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मंगलवार, 5 जुलाई 2011


जब चुदी एकता मामी

विनय जोशी जो नॉएडा का रहने वाला है उसका अन्तर्वासना के सभी पाठकों को खड़े लण्ड का सलाम....मैं अपना एक सच्चा अनुभव लेकर हाज़िर हूँ जिस को पढ़कर आँटियाँ, चाचियाँ, मामियाँ, भाभियाँ और लण्ड की प्यासी लड़कियों की चूत गीली हो जाएगी और लंड के लिए तड़प उठेंगीं....जिन लड़कों के पास चूत की व्यवस्था होगी, वो चूत चोदने लगेंगे और जिनके पास नहीं होगी, वो मूठ मारने लगेंगे...मैं उस मामी को चोदने के चक्कर में दो सालों से लगा था, और उसके नाम से मूठ मारा करता था। मेरे मामा (४०), जो ग्वालियर में ही रहते थे, रेडीमेड कपड़ों के धंधे में थे और अपना माल दिल्ली ख़ुद ही जाकर लेकर आते थे।यह बात मई की है....मेरी मामी जो लगभग ३० साल की है और १ बेटा की माँ है, रंग गोरा, शरीर भरा हुआ, न एकदम दुबला न एक दम मोटा-ताज़ा....मतलब बिल्कुल गज़ब की....पर चूचियाँ तो दो-दो किलो की और गाँड कुछ ज़्यादा ही बाहर निकली हैं....मेरे ख़्याल से उसकी फिगर ३८-३२-३९ होगी....
एक दिन जब मैं अपने घर पहुँचा तो मामा वहाँ थे, और मम्मी से बातें कर रहे थे....मैंने मामा से पूछा - "अब नये कपड़े कब आ रहे हैं?"
"बस आज ही लाने जा रहा हूँ....पर इस बार माल दिल्ली से नहीं, मुम्बई से लेकर आना है....वहाँ एक नामी कम्पनी से मेरी बात तय हो गई है....मुझे वहाँ से आने में चार-पाँच दिन तो लग ही जाएँगे....तब तक मैं चाहता हूँ कि तुम दिन में एक बार ज़रा दुकान जाकर काम देख लेना और रात में मेरे घर चले जाना।"....
"तू एकता और बच्चों को यहीं क्यों नहीं छोड़ देता?" मेरी मम्मी ने पूछा....
"मैंने एकता से कहा था कि बच्चों के साथ दीदी के यहाँ रह लेना, पर वह कह रही थी कि चार-पाँच दिनों के लिए आप लोगों को क्यों परेशान करना, बस नन्द को बोल देना, वो तुम्हारे आने तक हमारे यहाँ ही आ जाए और दुकान का भी काम देख ले....नौकरों के भरोसे दुकान छोड़ना ठीक नहीं....तुझे कोई दिक्क़त तो नहीं?" - मामा बोले....
"अभी तो मैं पूरा खाली ही हूँ....परीक्षाएँ भी खत्म हो चुकी हैं....चलिए एक अनुभव के लिए आपकी दुकान को भी सँभाल लेते हैं (और मामी को भी)।"....
"आज ८ बजे मेरी ट्रेन है, तू सात बजे घर आ जाना और मुझे स्टेशन छोड़ कर वापिस मेरे घर ही चले जाना।"....
"ठीक है मैं ६:३० बजे आ जाऊँगा।"....
६:३० बजे मैं मामा के घर पहुँच गया, मामा सफ़र की तैयारी कर रहे थे और मामी पैकिंग में मामा की मदद कर रही थी....पैकिंग के बाद मामी ने मामा को खाना दिया और मुझे भी खाने के लिए पूछा....
"मामा को छोड़कर आता हूँ, फिर खा लूँगा।" मैंने कहा....
७:३० बजे मामा और मैं स्टेशन पहुँच गए....मामा की ट्रेन सही समय पर आ गई, मामा का आरक्षण था, मामा अपनी सीट पर जाकर बैठ गए और पाँच मिनट के बाद ट्रेन मुम्बई के लिए चल पड़ी....चलते-चलते मामा बोले,"मामी और बच्चों का ख्याल रखना।"....
