होने लगा। उसने मुझे चौपाया बाना कर मेरे पीछे से चुत मे अपना लंड प्रवेश करा दीया। वो पीछे से धक्के मार रह था जीसके कारण मेरे बडे-बडे स्तन कीसी पेड के फलों की तरह हील रहे थे। "ले इसे चूस कर खड़ा कर," कह कर राज ने अपने ढीले पडे लंड को मेरे मुँह मे ठूंस दीया। उसमे से अब हम दोनो के वीर्य के अलावा मेरे ख़ून का भी तसते आ रह था. उसे मैं चूसने लगी. धीरे धीरे उसका लंड वापस तन गया. और तेज तेज मेरा मुख मैथुन करने लगा. एक बार झाड होने के कारण इस बार दोनो मुझे आगे पीछे से घंटे भर ठोकते रहे. फीर मेरे ऊपर नीचे के छेदों को वीर्य से भरने के बाद दोनो बीसतर पर लुढ़क गए. मैं बुरी तरह थक चुकी थी. मैं धीरे धीरे उनका सहारा लेकर उठी और बाथरूम मे जाकर अपनी चुत को साफ कीया. वापस आकार देखा की चद्दर मे ढ़ेर सारा ख़ून लगा हुआ है. मैं वापस बीसतर पर ढ़ेर हो गयी. खाने पीने का दौर खतम होने के बाद वापस हम बेडरूम मे आ गए. उनमे से एक आदमी ने मुझे वापस कुछ देर राग्डा और हम नग्न एक दुसरे से लीपट कर सो गए. सुबह एक दौर और चला. फीर मैं अपने कपडे पहन कर घर चली आयी. कपडों को पहनने मे ही मेरी जान नीकल गयी. सतनों पर काले नीले जख्म हो रखे थे. कई जगह दांतों से चमडी कट गयी थी. ब्रा पहनते हुये काफी दर्द हुआ. जांघों के बीच भी सुजन हो गयी थी. राज ने यह बात कीसी को भी नहीं कहने का अव्शाश्न दीया था. पता चलने पर शादी टूटने के चांस थे इसलीये मैंने भी अपनी जुबान बंद रखी. सुहाग रात को मेरे पाती देव से मैंने ये राज छुपाने मे कामयाब रही. शादी के बाद राज देल्ही वापस चला गया. आज भी जब मेरी ननद कोटा आती है अपने मइके, राज मुझे कयी बार जरूर चोद्ता है...... हरामी साला !!!!!