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रविवार, 11 मार्च 2012

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मेरी नयी पोस्टिंग एक गांव मे अध्यापक के रूप में हुयी थी। मैं वैसे देखने मे 6 फ़ुट का साधारण युवक था। पर दोस्त कहते थे कि मुझमे
असाधारण सेक्स अपील है। लडकिया मेरी तरफ़ जल्दी ही आकर्षित हो जाया करती थी। मेरे बहुत सी लडकियो से शारिरिक सम्बन्ध भी थे। मैने चुदाई का कितनी ही बार आनन्द उठाया था। बहुत सी लडकिया चुदाई की अपेक्षा गान्ड मराने मे विश्वास रखती थी, उन्हे लगता था कि चुदाने से कही बच्चा ना ठहर जाये। मुझे स्कूल के पास ही एक रूम मिल गया था। मैं छठी कक्षा से लेकर बाहरवीं कक्षा तक गणित पढाता था। बाहरवी कक्षा की लडकियां बडी थी। ज्यादातर लडकियां गांव के स्टाईल की थी, चेहरे पर कठोरता और जंगलीपना, बातों मे अक्खडपन उनमे भरा था। पर उनमे से एक लडकी मीना मुझे शहर की रहने वाली प्रतीत हुई। उसका अन्दाज़ बताता था कि वो गांव की नही थी। बातचीत मे वो
तमीज वाली थी। शहर की लडकियो की तरह वो आधुनिक तौर तरीके वाली थी। अपने आप को वो सेक्सी भी बनाने की कोशिश करती थी। वो अपने आप को बहुत संवार कर आती थी। उसके स्तन भी दूसरो से उन्नत थे। चूतड़ भी कुछ भारी से थे। स्कूल ड्रेस की कमीज़ भी वो कुछ ऐसे पहनती थी कि उसका स्तन झांकने से दिख जाता था। उसकी ओर मैं जल्दी आकर्षित हो गया। उसकी अदाये मुझे भाने लगी थी। स्कूल के बाद वो मुझसे अकसर सवाल पूछने आ जाती थी और उसकी कमीज़ मे से अपने स्तनो का दर्शन जान करके कराती थी। शायद वो कुछ इशारे भी करती थी जो मेरी समझ के बाहर थे। उसके स्तन देख - देख कर मेरे शरीर मे सनसनी फ़ैल जाती थी। लौडा खडा होने लगता था। लगता था कि हिम्मत करके उसकी चूंचियां मसल डालू। बहुत समय निकल जाने के पश्चात मैने ही पहल करना उचित समझा। "मीना, तुम्हारी मेथ्स बहुत वीक है, तुम्हे ट्युशन की जरूरत है " मैने जान करके उसके ही मन की बात कर दी। वो तो जैसे तैयार ही थी, उसने तुरन्त
कहा "सर, मैं शाम को ही बता दूंगी… आप शाम को मम्मी से मिल लेना" उसकी रजामन्दी शायद मैं जानता था। "ठीक है, मै शाम को आउंगा, मम्मी से कह देना" उत्साहित हो कर मैने कहा। शाम का समय बडा ही मनमोहक हो रहा था। गांव की ठन्डी हवा मेरे मन को बहुत
भाती थी। मैं टहलता हुआ मीना के घर पहुंच गया। शाम को मीना और उसकी मम्मी दोनो ही मेरा इन्तज़ार कर रहे थे। उसकी मम्मी को देखते ही मैं तो दंग रह गया। सुन्दर, गोरी, लम्बी और गजब का फ़िगर…बला की खूबसूरत, चेहरे पर मधुर मुस्कान, मैं देखता ही रह गया। मेरी तन्द्रा उसकी मम्मी ने तोडी. "कहां खो गये विजय बाबू… आईये ना…" "जी… जी हां, धन्यवाद…" कह कर मैं अन्दर आ गया। बातचीत का सिलसिला चला तो पता चला कि उसके पति कनिष्ठ अभियन्ता थे और अधिकतर यात्रा पर रहते थे। वो लोग जयपुर के रहने वाले थे। नहर परियोजना मे कार्य करते थे। मुझे मीना को पढाने के लिये शाम का समय निर्धारित कर दिया था। मीना टेबल पर कुछ इस अन्दाज़ से बैठती थी कि उसके छोटे छोटे गोल स्तन बडे नीबू