"आप यहाँ की फिक्र ना करें, मैं मामी और बच्चों का पूरा ख्याल रखूँगा।"....
मैंने स्टैण्ड से अपनी बाईक ली और ८:३० तक घर आ गया....मैंने दरवाज़े की कॉलबेल बजाई तो मामी ने दरवाज़ा खोला और बोली,"हाथ-मुँह धो लो, अब हम खाना खा लेते हैं।"....
"आपने अभी तक काना नहीं खाया?" मैंने पूछा....
"बस तुम्हारा ही इन्तज़ार कर रही थी....बिट्टू और सोनू तो खाना खाकर सो गए हैं....तुम भी खाना खा लो।"....
मैं और मामी डिनर की टेबल पर एक-दूसरे के आमने-सामने बैठ कर खाना खा रहे थे....जब मामी निवाला खाने के लिए थोड़ा झुकती उनकी चूचियों की गहराईयों के दर्शन होने लगते और मेरा लंड विचलित होने लगता....पर स्वयं को सँभाल कर मैंने खाना खतम किया और टीवी चालू कर लिया....उस समय आई पी एल मैच चल रहे थे, मैं मैच देखने लगा....
कुछ देर बाद मामी बर्तन साफ करने लगी और वह भी मैच देखने लगी....जल्दी ही उसे नींद आने लगी...."मैं तो सोने जा रही हूँ, तुम भी हमारे कमरे में ही सो जाना, तुम डबल बेड में बच्चों के एक तरफ ही सो जाना" मामी बोली...
"ठीक है, बस एक घन्टे में मैच खत्म होने वाला है....आप सो जाओ, मैं मैच देखकर आता हूँ।"....
मामी चली गई और मैं मैच देखने लगा....
कुछ देर बाद बाद ब्रेक हुआ और मैं चैनल बदलने लगा, और एक लोकल चैनल पर रुक गया....डिश वाले एक ब्लू-फिल्म प्रसारित कर रहे थे....अब काहे का मैच, मैं तो उसी चैनल पर रुक गया और वो ब्लू-फिल्म देखने लगा और मेरा लंड हिचकोले मारने लगा....
मेरा साढ़े पाँच इंच का लंड लोहे की तरह सख्त होकर तन गया, मैं अपनी पैंट के ऊपर से ही उसे सहलाने लगा....मेरा लंड चूत के लिए फड़फड़ाने लगा और मेरी आँखों के सामने मामी का नंगा बदन घूमने लगा और मैं मामी के नाम से मूठ मारने लगा....मैं मन ही मन मामी को चोद रहा था, कुछ देर बाद लंड ने एक पिचकारी छोड़ दी....मेरा वीर्य लगभग पाँच फीट दूर छिटका, और यह बस मामी के नाम का कमाल था....
अब मेरा दिमाग मामी को हर हाल में चोदने के बारे में सोचने लगा, तब तक फिल्म भी खत्म हो गई थी....मैंने टीवी बन्द किया और बेडरूम की ओर चल दिया....जैसे ही मैंने कमरे की बत्ती जलाई, मेरी आँखें फटी रह गईं....बिल्लू और सोनू, दोनों दीवार की ओर सो रहे थे, और मामी बीच बिस्तर में....उनकी साड़ी घुटनों के ऊपर तक उठ गई थी और उनकी गोरी-गोरी जाँघें दिख रहीं थीं....उनका पल्लू बिखरा हुआ था, ब्लाउज़ के ऊपर के दो हुक खुले थे और काली ब्रा साफ-साफ दिख रही थी....मामी एकदम बेसुध सो रहीं थीं....
मैंने तुरन्त लाईट बन्द की और अपने लंड को सहलाते हुए सोचा,'क़िस्मत ने साथ दिया तो समझ हो गया तुम्हारा जुगाड़ !'....
