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मंगलवार, 21 अगस्त 2012

रेल यात्रा


रेलवे स्टेशन पर भारी भीड़ थी; आने वालों की भी और जाने वालों की भी. तभी स्टेशन पर घोषणा हुई," कृपया ध्यान दें, दिल्ली से मुंबई को जाने वाली न्यू गंगा एक्सप्रेस 24 घंटे लेट है" सुनते ही आशीष का चेहरा फीका पढ़ गया...कहीं घर वाले ढूँढ़ते रेलवे स्टेशन तक आ गए तो... मुंबई के लिए उसने 3 दिन पहले ही आरक्षण करा लिया था...पर घोषणा सुनकर तो उसके सारे प्लान का कबाड़ा हो गया...हताशा में उसने चलने को तैयार खढी एक पस्सेंजेर ट्रेन की सीटी सुनाई दी...हडबडाहट में वह उसकी और भागा...अन्दर घुसने के लिए आशीष को काफी मशक्कत करनी पड़ी...अन्दर पैर रखने की जगह भी मुश्किल से थी...सभी खड़े थे...क्या पुरुष और क्या औरत...सभी का बुरा हाल था और जो बैठे थे; वो बैठे नहीं थे...लेटे थे...पूरी सीट पर कब्ज़ा किये...आशीष ने बाहर झाँका; उसको डर था...घरवाले आकर उसको पकड़ न लें; वापस न ले जाएं उसका सपना न तोड़ दें...हीरो बनने का! हीरो बनने के लिए आशीष घर से भाग कर आया था...शकल सूरत से हीरो ही लगता था कद में अमिताभ जैसा; स्मार्टनेस में अपने सल्मान जैसा...बॉडी में गजनी वाला आमिर खान लगता था और एक्टिंग में शाहरुख़ खान...वो इन सबका दीवाना था...इसके साथ ही हेरोइंस का भी...उसने सुना था...एक बार कामयाब हो जाओ फिर सारी जवान हसीन माडल्स, हीरो और निर्देशक के नीचे ही रहती हैं...बस यही मकसद था उसका हीरो बनने का ...रेल गाढ़ी के चलने पर उसने रहत की सांस ली...हीरोगिरी के सपनों में खोये हुए आशीष को अचानक पीछे से किसी ने धक्का मारा...वो चौंक कर पीछे पलटा..."देखकर नहीं खड़े हो सकते क्या भैया...बुकिंग करा रखी है क्या?"आशीष देखता ही रह गया...गाँव की लगने वाली एक अल्हड़ जवान युवती उसको झाड पिला रही थी...उम्र करीब 22 साल होगी...चोली और घाघरे में ब्याहता लगती थी...छोटे कद की होने की वजह से आशीष को उसकी श्यामल रंग की चूचियां काफी अन्दर तक दिखाई दे रही थी...चूचियों का आकार ज्यादा बड़ा नहीं था, पर जितना था मनमोहक था...आशीष उसकी बातों पर कम उसकी छलकती हुई मस्तियों पर ज्यादा ध्यान दे रहा था...उस अबला की पुकार सुनकर भीड़ से करीब 45 साल के एक आदमी ने सर निकल कर कहा,"कौन है बे?" पर जब आशीष के डील डौल को देखा तो उसका सुर बदल गया,"भाई कोई मर्ज़ी से थोड़े ही किसी के ऊपर चढ़ना चाहता है..." उसकी बात पर सब ठाहाका लगाकर हंस पडे...तभी भीड़ से एक बूढ़े की आवाज आई," कृष्णा! ठीक हो बेटी "पल्ले से सर ढकते उस 'कृष्णा ' ने जवाब दिया," कहाँ ठीक हूँ बापू!" और फिर से बद्बदाने लगी," अपने पैर पर खड़े नहीं हो सकते क्या?"आशीष ने उसके चेहरे को देखा...रंग गोरा नहीं था पर चेहरे के नयन-नक्श तो कई हीरोइनों को भी मात देते थे...गोल चेहरा, पतली छोटी नाक और कमल की पंखुड़ियों जैसे होंट...आशीष बार-बार कन्खियों से उसको देखता रहा...तभी कृष्णा ने आवाज लगायी,"रानी ठीक है क्या बापू? वहां जगह न हो तो यहाँ भेज दो...यहाँ थोड़ी-सी जगह बन गयी है..."और रानी वहीं आ गयी...