के साईज़ के साफ़ दिखते थे। कभी कभी तो मै उनको देखते हुए इतना खो जाता था कि मीना मेरी इस हरकत को मजे लेते हुए दिलचस्पी से देखती रहती थी। अब मै मीना के स्तन रोज़ ही भली प्रकार से देख सकता था। घर पर तो अब वो भी मुझे पूरा मौका देती थी अपनी चूंचिया के दर्शन के लिये। मैं उसे सवाल समझाने के बहाने उसके पास जाकर लिखता था और कभी कभी उसके स्तनो को छू लेता था। वो भी जान करके मेरी बाहो पर अपने स्तन दबा देती थी। एक दिन मुझे मौका मिल गया…आग तो दोनो ओर बराबर थी बस मौका नही मिला था। शाम को उसकी मम्मी किसी से मिलने चली गयी थी…और आज वो अकेली थी। वो भी चाह रही थी कि आज तो कुछ ना कुछ तो छेडछाड हो, और मै भी कुछ करने को उतावला था। उसकी आंखे मुझे बार बार निमंत्रण दे रही थी। उसके शरीर की हर अदा मे आज
सेक्स उभर कर नजर आ रहा था। लग रहा था कि आज लोहा गरम है। टेबल पर पढाते समय मैने जानके उसके हाथ पर हाथ रख दिया। उसने एकबारगी मुझे कनखियो से निहारा, फिर वैसे ही बैठी आगे होने वाली हरकत का इन्तज़ार करने लगी। मेरी हिम्मत और बढी और उसका हाथ दबा दिया। उसका जवाब तुरन्त मिला और मेरे हाथ को उसने पकड लिया। मुझे उसने सीधी नजरों से निहारा और घूरती रही। मेरी नजरे भी उसकी नजरों से मिल गयी। एक बार तो हम एक दूसरे की आंखो मे खो गये। "मीना, तुम खूबसूरत हो?" एकाएक ठन्डी हवा का झोंका आया, उसके बाल लहरा उठे, उसके सुन्दर मुखडे पर मुस्कराहट तैर गयी। वह और सेक्सी लगने लगी "ना, सर जी, मेरी मां को कभी ध्यान से देखा है…खूबसूरती उसे कहते है" उसने अपनी मां की तारीफ़ की। "हां, उनकी बराबरी तो कोई नही कर सकता है…तुमने भी तो खूबसूरती मां से
ही तो पायी है" "सर, ऐसा मत कहो, मैं बहुत कमजोर मन की हू, मुझे कुछ हो जायेगा…" उसकी आंखे झुकने लगी। मैने उसका हाथ अपनी ओर खींचा। उसकी बडी बडी आंखे एक बार फिर मेरी ओर उठ गयी। "मीना, प्लीज, आज अपने आप को मत रोको…कितने दिन से मेरी नजर तुम्हारे इन नीबुओ पर है… बस एक बार इन्हे छू लेने दो…" "हाय्…सर जी…नहीं अभी नहीं…फिर कभी…अभी तो कच्चे है ना…" मेरा हाथ
छुडा कर वो खडी हो गयी और उसने अपना सुन्दर मुख अपने दोनो हाथो से छुपा लिया। मेरा लण्ड कठोर होने लगा था। मुझमे वासना हिलोरे मारने लगी थी। मैं भी खडा हो गया और उसके पीछे जाकर उसकी कमर मे हाथ डाल कर कस लिया। अपना लण्ड उसके चूतडो पर गडा दिया। उसने भी अपनी चूतडो का जोर मेरे लण्ड पर लगा दिया। उसका स्कर्ट लण्ड के साथ उसकी चूतडो की दरारो मे घुस पडा। मैने अपने हाथ उसके उरोजो पर रख दिये। नीबू अधपके थे, कडे थे पर नरमायी लिये हुए थे। "सर जी…" "नहीं विजय कहो…" "विजय्…बस हो गया…अब मन मचल उठेगा… फिर सब कुछ आपे से बाहर हो जायेगा…प्लीज छोड दो ना" "मीना कुछ करेंगे नही…बस ऊपर ही ऊपर से आनन्द लेंगे…" मैने उसे बहलाते हुए कहा "तो फिर हट जाओ…नीचे तो देखो …पूरा अन्दर घुसा रखा है…पूरा आनन्द नही देना है तो फिर ये सब क्यू कर रहे हो" वो तडप सी उठी…और पलट कर मेरा खडा लण्ड पकड लिया। "अरे मीना, ये क्या किया…मै तो मर गया…अब तुझे कौन बचायेगा…" "बचना