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बुधवार, 18 अप्रैल 2012

मेरी पहली मांग भराई-2


अब मैं अपनी कहानी को आगे बढ़ाती हूँ। जैसे कि मैंने बताया था कि किस तरह गाँव के मनचले मेरे और मेरी बिगड़ी हुई सहेलियों के आगे-पीछे मंडराते थे और हम भी उनका हौंसला बढ़ाने में कसर नहीं छोड़ती थी। यही कारण था कि सबका हौंसला हमारे प्रति बढ़ चुका था। खैर! उस दिन तो मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि लल्लन मुझे इस तरह दबोच लेगा, मैं तो अपनी मस्ती में खोई घर लौट रही थी अकेली! ऊपर से गर्मी थी, लेकिन लल्लन ने तो मानो उस दिन घर से निकलते वक़्त धार लिया था कि आज आरती की जवानी के रस में खुद को भिगोना ही भिगोना है। उसने मुझे बाँहों में लेकर खूब चूमा, मेरी कुर्ती उतार दी फिर उसने ब्रा खोल मेरे अनछुए चुचूकों को चूसा और फिर जमकर मेरे होंठों का रसपान किया। इस सब के बीच मैंने कई बार उसको अपने से अलग करने की नाकाम कोशिश भी की लेकिन अलग नहीं हो पाई और वो मेरे बदन के साथ मनमानी करता रहा। पहली बार किसी मर्द का स्पर्श पाकर मैं भी उत्तेजित हो गई थी और सब मर्यादा भूल उसको अपना जिस्म सौंपने तक चली गई थी। लेकिन आखिर मैंने उससे अलग होने को कहा तो ना जाने वो कैसे मान गया, मुझे खुद समझ नहीं आई कि इतना ज़बरदस्त मौका उसने कैसे छोड़ दिया। ना जाने कब उसने मेरा नाड़ा ढीला करके उसका एक सिरा पकड़ लिया था, बोला- ठीक है जाओ! मेरी जान जाओ! लेकिन कब तक और कहाँ तक भागोगी? आखिर तुम्हे लल्लन की होना पड़ेगा! हाँ! हाँ! पक्का! मैं जैसे ही उठी, मेरी सलवार खुल कर नीचे गिर गई और मेरे नाड़े का एक छोर लल्लन ने पकड़ रखा था। हाय! यह क्या हो गया राम जी? बोला- राम जी यहाँ नहीं हैं जान! यहाँ तेरे लल्लन जी हैं! मैंने दोनों हाथ अपनी नंगी जांघों पर रख दिए। करती तो क्या! सच में मैं तो पूरी तरह से उसके बुने जाल में फंस चुकी थी। जैसे ही ऊपर से नंगी हुई, बोला- क्या माल है तू आरती! उसको छुपाया तो बोला- कितनी मुलायम और गोरी जांघें हैं तेरी! उसने उन पर हाथ रख कर सहला दिया- हाय, प्लीज़ छोड़ो मुझे! उसने सलवार पकड़ पीछे रख दी और मुझे अपने ऊपर खींच लिया। उसने अपनी पैंट उतार दी, सिर्फ अंडरवीयर में था और उसका तंबू बन चुका था। हाय राम जी! आपने क्यूँ उतार दी? तेरे लिए आरती रानी! तेरे लिए! तूने मुझे अपना हुस्न दिखाया, अपनी जवानी दिखाई! तो मेरा फ़र्ज़ बनता है अपनी मर्दानगी दिखाने का! दोनों ही सिर्फ एक-एक वस्त्र में थे। उसने मुझे पकड़ अपने नीचे डाल लिया और वो मुझ पर हावी होने लगा। मैं भी पिघलने लगी। आखिर एक जवान लड़की एक जवान मर्द के साथ एकदम नंगी, वो भी ऐसी जगह पर! उसने जम कर मेरे मम्मे चूसे, मेरे चुचूक काटे, कभी-कभी मेरा पूरा अनार अपने मुँह में लेकर निचोड़ देता, उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और अपने कच्छे में घुसा दिया। जैसे ही मैंने उसको छुआ, मेरे तन-बदन में जवानी की आग भड़क उठी, उसने मेरी पैंटी भी उतार फेंकी। और जैसे ही उसका हाथ मेरी तपती चूत पर आया, हाथ लगते मैं भड़क उठी। हाय साईं! यह क्या कर रहे हो? तेरी जवानी लूटने की ओर पहला कदम बढ़ाया है! मत करो ना! मैं मर जाऊँगी! अगर ना छोड़ा तब भी, और अगर छोड़ भी दिया तब भी! वो कैसे? अगर मैंने तुझे चूत मारने दी तो मेरी सुहागरात तो कुंवारापन लेकर सेज पर जाने का सपना ख़त्म और अगर ना करने दिया तो अब मर जाऊँगी। छोड़ो ना जान! बस