कृष्णा ने अपने और आशीष के बीच रानी को फंसा दिया...रानी के गोल मोटे चूतड आशीष की जांघों से सटे हुए थे...ये तो कृष्णा ने सोने पर सुहागा कर दिया...अब आशीष कृष्णा को छोड़ रानी को देखने लगा...उसके लट्टू भी बढे-बढे थे...उसने एक मैली सी सलवार-कमीज डाल राखी थी...उसका कद भी करीब 5' 2" होगा... कृष्णा से करीब 2" लम्बी! उसका चहरा भी उतना ही सुन्दर था और थोड़ी सी लाली भी झलक रही थी...उसके जिस्म की नक्काशी मस्त थी...कुल मिला कर आशीष को टाइम पास का मस्त साधन मिल गया था...रानी कुंवारी लगती थी...उम्र से भी और जिस्म से भी...उसकी छातियाँ भारी-भारी और कसी हुई गोलाई लिए हुए थी...नितम्बों पर कुदरत ने कुछ ज्यादा ही इनायत बक्षी थी...आशीष रह-रह कर अनजान बनते हुए उसकी गांड से अपनी जांघें घिसाने लगा...पर शायद उसको अहसास ही नहीं हो रहा था...या फिर क्या पता उसको भी मजा आ रहा हो!अगले स्टेशन पर डिब्बे में और जनता घुश आई और लाख कोशिश करने पर भी कृष्णा अपने चारों और लफ़ंगे लोगों को सटकर खड़ा होने से न रोक सकी...उसका दम घुटने सा लगा...एक आदमी ने शायद उसकी गांड में कुछ चुभा दिया...वह उछल पड़ी...क्या कर रहे हो?दिखता नहीं क्या?""ऐ मैडम; ज्यास्ती बकवास नहीं मारने का;ठंडी हवा का इतना इच शौक पल रैल्ली है...तो अपनी गाड़ी में बैठ के जाने को मांगता था..."आदमी बिघढ़ कर बोला और ऐसे ही खड़ा रहा...कृष्णा एकदम दुबक सी गयी...वो तो बस आशीष जैसों पर ही डाट मार सकती थी...कृष्णा को मुश्टंडे लोगों की भीड़ में आशीष ही थोडा शरीफ लगा...वो रानी समेत आशीष के साथ चिपक कर कड़ी हो गई, जैसे कहना चाहती हो,"तुम ही सही हो, इनसे तो भगवन बचाए!"आशीष भी जैसे उनके चिपकने का मतलब समझ गया;उसने पलट कर अपना मुंह उनकी और कर लिया और अपनी लम्बी मजबूत बाजू उनके चारों और बैरियर की तरह लगा दी...कृष्णा ने आशीष को देखा;आशीष थोड़ी हिचक के साथ बोला,"जी उधर से दबाव पड़ रहा है...आपको परेशानी ना हो इसीलिए अपने हाथ सीट से लगा लिए..."कृष्णा जैसे उसका मतलब समझी ही ना हो...उसने आशीष के बोलना बंद करते ही अपनी नजरें हटा ली...अब आशीष उसकी चुचियों को अन्दर तक और रानी की चूचियों को बहार से देखने का आनंद ले रहा था...कृष्णा ने उनको अब आशीष की नजरों से बचने की कोशिश भी नहीं की..."कहाँ जा रहे हो?..."कृष्णा ने लोगों से बचने के लिए धन्यवाद् देने की खातिर पूछ लिया..."मुंबई"आशीष उसकी बदली आवाज पर काफी हैरान ठा..."और तुम?""भैया जा तो हम भी मुंबई ही रहे हैं...पर लगता नहीं की मुंबई तक पहुँच पायेंगे...!"कृष्णा अब मीठी आवाज में बात कर रही थी..."क्यूँ ?"आशीष ने बात बाधा दी!"अब इतनी भीड़ में क्या भरोसा!"मैंने कहा है बापू को जयपुर से तत्काल करा लो; पर वो माने तब न!""भाभी!बापू को ऐसे क्यूँ बोलती हो?"रानी की आवाज उसके चिकने गलों जैसी ही मीठी थी..आशीष ने एक बार फिर कृष्णा की चूचियों को अन्दर तक देखा... उसके लड में तनाव आने लगा...और शायद वो तनाव रानी अपनी गांड की दरार में महसूस करने लगी...रानी बार-बार अपनी गांड को लंड की सीधी टक्कर से बचने के लिए इधर-उधर मटकाने लगी...