किसको है…इतना मोटा है कि मस्त कर देगा…" उसकी आवाज नशीली हो उठी। "मसल दे इसे…दबा दे…मजा आ रहा है…।" "चलो फिर बाथरूम मे…जल्दी से आ जाओ…" लण्ड का साईज़ देखते ही वो मचल उठी। मेरा हाथ खींचते हुए मुझे बाथरूम मे ले आयी। "सुनो…अगाडी को छोडो…पिछाडी मार दो…" मीना ने मुझे समझाया "अरे आनन्द तो अगाडी मे है…" " अब बस, चुप्…।" उसने अपनी स्कर्ट ऊंची की और पेण्टी उतार दी। थोडी सी झुक कर घोडी बनते हुए अपने चूतडो को मेरी तरफ़ उभार दिये। उसके खूबसूरत से
गोरे गोरे चमकदार चूतड, सामने आ गये। " अरे उतारो ना अपनी पेण्ट…निकालो बाहर…थोडी हवा तो खिलाओ उसे…" उसकी व्याकुलता मैं समझ रहा था। मैने अपनी पेण्ट और अंडरवीअर नीचे सरका दी और मेरा मदमस्त लौडा बाहर निकल कर झूम उठा। मीना लण्ड को देखते ही नशे मे मस्त हो गयी। "अब इसे मेरी कोमल ग़ान्ड मे…जल्दी कर यार…" उसका उतावलापन देखते ही बनता था. मैने पास मे पडी तेल की शीशी से तेल लेकर उसकी गाण्ड के छेद पर लगा दिया। "अब नाटक ही करते रहोगे या…हाय रे…तुम बडे खराब हो" मैं उसकी बातों से
बहुत उत्तेजित हो उठा था। मैने उसकी चिकनी गाण्ड के छेद मे अपना लण्ड रखकर दबा दिया। लण्ड फ़च से गाण्ड मे उतर गया। उसे जरा भी दर्द नही हुआ बल्कि एक मधुर सी सीत्कार निकली। “आह्…घुसेड दे रे पूरा…मस्त कर दे मेरी गाण्ड को...” उसकी आह ने मुझे भी आनन्दित कर दिया। उसके चूतडो को दबाते हुए जोर लगा कर अपना लण्ड उसकी गहराईयो मे उतारने लगा। उसने भी चूतडो को हिलाते हुए लौडा पूरा भीतर समेट लिया। “साला मस्त लण्ड है विजय…लंबा भी है और मोटा भी…मस्त गाण्ड की पिलाई करेगा” अब मैने हौले हौले से धक्का मारना शुरू कर दिया। उसकी गाण्ड बेहद नरम थी और लौडा लेने मे अनुभवी थी। मीना की गाण्ड लगता था बहुत बार चुद चुकी थी। गाण्ड मराने की वो अभ्यस्त थी, उसे दर्द के बजाये गुदगुदी हो रही थी और चूतडो को एक विशेष लय मे हिला हिला कर मरवा रही थी। मुझे भी औरो की अपेक्षा अधिक मजा आ रहा था। मेरा लण्ड मस्ती मे और फूला जा रहा था। उसकी सिसकारिया भी अब अधिक निकल रही थी। अपनी गाण्ड को आगे पीछे हिलाते हुए गाण्ड को मारने लगा। कुछ देर गाण्ड चोदने के बाद अचानक मैने कुछ सोचा और उसकी गाण्ड मे से लण्ड निकाल कर उसकी चूत मे डाल दिया। उसे तेज मजा आया…“आह्ह्ह रे मर गयी…ये क्या किया विजय्…इतना मजा…जल्दी कर और घुसा दे...” उसकी चूत का मजा कुछ ओर ही था…मेरा लण्ड और कडक हो गया और मस्ती मे भर गया। “ घुसा दे भीतर तक घुसेड दे रे…हाय रे…मेरी मां…चोद दे रे...” उसकी बैचेनी बढती जा रही थी। मैने भी अवसर का फ़ायदा उठाया। उसे भी चुदना सुहाना लग रहा था। उसे चूत चुदवाने मे असीम आनन्द आ रहा था। मेरी कमर तेजी से चलने लगी। वो चुदने लगी और मुख से सीत्कारे निकलने लगी… “हाय राम जी…कस कर चोद दे... मैया री…दे लण्ड्…जरा दबा के चोद दे रे…” मेरा लण्ड किसी इन्जन के पिस्टन की भांती सटासट चलने लगा। उसने पीछे हाथ बढा कर मेरे चूतड पकड लिये और जोर से खींचने लगी। “मरी रे…हाय मां…मेरी तो निकल रही है…ऊईईई…चोद…आह रे…गयी रे…” और उसके शरीर ने यौवन