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बुधवार, 17 अप्रैल 2013

भारतीय संस्कारी चूत के साथ चुदाई का खेल

मैं आप सभी के सामने गंगा की चुदाई को बताने जा रहा हूँ। जिसकी चुद्याई करना मुझे आज भी बहुत पसंद है | वो मेरे सामने वाले घर में रह करती थी और हम दोनों की बालकोनी से एक दूसरे का घर दिखाई दिया करता था | वो संस्कारी भारतीय लड़की थी फिर भी मुझे उसकी चूत की प्यास बढती ही चलाई गयी| आज तक अगर आप सोचते हैं की एक संस्कारी लड़की अपनी चुदाई को लेकर बिलकुल भी दिलचस्प नहीं होती यह उनके साथ चुदाई करना दिलचस्प नहीं होता तो आप अब आप अपनी बात को गलत मान लेंगे| दोस्तों मैं उससे अक्सर अपनी बालकोनी से हाय हल्लो करनी की कोशिह्स करता था। जिस पर वो एक बार ही जवाब देती और अंदर को चली जाती| मैं सोच रहा था न जाने कैसी उसकी कट मारू और एक दिन उसके घर पर जब उसके भई का जन्मदिन था तो उसके घर वालों ने मेरे पुरे परिवार को भी बुलाया था| मैं वहाँ जब गया तो मुझे बिलकुल भी भाव नहीं दे रही था। मैं उससे बात करने के लिए लाख कोशिश करने लगा| जब मैं तंग आ गया तो में उसके रूम में गया और उसे अकेले देख बोला, तुम मुझसे बात क्यूँ नहीं करती..?? वो कहने लगी मैं क्यूँ करूँ..? और मेरे मुंह से भी निकल गया क्यूंकि मैं तुमसे प्यार करता हूँ..!! यह कहते ही वो एक दम चुप हो गयी| मैं उससे जाकर कसके लिपट गया| वो कहने लगी पहले मुझे छोडो..!! पर मैं उसे छोड़ ही नहीं रहा था और उसके हाथ को सहलाते हुए उसके होंठों को चुमते हुए मज़े में था| अब उसकी हिम्मत भी बंद होने लगी और हाथों में ढील बढती चली गयी| वो भी सांसें तेज लेने लगी थी और मैं दरवाज़ा भी बंद दिया था| मैं उसके चुचों को दबा रहा था और वो अपनी आँखों को मूंदें बस मिसमिसा रही थी, चोदो मुझे. . .!! मैंने उसे चुमते हुए उसेक पूरे कपड़े खोल दिए और उससे लिपटते हुए उसके चुचों को मसलता हुआ पीने लगा था | वो मेरे सामने बस पैंटी में ही थी और मैं अब अपने हाथ को हौले हौले उसकी पैंटी में भी अंदर घुसाते हुए उसकी चूत में सहला रहा था | वो अब बिलकुल निढाल पड़ी हुई बस अपने बदन की कामोत्तेजना में बेहोश सी हो चुकी थी और अब मैंने उसकी चूत के अंदर अपनी उंगलियां फिर रहा था | वो भी अपने चुचों को मसलती हुई अब मुझे अचानक से सहयोग करने लगी जैसी चुदाई की कितनी बड़ी शौक़ीन है | मैं पहले उकसी चूत को ऊँगली करने लगा और उसकी चूत का हल्का हल्का पानी निकल रहा था | वो बेबस सी लग रही थी न अपने आप को रोक पा रही थी और ना ही अपनी चुदाई की आकान्शयों को रोक प् रही थी | मेरी देरी न करते हुए अपने लंड को उसकी चूत में घुसा डाला और चींख निकलती हुई खून बह रहा था | उसकी चूत के टांकें अब खुल चुके थे और अब वो डर के मरे रोने भी लगी, यह तुमने क्या कर दिया. .!! अब मैं फिरसे अपने लंड को उसकी चूत में धंसाए जोर – जोर का झटका मारने लगा जिससे उसकी उसका दर्द तो गायब हो चूका था और अब वो मज़े लुट रही थी अब भी पाने चुचों को मसलते हुए | उस दिन के बाद से मैंने ना उससे कभी बात की ना ही देखा पर वो अब अपनी चूत की प्यास को मुझसे बात अरने की कोशिश करती पर मैंने आज ता उसे भाव नहीं दिया पर चुदाई के देसी खेल को ज़रूर याद करता हूँ |

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