उसका ऐसा करना उसकी ही गोल मटोल गांड के लिए नुक्सान देह साबित होने लगा...लंड गांड से सहलाया जाता हुआ और अधिक सख्त होने लगा...और अधिक खड़ा होने लगा...पर रानी के पास ज्यादा विकल्प नहीं थे...वो दाई गोलाई को बचाती तो लड बायीं पर ठोकर मारता...और अगर बायीं को बचाती तो दाई पर उसको लंड चुभता हुआ महसूस होता...उसको एक ही तरीका अच्छा लगा...वो सीधी खड़ी हो गयी...पर इससे उसकी मुसीबत और भयंकर हो गयी...बिलकुल खड़ा होकर लंड उसकी गांड की दरारों के बीचों बीच फंस गया...वो शर्मा कर इधर-उधर देखने लगी...पर कुछ नहीं बोली...आशीष ने मन ही मन एक योजना बना ली...अब वो इनके साथ ज्यादा से ज्यादा रहना चाहता था..."मैं आपके बापू से बात करू;मेरे पास आरक्षण के चार टिकट हैं...मेरे और दोस्त भी आने वाले थे पर वो आ नहीं पाए!मैं भी जयपुर से उसी में जाऊँगा कल रात को करीब 10 बजे वो जयपुर पहुंचेगी...तुम चाहो तो आगे का मुझे साधारण किराया दे देना!"आशीष को डर था कि किराया न मांगने पर कहीं वो और कुछ न समझ बैठे...लम्बा हो होकर!...उसका लंड रानी कि गांड में घुसपैठ करता ही जा रहा था..."बापू!"जरा इधर कू आना!कृष्णा ने जैसे गुस्से में आवाज लगायी..."अरे मुश्किल से तो यहाँ दोनों पैर टिकाये हैं!अब इस जगह को भी खो दूं क्या?"बुद्धे ने सर निकाल कर कहा...रानी ने हाथ से पकड़ कर अन्दर फंसे लंड को बहार निकलने की कोशिश की पर उसके मुलायम हाथों के स्पर्श से ही लंड फुफकारा...कसमसा कर रानी ने अपना हाथ वापस खींच लिया...अब उसकी हालत खराब होने लगी थी...आशीष को लग रहा था जैसे रानी लंड पर टंगी हुयी है...उसने अपनी एडियों को ऊँचा उठा लिया ताकि उसके कहर से बच सके पर लंड को तो ऊपर ही उठाना था...आशीष की तबियत खुश हो गयी...!रानी आगे होने की भी कोशिश कर रही थी पर आगे तो दोनों की चूचियां पहले ही एक दुसरे से टकरा कर मसली जा रही थी...बेचारी रानी एड़ियों पर कब तक खड़ी रहती;वो जैसे ही नीचे हुयी, लंड और आगे बढ़कर उसकी चूत की चुम्मी लेने लगा...रानी की सिसकी निकाल गयी...,"आःह्ह!""क्या हुआ रानी?"कृष्णा ने उसको देखकर पूछा..."कुछ नहीं भाभी!"तुम बापू से कहो न भैया से आरक्षण वाला टिकट लेने के लिए!"आशीष को भैया कहना अच्छा नहीं लगा... आखिर भैया ऐसे गांड में लंड थोडा ही फंसाते हैं...धीरे-धीरे रानी का बदन भी बहकने सा लगा...आशीष का लंड अब ठीक उसकी चूत के दाने पर टिका हुआ था..."बापू"कृष्णा चिल्लाई..."बापू" ने अपना मुंह इस तरफ निकला, इस तरह खड़े होने के लिए आशीष को घूरा, और फिर भीड देखकर समझ गया की आशीष तो उनको उल्टा बचा ही रहा है," क्या है बेटी?"कृष्णा ने घूंघट निकल लिया था,"इनके पास जयपुर से आगे के लिए आरक्षण की टिकट हैं;इनके काम की नहीं हैं...कह रहे हैं सामान्य किराया लेकर दे देंगे!"उसके बापू ने आशीष को ऊपर से नीचे तक देखा;संतुस्ट होकर बोला,"हम गरीबों पर ये बड़ा उपकार होगा...किराया सामान्य का ही लोगे न!"आशीष ने खुश होकर कहा," ताऊजी मेरे किस काम की हैं...मुझे तो जो मिल जायेगा...फायदे का ही होगा..."