रस छोड दिया। लण्ड चूत मे ढीला पड गया। चूत पानी से भर गयी। फ़च फ़च की आवाजे आने लगी। “हाय रे विजय्…मम्मी को भी ऐसे ही चोद देना…” मैने उसकी बातो को मजाक मे लेते हुए लण्ड बाहर निकाला और एक बार फिर गाण्ड मे पेल दिया। “मम्मी को…मुझे घर से बाहर निकाल देगी…” मैने लण्ड गाण्ड मे अन्दर बाहर करते हुए कहा। “सच मे विजय…आपका लण्ड दमदार है…मम्मी मस्त हो जायेगी, देखो प्यार से चोदना मेरी मां को…वो बहुत अच्छी है…” “अब चुप हो जा मीना…मुझे चोदने दे” मैने अपना चोदने मे ध्यान केन्द्रित किया और गाण्ड मारने लगा। गाण्ड की दीवारो से घर्षण करता हुआ मेरा लण्ड बेहाल हो रहा था। मीना के नीबुओ को मसल मसल कर लाल कर दिये थे। वो जोर जोर से सिसकारिया भर रही थी, इससे मेरी उत्तेजना बढ रही थी। अचानक मुझे लगा कि बस…सारा वीर्य लण्ड मे सिमटता सा लगा। मीना ने झटके से मेरा लौडा बाहर खींच लिया और मुह मे भर लिया और अपना मुख चोदने लगी। मेरे लण्ड को दबा कर घुमा घुमा कर निचोडने लगी और लण्ड के हाल को निहारने लगी और तभी मेरा यौवन रस भी उबल पडा…और फ़ुहारे मारता हुआ उसके चेहरे पर आ गिरा…उसका मुख पूरा खुल गया और सारा वीर्य उसके मुह मे लबालब भर गया। उसने अपना मुह एक तरफ़ करके मुह से एक पिचकारी निकाल कर एक तरफ़ सारा वीर्य उगल दिया। और फिर से लौडे को चूसने लगी। सब कुछ अब शान्त था। हमने हाथ मुह धो कर अपने कपडे व्यवस्थित किये और फिर से टेबल पर आकर बैठ गये। “हा…मम्मी वाली क्या बात बता रही थी मीना…” “देखो बुरा मत मानना प्लीज़…” “ कहो तो…बुरा नही मानूंगा” “चुदना तो मम्मी को था…पर मन नही माना…इसलिये पहले मैने चुदा लिया” “क्या ?” “हा, जब मम्मी ने आपको स्कूल मे देखा था तो वो आप पर लट्टू हो गयी थी…आप पर फ़िसल गयी थी, मुझे कहा था कि सर जी को पटाओ” “फिर्…” “आप तो निकले फ़िसल पट्टू, मेरी चूंचियो पर ही मर मिटे, आपका लण्ड खडा होते देख कर मै समझ गयी थी कि बस मम्मी का काम हो गया।“ “चल हट…ऐसा भी क्या?” “क्यू ! मम्मी को देखते ही तुम्हारे मुह मे पानी नही आ गया था, फिर मम्मी के पास भी तो एक प्यारी सी चूत है“ मेरे मन की बात मीना कहे जा रही थी। तभी टेबल पर चाय नाश्ता आ गया। मैं बुरी तरह से चौंक पडा। “अरे आप कब आयी?” “तब जब तुम दोनो बाथरूम मे थे…” “जी !!! “ मैं लगभग घबरा गया। “जी हा… आपका उस समय पूरा अन्दर था” उसकी मम्मी ने हंसते हुए कहा “जी सॉरी…गलती इसकी नही…मेरी थी…ऑण्टी” “ऑण्टी नही सरोज्…पर बात जब पिछाडी की थी तो तुमने अगाडी क्यू काम मे लिया, अगर कुछ हो जाता तो…” उन्होने सब कुछ देख लिया था…यानी पूरी चुदाई…मेरी नजरे जमीन मे गडी जा रही थी। मुझे लगा सरोज अब मुझे लिफ़्ट नही देगी। “ मम्मी अब बस करो ना…देखो ना विजय को कितना खराब लग रहा है” मीना ने विरोध किया। सरोज ने मीना को आंख मार दी। मीना समझ गयी। “अच्छा विजय, अब उठो और मां को एक चुम्मा दे दो…और सब भूल जाओ” मैने सरोज की ओर देखा। उसकी नजरो मे प्यार था, एक निमन्त्रण था। मैं धीरे से उठा और सरोज की तरफ़ बढ गया।

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