मैं जाकर मामी के पास लेट गया, मामी एकदम गहरी नींद में थी....मैंने एक हाथ मामी के गले पर रख दिया और हाथ को नीचे खिसकाने लगा....अब मेरा हाथ ब्लाउज़ के हुक तक पहुँच गया....मैं आहिस्ते-आहिस्ते हुक खोलने लगा....तभी मामी बच्चों की ओर पलट गई, इससे मुझे हुक खोलने में और भी आसानी हो गई और मैंने सारे हुक खोल दिए....ब्रा के ऊपर से ही मामी की चूचियों को सहलाने लगा....
मामी के स्तन एकदम मुलायम थे....पर ब्रा ने उन्हें ज़ोरों से दबा रखा था, इस कारण ऊपर पकड़ नहीं बन रही थी....मैं अपना हाथ मामी की ब्लाउज़ के पीछे ले गया और ब्रा के हुक को भी खोल दिया....अब दोनों स्तन एकदम स्वतंत्र थे....मैं उन आज़ाद हो चुके बड़े-बड़े स्तनों को हल्के-हल्के सहलाने लगा, फिर मैं एक हाथ उनकी जाँघ पर ले गया और ऊपर की ओर ले जाने लगा पर एक डर सा भी लग रहा था कि कहीं मामी जाग ना जाए....पर जिसके लंड में आग लगी हो वो हर रिस्क के लिए तैयार रहता है और लंड की आग को सिर्फ चूत का पानी ही बुझा सकता है....
हिम्मत करके मैं अपने हाथ को ऊपर ले जाने लगा....जैसे-जैसे मेरा हाथ चूत के पास जा रहा था, मेरा लंड और तेज़ हिचकोले मार रहा था....
अब मेरा हाथ मामी की पैन्टी तक जा पहुँचा था...पैन्टी के ऊपर से ही मैंने हाथ चूत के ऊपर रख दिया....चूत बहुत गीली थी और भट्टी की तरह तप रही थी....मैंने साड़ी को ऊपर कर दिया और पैन्टी को नीचे खिसकाने लगा....थोड़ी मेहनत के बाद मैं पैन्टी को टाँगों से अलग करने में कामयाब रहा....
अब मैं हाथ को चूत के ऊपर ले गया और चूत को प्यार से सहलाने लगा....मामी अभी तक शायद गहरी नींद में थी....मैंने एक हाथ मामी की कमर पर रखा और उन्हें सीधा करने लगा....
मामी एक ही झटके से सीधी हो गई....मैं अपनी टाँग को मामी की टाँगों के बीच ले गया और मामी की टाँगों को फैला दिया....अब मैं नीचे खिसकने लगा और मैं जैसे ही चूत चाटने के लिए मुँह चूत के पास ले गया, मामी ने हाथ से चूत को ढँक लिया....
मेरी तो गाँड फट गई, रॉड की तरह तना हुआ लौड़ा एकदम मुरझा गया, दिल धाड़-धाड़ धड़कने लगला....
तभी मामी उठी और फुसफुसाकर बोली,"ये सब यहाँ नहीं....बिट्टू और सोनू जाग सकते हैं....अब तक तो मैंने किसी तरह अपनी सिसकियाँ रोक रखीं थीं पर अब नहीं रोक सकूँगी....हम ड्राईंगरूम में चलते हैं।"....
इतना सुनते ही मेरा लंड फिर से क़ुतुबमीनार बन गया.....मामी जैसे ही बिस्तर पर से उठी, मैंने मामी को अपनी बाँहों में भर लिया और उनके होंठों को चूमने लगा....वह भी मेरे होंठों पर टूट पड़ी....हम एक-दूसरे के होंठों को पागलों की तरह निचोड़ने लगे.....
मैं उनके होंठों को चूमते हुए अपने दोनों हाथ उनकी गांड तक ले गया और उन्हें उठा लिया....मामी ने अपने पैर मेरी कमर के गिर्द लपेट दिए....मैं उन्हें चूमते हुए ड्राईंगरूम तक ले आया और मामी को लेकर सोफे पर बैठ गया....