कहते हुए वो दुआ कर रहा था की ताऊ को पता न हो की टिकट वापस भी हो जाती हैं..."ठीक है भैया...जयपुर उतर जायेंगे...बड़ी मेहरबानी!"कहकर भीड़ में उसका मुंह गायब हो गया...आशीष का ध्यान रानी पर गया वो धीरे-धीरे आगे पीछे हो रही थी...उसको मजा आ रहा था...कुछ देर ऐसे ही होते रहने के बाद उसकी आँखें बंद हो गयी...और उसने कृष्णा को जोर से पकड़ लिया..."क्या हुआ रानी?"...सँभलते हुए वह बोली..."कुछ नहीं भाभी चक्कर सा आ गया था...अब तक आशीष समझ चूका था कि रानी चुदाई के मुफ्त में ही मजे ले गयी...उसका तो अब भी ऐसे ही खड़ा था...एक बार आशीष के मन में आई कि टोइलेट में जाकर मुठ मार आये...पर उसके बाद ये ख़ास जगह खोने का डर था... अचानक किसी ने लाइट के आगे कुछ लटका दिया जिससे आसपास अँधेरा सा हो गया...रानी कि गांड में लंड वैसे ही अकड़ा खड़ा था;जैसे कह रहा हो...अन्दर घुसे बिना नहीं मानूंगा मेरी रानी!लंड के धक्को और अपनी चूचियों के कृष्णा भाभी की चूचियों से रगड़ खाते-खाते वो जल्दी ही फिर लाल हो गयी...इस बार आशीष से रहा नही गया...कुछ तो रौशनी कम होने का फायदा...कुछ ये विश्वास की रानी मजे ले रही है... उसने थोडा सा पीछे हटकर अपने पेन्ट की जिप खोल कर रानी की गांड की घटी में खुला चरने के लिए अपने घोड़े को खुला छोड़ दिया...रानी को इस बार ज्यादा गर्मी का अहसास हुआ...उसने अपने नीचे हाथ लगा कर देखा की नीचे से कहीं गीली तो नहीं हो गयी;और जब मोटे लंड की मुंड पर हाथ लगा तो वो उचक गयी...अपना हाथ हटा लिया...और एक बार पीछे देखा...आशीष ने महसूस किया,उसकी आँखों में गुस्सा नहीं था...भाभी का और दूसरी सवारियों के देख लेने का थोडा डर जरुर था...थोड़ी देर बाद उसने धीरे-2 करके अपना कमीज पीछे से निकल दिया...अब लंड और चूत के बीच में दो दीवारें थी...एक तो उसकी सलवार और दूसरा उसकी कच्छी...आशीष ने हिम्मत करके उसकी गांड में अपनी उंगली डाल दी और उसमें से रास्ता बनाने के लिए धीरे-धीरे सलवार को कुरेदने लगा...योजना रानी को भा गयी...उसने खुद ही सूट ठीक करने के बहाने अपनी सलवार में हाथ डालकर नीचे से थोड़ी सी सिलाई उधेड़ दी...लेकिन आशीष को ये बात तब पता चली...जब कुरेदते-कुरेदते एकदम से उसकी अंगुली सलवार के अन्दर दाखिल हो गयी...ज्यों-ज्यों रात गहराती जा रही थी...यात्री खड़े-खड़े ही ऊँघने से लगे थे...आशीष ने देखा...कृष्णा भी खड़ी-खड़ी झटके खा रही है... आशीष ने भी किसी सज्जन पुरुष की तरह उसकी गर्दन के साथ अपना हाथ सटा दिया...कृष्णा देवी ने एक बार आशीष को देखा फिर आँखें बंद कर ली...आशीष अब खुल कर खतरा उठा सकता था...उसने अपने लंड को उसकी गांड की दरार से निकाल कर सीध में दबा दिया और रानी के बनाये रस्ते में से उंगली घुसा दी...अंगुली अन्दर जाकर उसकी कच्छी से जा टकराई!आशीष को अब रानी का डर नहीं था...उसने एक तरीका निकला...रानी की सलवार को ठोडा ऊपर उठाया...उसको कच्ची समेत सलवार पकड़ कर नीचे खीच दी...कच्छी थोड़ी नीचे आ गयी और सलवार अपनी जगह पर...ऐसा करते हुए आशीष खुद के दिमाग की दाद दे रहा था...हींग लगे न फिटकरी और रंग चौखा...