चुपचाप रहो! उसने लौड़ा निकाल लिया और पहले खुद सहलाया फिर मुझे दिखाते हुए बोला- देख मेरा लौड़ा! असली मर्द का संपूर्ण लौड़ा! मैंने पकड़ा तो वो फड़फड़ा उठा। हाय यह तो उछल रहा है? तेरी जवानी है ही ऐसी मेरी जान! उसने मेरी गर्दन पर हाथ रख नीचे की तरफ दबाव दिया- चूमो इसको मेरी जान! नहीं-नहीं! इसको चूसते नहीं हैं! जान सब चूसती हैं, अपनी सहेली से पूछना! बता देगी! चलो! जैसे मैंने मुँह खोला, उसने मुँह में घुसा दिया और आगे-पीछे करने लगा। मुझे उसका स्वाद अच्छा लगा तो आराम से चूसने लगी, मुझे उसका लौड़ा चूसने में बेहद मजा आ रहा था। फिर उसने मुझे लिटा मेरी टाँगें खोल बीच में बैठ कर अपनी जुबान मेरी चूत पर लगा दी और चाटने लगा, जीभ घुसा-घुसा कर छेड़ने लगा तो मैं पागल हो गई और गांड उठाने लगी। वो जान गया था कि मुझे किस चीज की ज़रूरत है। उसने तुरंत अपना लौड़ा मेरी गुफा के मुँह पर रख दिया और धीरे से धक्का लगाना चाहा पर लौड़ा फिसल गया। मैं पागल होने लगी- घुसा दो ना! हाँ! हाँ! अभी घुस जाएगा मेरी जान! लल्लन, मुझे कभी छोड़ना मत! कभी नहीं! अब तो तेरी जवानी आये दिन और निखरेगी। उसने थूक लगाया दुबारा टिकाया, मैंने हाथ नीचे ले जाकर पकड़ लिया। इस बार उसने जोर देकर धक्का मारा, मानो मेरे कंठ में हड्डी फंस गई हो! दर्द के मारे मेरी आवाज़ निकलनी बंद हो गई थी, मैं तड़फ रही थी, हाथ पैर चलाने की पूरी कोशिश की, उसने तो दूसरे धक्के में पूरा अन्दर घुसा दिया। मैं रोने लगी। बोला- नहीं जा रहा था तो जोर लगाना पड़ा! बस अभी देखना, मेरी आरती खुद कहेगी लल्लन चोद और चोद! बड़ी मुश्किल से बोली- मैं जिंदा बचूंगी तो तब ही कहूँगी ना! मुझे छोड़ दे! साली खेत में पहला मिलन हुआ, जब सब कुछ हो गया अब छोड़ कैसे दूँ? अब तो बस चोद दूंगा। फाड़ दी मेरी चूत तूने! हां फाड़ दी! रुकने के बाद आधा निकाल फिर घुसा दिया। उसे राहत मिली। देखते ही आराम से घिसने लगा मेरी चूत की दीवारों से घिस-घिस कर घुसने लगा। तस्वीर बदल चुकी थी, सच में मेरी गांड हिलने लगी, कमर खुद गोल-गोल हिलते हुए लौड़े का मजा लेने लगी। उसकी चुदाई में एकदम से तेज़ी आई और लल्लन मुझे जोर-जोर से चोदने लगा और फिर आखिर उसने मेरी कुंवारी चूत को मरदाना रस से भिगो दिया। सारा दर्द मिट गया था, हम दोनों हांफने लगे थे। मजा आया ना आरती? हाँ बहुत आया! बहुत दिनों से तुझे अपनी बनाने की ताक में था, आज मौका मिल गया। उठो भी अब! चलो लेट हो जाऊँगी! हाँ-हाँ बस! दोनों खड़े हुए, अपने-अपने कपडे पहने, कुर्ती डालते वक़्त उसने दुबारा मुझे दबोच लिया और मेरे मम्मे पीने लगा।बोला- एक बार और चोदने दे ना! अरे बाबा नहीं! अब तो मैं तेरी हूँ। उसने छोड़ दिया, वो पिछले रास्ते निकल गया। मैंने सलवार का नाड़ा कस कर बांधा और किताबें उठा घर आ गई। मैं अब कुंवारी नहीं थी, लल्लन ने मुझे चुदाई का स्वाद चखा दिया। अब तो मौका मिलते में खेत चली जाती और वहाँ लल्लन मुझे मन मर्ज़ी से रौंदता। इन दिनों ही मेरी नज़रें पास के गाँव के सरपंच के लड़के लाखन से दो से चार होने लगीं और आखिर एक दिन उसने पारो के ज़रिये, पारो मेरी पक्की सहेली, हमराज़ थी, मुझे संदेशा भेज दिया। वैसे भी मुझे महसूस हुआ कि लल्लन कुछ बदला सा था, तो मैंने भी बेवफा बनने में वक़्त नहीं लगाया और लल्लन के रहते ही लाखन का न्योता स्वीकार कर लिया। आगे क्या हुआ, अगले भाग में लिख रही हूँ।

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