मामी मेरी गोद में थी, ब्लाउज़ और ब्रा अभी भी मामी के कंधों से लटक रहे थे....पहले मैंने ब्लाउज़ को निकाल फेंका, फिर ब्रा और एक चूची को हाथ से मसलने लगा और साथ ही दूसरी चूची को चाटने लगा....
अब साड़ी की बारी थी, मैंने साड़ी भी निकाल फेंकी, अब पेटीकोट बेचारे का भी शरीर पर क्या काम था....अब मामी एकदम नंगी हो चुकी थी....लाल नाईट-बल्ब की रोशनी में मामी का नंगा बदन पूर्णिमा में ताज़ की तरह चमक रहा था और इस वक्त मैं इस ताजमहल का मालिक था....
अब मामी मेरे कपड़े उतारने लगी....मेरे सारे कपड़े उन्होंने उतार दिए और मैं सिर्फ अपनी फ्रेंची अण्डरवियर में रह गया पर वह भी अधिक देर न रह सका....उन्होंने वह भी एक ही झटके में उतार फेंकी और फिर मामी ने मेरे साढ़े पाँच इंच लम्बे विकराल लंड को लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी....
कभी मामी लंड पर, तो कभी अंडकोष से सुपाड़े तक जीभ फिराती, कभी लंड को हल्के से काटती, सुपाड़े पर थूकती और फिर उसे चाट जाती....मेरा तो बुरा हाल कर दिया और मेरे लंड ने मामी के मुँह पर अपनी पिचकारी मार दी....उनका पूरा चेहरा मेरे वीर्य से सन गया था....मैंने अपने दोनों हाथों से सारा वीर्य उनके चेहरे पर मल दिया....
"दूसरी बार में भी इतना माल? तेरा लंड है या वीर्य का टैंक?" - मामी ने कहा....
मैं यह सुनकर हैरान हो गया, मेरी हैरानी जानकर उन्होंने बताया - "जब तू ब्लू-फिल्म देख रहा था और मेरे नाम से मूठ मार रहा था तब मैं पानी पीने के लिए रसोईघर में आई थी और तेरे लंड की धार को देख कर मेरी कामवासना की प्यास जाग गई और मैं बेडरूम में अपने कपड़ों को जान-बूझ कर अस्त-व्यस्त कर लेट गई थी....वहाँ आने के बाद अगर तू ऐसी हरकतें नहीं करता तो आज मैं ही तेरा बलात्कार कर देती।"....
"तरबूज़ तलवार पर गिरे या तलवार तरबूज़ पर, कटना तरबूज़ को ही है....अब तो आज रात सचमुच में बलात्कार होगा....आज रात अगर आपसे रहम की भीख न मँगवाई तो मेरा भी नाम विनय जोशी नहीं।" मैंने कहा....
"चल देखते हैं, कौन रहम की भीख माँगता है !" मामी ने भी ताना सा मारा....
मामी के ऐसा कहते ही मैंने मामी को ज़मीन पर लिटा दिया और उनकी चूत पर टूट पड़ा, अपनी जीभ को चूत में जितना हो सकता था अन्दर डाल दिया और जीभ हिलाने लगा....चूत के गुलाबी दाने को जैसे ही मैं हल्के-हल्के काटता-चूसता, वह तड़प उठती और आआहहहहहह आआहह्ह्हहहह करने लगती....
उसने टाँगों से मेरे सिर को जकड़ लिया और टाँगों से ही सिर को चूत में दबाने लगी और बालों में हाथ फेरने लगी....मैं चूत-अमृत पीते हुए दोनों स्तनों को मसल रहा था... तभी अचानक मामी का शरीर अकड़ने लगा उनकी चूत ज़ोरदार तरीके से झड़ने लगी....