रानी ने कुछ देर ये तरीका समझा और फिर आगे का काम खुद संभल लिया...जल्द ही उसकी कछी उसकी जांघो से नीचे आ गयी...अब तो बस हमला करने की देर थी...आशीष ने उसकी गुदाज जांघो को सलवार के ऊपर से सहलाया; बड़ी मस्त और चिकनी थी...उसने अपने लंड को रानी की साइड से बहार निकल कर उसके हाथ में पकड़ा दिया...रानी उसको सहलाने लगी...आशीष ने अपनी उंगली इतनी मेहनत से बनाये रास्तों से गुजार कर उसकी चूत के मुंहाने तक पहुंचा दी...रानी सिसक पड़ी... अब उसका हाथ आशीष के मोटे लंड पर जरा तेज़ी से चलने लगा... उत्तेजित होकर उसने रानी को आगे से पीछे दबाया और अपनी अंगुली गीली हो चुकी छूट के अन्दर घुसा दी...रानी चिल्लाते-चिल्लाते रुक गयी...आशीष निहाल हो गया...उसने धीरे-धीरे जितनी खड़े-खड़े जा सकती थी उतनी उंगली घुसाकर अन्दर बहार करनी शुरू कर दी...रानी के हाठों की जकदन बढ़ते ही आशीष समझ गया की उसकी अब बस छोड़ने ही वाली है...उसने लंड अपने हाथ में पकड़ लिया और जोर-जोर से हिलाने लगा...रानी ने अपना दबाव पीछे की और बड़ा दिया ताकि भाभी पर उनके झटकों का असर कम से कम हो...और अनजाने में ही वह एक अनजान लड़के की उंगली से चुदवा बैठी...पर यात्रा अभी बहुत बाकी थी...उसने पहली बार आशीष की तरफ देखा और मुस्कुरा दी! अचानक आशीष को धक्का लगा और वो हडबडा कर परे हट गया... आशीष ने देखा उसकी जगह करीब 45-46 साल के एक काले कलूटे आदमी ने ले ली...आशीष उसको उठाकर फैंकने ही वाला था की उस आदमी ने धीरे से रानी के कान में बोला,"चुप कर के खड़ी रहना साली... मैंने तुझे इस लम्बू से मजे लेते देखा है...ज्यादा हिली तो सबको बता दूंगा...सारा डिब्बा तेरी गांड फाड़ डालेगा कमसिन जवानी में...!"वो डर गयी उसने आशीष की और देखा...आशीष पंगा नहीं लेना चाहता था;और दूर हटकर खड़ा हो गया...उस आदमी का जायजा अलग था...उसने आगे हिम्मत दिखाते हुए रानी की कमीज में हाथ दाल दिया...रानी पूरा जोर लगा कर पीछे हट गयी; कहीं भाभी न जाग जाये...उसकी गांड उस कालू के खड़े होते हुए लंड को और ज्यादा महसूस करने लगी...रानी का बुरा हाल था...कालू उसकी चूचियां को बुरी तरह उमेठ रहा था...उसने निप्पलों पर नाखोन गड़ा दिए...रानी विरोध नहीं कर सकती थी... एकाएक उस काले ने हाथ नीचे ले जाकर उसकी सलवार में डाल दिया... ज्यों ही उसका हाथ रानी की चूत के मुहाने पर पहुंचा...रानी सिसक पड़ी...उसने अपना मुंह फेरे खड़े आशीष को देखा...रानी को मजा तो बहुत आ रहा था पर आशीष जैसे सुन्दर छोकरे के हाथ लगने के बाद उस कबाड़ की छेड़-छाड़ बुरी लग रही थी...अचानक कालू ने रानी को पीछे खींच लिया...उसकी चूत पर दबाव बनाकर...कालू का लंड उसकी सलवार के ऊपर से ही रानी की चूत पर टक्कर मरने लगा...रानी गरम होती जा रही थी...अब तो कालू ने हद कर दी...रानी की सलवार को ऊपर उठाकर उसके फटे हुए छेद को तलाशा और उसमें अपना लंड घुसा कर रानी की चूत तक पहुंचा दिया...रानी ने कालू को कसकर पकड़ लिया...अब उसको सब कुछ अच्छा लगने लगा था...आगे से अपने हाथ से उसने रानी की कमसिन चूत की फानको को खोला और अच्छी तरह अपना लंड सेट कर दिया...