मैंने चूत को चाटकर साफ कर दिया और जैसे ही मैं मामी के ऊपर आने को हुआ, मामी ने मुझे रोका और गेस्ट-रूम की ओर इशारा किया....मैं समझ गया कि वह उस कमरे में चलने को कह रही है....मैंने उन्हें गोद में लिया और चूमते हुए उस कमरे में ले आया.... लाईट जलाई तो देखा, वहाँ एक सिंगल बेड था.....मैंने पंखा चालू किया और उन्हें बिस्तर पर पटक दिया और उनके ऊपर आ गया....मैंने उनके होंठों को चूमते हुए अपनी टाँगों से उनकी टाँगे चौड़ी कीं....
अब मेरा लंड मामी की चूत के ऊपर था....मैंने अपने हाथों को सीधा किया और धक्के मारने की मुद्रा में आ गया....अब मैं अपनी कमर को नीचे करता और लंड को चूत से स्पर्श करते ही ऊपर कर लेता....कुछ देर ऐसा करने के बाद मामी बोली,"अब मत तड़पाओ, मेरी चूत में आग लग रही है, इसमें अपना लंड अब डाल दो और मेरी चूत की आग को शान्त करो, मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूँ....
इस बार मैंने लण्ड चूत पर रखा और धीरे-धीरे नीचे होने लगा और लण्ड चूत की गहराईयों में समाने लगी....चूत बिल्कुल गीली थी, एक ही बार में लण्ड जड़ तक चूत में समा गया और हमारी झाँटे आपस में मिल गईं....अब मेरे झटके शुरु हो गए और मामी की सिसकियाँ भी... मामी आआआहहहहह अअआआआआहहहह करने लगी....कमरा उनकी सिसकियों से गूँज रहा था....
जब मेरा लण्ड उनकी चूत में जाता तो फच्च-फच्च और फक्क-फक्क की आवाज़ होती....मेरा लण्ड पूरा निकलता और एक ही झटके मे चूत में पूरा समा जाता....मामी भी गाँड हिला-हिला कर मेरा पूरा साथ दे रही थी। मैंने झटकों की रफ्तार बढ़ा दी, अब तो खाट भी चरमराने लगी थी। पर मेरी गति बढ़ती जा रही थी। हम दोनों पसीने से नहा रहे थे। पंखे के चलने का कोई भी प्रभाव नहीं था।
दोनों के चेहरे एकदम लाल हो रहे थे पर हम रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। झटके अनवरत जारी थे। कभी मैं मामी के ऊपर तो कभी मामी मेरे ऊपर आ जाती। दोनों ही चुदाई का भरपूर मज़ा ले रहे थे। पूरे कमरे में बस कामदेव का राज था। हम दोनों एक-दूसरे की आग को बुझा रहे थे। तभी हमारे शरीर अकड़ने लगे।
दोनों झड़ने वाले थे। मैं लण्ड को बाहर निकालने वाला ही था कि मामी ने रोक दिया और बोली - "अपना सारा माल चूत के अन्दर ही छोड़ दो।"
मैंने भी झटके चालू रखे। हम दोनों ने एक-दूसरे को भींच लिया। मामी ने टाँगों और हाथों को मेरे शरीर पर लपेट दिया। मैंने मामी के कंधों को कसकर पकड़ लिया और एक ज़ोरदार झटका मारा। मैं और मामी एक ही साथ झड़े थे। मामी की चूत मेरे वीर्य से भर गई।
वीर्य चूत से बह रहा था। मेरा मुँह अपने-आप चूत पर पहुँच गया और मैं मामी की चूत को चाट-चाट कर साफ करने लगा।
मामी ने भी मेरे लंड को चूस-चूस कर साफ कर दिया और हम दोनों एक-दूसरे के बगल में लेट गए, पर मामी का हाथ मेरे लंड पर था और मैं मामी के बालों को सहला रहा था।
मामा के आने तक मैं और मामी पति-पत्नी की तरह रहे। मैं सुबह को दुकान का एक चक्कर लगा आता। दिन में हम नींद ले लेते और रात को...
मामा के आने के बाद भी जब भी मौक़ा मिलता, मैं उसको छोड़ता नहीं।