लगता था जैसे सभी लोग उन्ही को देख रहे हैं...रानी की आँखें शर्म से झुक गयी पर वो कुछ न बोल पाई...कहते हैं जबरदस्ती में रोमांस ज्यादा होता है...इसको रानी का सौभाग्य कहें या कालू का दुर्भाग्य...गोला अन्दर फैकने से पहले ही फट गया...कालू का सारा माल रानी की सलवार और उसकी चिकनी मोटी जाँघों पर ही निकल गया...! कालू जल्द ही भीड़ में गुम हो गया...रानी का बुरा हाल था...उसको अपनी चूत में लंड का खालीपन लगा...ऊपर से वो कालू के रस में सारी चिपचिपी सी हो गयी...गनीमत हुयी की जयपुर स्टेशन आ गया...वरना कई और भेढ़िये इंतज़ार में खड़े थे...अपनी-अपनी बारी के...जयपुर रेलवे स्टेशन पर वो सब ट्रेन से उतर गए...रानी का बुरा हाल था...वो जानबुझकर पीछे रह रही थी ताकि किसी को उसकी सलवार पर गिरे सफ़ेद धब्बे न दिखाई दे जाये...आशीष बोला,"ताऊजी, कुछ खा पी लें!बहार चलकर..."ताऊ पता नहीं किस किस्म का आदमी था,"बोला भाई जाकर तुम खा आओ! हम तो अपना लेकर आये हैं...कृष्णा ने उसको दुत्कारा"आप भी न बापू!जब हम खायेंगे तो ये नहीं खा सकता... हमारे साथ..."ताऊ-बेटी मैंने तो इसलिए कह दिया था कहीं इसको हमारा खाना अच्छा न लगे...शहर का लौंडा है न...हे राम!पैर दुखने लगे हैं..."आशीष-इसीलिए तो कहता हूँ ताऊजी...किसी होटल में चलते हैं... खा भी लेंगे...सुस्ता भी लेंगे...ताऊ-बेटा,कहता तो तू ठीक ही है...पर उसके लिए पैसे...आशीष-पैसों की चिंता मत करो ताऊजी...मेरे पास हैं...आशीष के ATM में लाखों रुपैये ठे...ताऊ-फिर तो चलो बेटा, होटल का ही खाते हैं...होटल में बैठते ही तीनो के होश उड़ गए...देखा रानी साथ नहीं थी...ताऊ और कृष्णा का चेहरा तो सफ़ेद जैसा हो गया... आशीष ने उनको तसल्ली देते हुए कहा"ताऊजी, मैं देखकर आता हूँ... आप तब तक यहीं बैठकर खाना खाईये...कृष्णा-मैं भी चलती हूँ साथ! ताऊ-नहीं! कृष्णा मैं अकेला यहाँ कैसे रहूँगा...तुम यहीं बैठी रहो...जा बेटा जल्दी जा...और उसी रस्ते से देखते जाना, जिससे वो आए थे...मेरे तो पैरों में जान नही है...नहीं तो मैं ही चला जाता...आशीष उसको ढूँढने निकल गया...आशीष के मन में कई तरह की बातें आ रही थी..."कही पीछे से उसको किसी ने अगवा न कर लिया हो!कही वो कालू..."वह स्टेशन के अन्दर घुसा ही था की पीछे से आवाज आई"भैया!"आशीष को आवाज सुनी हुयी लगी तो पलटकर देखा...रानी स्टेशन के परवेश द्वार पर सहमी हुयी सी खड़ी थी...आशीष जैसे भाग कर गया..."पागल हो क्या? यहाँ क्या कर रही हो?...चलो जल्दी..."रानी को अब शांति सी थी ..."मैं क्या करती भैया...तुम्ही गायब हो गए अचानक!""ए सुन! ये मुझे भैया-भैया मत बोल""क्यूँ?""क्यूँ! क्यूंकि ट्रेन में मैंने".....और ट्रेन का वाक्य याद आते ही आशीष के दिमाग में एक प्लान कौंध गया!"मेरा नाम आशीष है समझी! और मुझे तू नाम से ही बुलाएगी...चल जल्दी चल!"आशीष कहकर आगे बढ़ गया और रानी उसके पीछे-पीछे चलती रही...आशीष उसको शहर की और न ले जाकर स्टेशन से बहार निकलते ही रेल की पटरी के साथ-साथ एक सड़क पर चलने लगा...आगे अँधेरा था...वहां काम बन सकता था!"यहाँ कहाँ ले जा रहे हो, आशीष!"रानी अँधेरा सा देखकर चिंतित सी हो गयी..."तू चुप चाप मेरे पीछे आ जा... नहीं तो कोई उस कालू जैसा तुम्हारी...जान गयी न...आशीष ने उसको ट्रेन की बातें याद दिला कर गरम करने की कोशिश की..."तुमने मुझे बचाया क्यूँ नहीं...इतने तगड़े होकर भी डर गए"रानी ने शिकायती लहजे में कहा..."अच्छा!याद नहीं वो साला क्या बोल रहा था...सबको बता देता..."रानी चुप हो गयी..."आशीष बोला,"और तुम खो कैसे गयी थी... साथ-साथ नहीं चल सकती थी...?"रानी को अपनी सलवार याद आ गयी..."वो मैं...!"कहते-कहते चुप हो गयी..."क्या?" आशीष ने बात पूरी करने को कहा..."उसने मेरी सलवार गन्दी कर दी...मैं झुक कर उसको साफ़ करने लगी...उठकर देखा तो...."आशीष ने उसकी सलवार को देखने की कोशिश की पर अँधेरा इतना गहरा था की सफ़ेद सी सलवार भी उसको दिखाई न दी...आशीष ने देखा...साइड वाले अतिरिक्त पटरी पर एक खली डिब्बा है...आशीष काँटों से होता हुआ उस रेलगाड़ी के डिब्बे की और जाने लगा..."ये तुम जा कहाँ रहे हो?,आशीष!""आना है तो आ जाओ...वरना भाड़ में जाओ...ज्यादा सवाल मत करो!"वो चुपचाप चलती गयी...उसके पास कोई विकल्प ही नहीं था...आशीष इधर-उधर देखकर डिब्बे में चढ़ गया...रानी न चढ़ी...वो खतरे को भांप चुकी थी," प्लीस मुझे मेरे बापू के पास ले चलो..."वो डरकर रोने लगी...उसकी सुबकियाँ अँधेरे में साफ़-साफ़ सुनाई पद रही थी..."देखो रानी! दरो मत, मैं वही करूँगा बस जो मैंने ट्रेन में किया था...फिर तुम्हे बापू के पास ले जाऊँगा!अगर तुम नहीं करोगी तो मैं यहीं से भाग जाऊँगा...फिर कोई तुम्हे उठाकर ले जाएगा और चोद चाद कर रंडी मार्केट में बेच देगा... फिर चुद्वाती रहना साडी उम्र..."आशीष ने उसको डराने की कोशिश की और उसकी तरकीब काम कर गयी...रानी को सारी उम्र चुदवाने से एक बार की छेड़छाड़ करवाने में ज्यादा फायदा नजर आया...वो डिब्बे में चढ़ गयी...डिब्बे में चढ़ते ही आशीष ने उसको लपक लिया...वह पागलों की तरह उसके मैले कपड़ों के ऊपर से ही उसको चूमने लगा...रानी को अछा नहीं लग रहा था...वो तो बस अपने बापू के पास जाना चाहती थी..."अब जल्दी कर लो न...ये क्या कर रहे हो?"आशीष भी देरी के मूड में नहीं था...उसने रानी के कमीज को उठाया और उसी छेद से अपनी ऊँगली रानी के पिछवाड़े से उसकी चूत में डालने की कोशिश करने लगा...जल्द ही उसको अपनी बेवकूफी का अहसास हुआ...वासना में अँधा वह ये तो भूल ही गया था की अब तो वो दोनों अकेले हैं...उसने रानी की सलवार का नाडा खोलने की कोशिश की...रानी सहम सी गयी..."छेद से ही डाल लो न...!""ज्यादा मत बोल...अब तुने अगर किसी भी बात को "न " कहा तो मैं यहीं छोड़ कर तभी भाग जाऊँगा...समझी!" आशीष की धमकी काम कर गयी...अब वो बिलकुल चुप हो गयी...आशीष ने सलवार के साथ ही उसके कालू के रस में भीगी कच्छी को उतार कर फैंक दिया कच्छी डिब्बे से नीचे गिर गयी...रानी नीचे से बिलकुल नंगी हो चुकी थी...आशीष ने उसको हाथ ऊपर करने को कहा और उसका कमीज और ब्रा भी उतार दी...रानी रोने लगी..."चुप करती है या जाऊ मैं!"







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