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बुधवार, 18 अप्रैल 2012

मेरी पहली मांग भराई-3


अब मैं अपनी पिछली कहानी से आगे लिखने जा रही हूँ: मैं अब कुंवारी नहीं थी, लल्लन ने मुझे चुदाई का स्वाद चखा दिया। अब तो मौका मिलते में खेत चली जाती और वहाँ लल्लन मुझे मन मर्ज़ी से रौंदता। इन दिनों ही मेरी नज़रें पास के गाँव के सरपंच के लड़के लाखन से दो से चार होने लगीं और आखिर एक दिन उसने पारो के ज़रिये, पारो मेरी पक्की सहेली, हमराज़ थी, मुझे संदेशा भेज दिया। वैसे भी मुझे महसूस हुआ कि लल्लन कुछ बदला सा था, तो मुझे इस बात का इल्म होने लगा था कि वो मुझ से शादी-वादी नहीं करने वाला, बस उसको मेरे जिस्म से प्यार था, मुझे भी अब उससे शादी-वादी नहीं करनी थी लेकिन उसका जोश और मर्दानगी अपनी जगह कायम थी। मुझे उसने चुदाई की लत लगा दी थी तो मैंने भी बेवफा बनने में वक़्त नहीं लगाया और लल्लन के रहते ही लाखन का न्योता स्वीकार कर लिया। लेकिन मैंने लल्लन से अपने जिस्मानी संबंद नहीं तोड़े, मौका मिलते ही हम दोनों खेत में घुस जाते और वहा एक दूसरे के जिस्म को निचोड़ने के बाद निकलते थे। वो जिप बंद करता हुआ निकलता तो मैं सलवार का नाड़ा बांधते हुए! अब तो मुझ पर जवानी और निखर आई थी, सिर्फ अठरह की थी लेकिन खेल बड़े-बड़े सीख चुकी थी। यही कारण था कि लल्लन मुझे छोड़ना नहीं चाहता था और मैं अब लाखन को भी नाराज़ नहीं करना चाहती थी। वैसे भी लल्लन ने मुझे कभी बंदिश में रहने के लिए नहीं कहा। लाखन ने मुझसे अकेले मिलने की इच्छा ज़हर की, मैं भी उसको मना करने के मूड में नहीं थी, लेकिन लाखन के पास पैसा था, वो एक अमीर बाप का बेटा था उसने एक दिन सुबह मुझे स्कूल जाते वक़्त रास्ते से अपनी कार में बिठा लिया। लल्लन स्कूल के बाद मिलता था इसलिए मैंने लाखन को मिलने के लिए सुबह का समय तय किया, चाहे उसके लिए एक दिन स्कूल भी छोड़ना पड़े। लाखन ने मुझे लेकर शहर वाली सड़क पकड़ ली और कुछ देर में हम शहर पहुँच गए। मैं ज्यादा शहर नहीं आई थी, वहाँ की दुनिया अलग थी। मुझे लेकर पहले उसने कॉफी पिलाई और वहाँ नाश्ता भी किया, उसके बाद मुझे वो एक बहुत बड़े मॉल में ले गया और हम एक कपड़ों के शोरूम गए। मेरे लिए जींस खरीदी, टॉप खरीदा। मैंने यह सब कभी नहीं पहना था, अजीब सी लग रही थी, उसके लिए मैंने पहन भी लिए। वहाँ उसी मॉल से उसने मुझे मोबाइल लेकर दिया। मैं बहुत खुश थी। मुझे लेकर होटल की तरफ जाने से पहले उसने कार एक पुरानी सी इमारत के पास रोकी, मुझे लेकर अन्दर गया। वहाँ उसने जेब से सिन्दूर निकाला और एक मंगलसूत्र, लिपस्टिक, लाल चूड़ियाँ भी! उसने मेरी मांग भरी, मंगलसूत्र पहनाया, चूडियाँ चढ़ाई और हम सीधा एक आलीशान होटल में चले गए। ऐसी चकाचौंध मैंने कभी नहीं देखी थी, मैं मानो गाँव से स्वर्ग पहुँच गई थी। दरबान ने सेल्यूट मारा, स्वागत हुआ। वहाँ से एक लड़की ने चाबी थमाई और एक लड़का हमें कमरे तक ले गया। उसने कमरा खोला और हमारा स्वागत किया। बहुत खूबसूरत था कमरा! बिस्तर पर गुलाब के फूल थे, खुशबू से मन मोहा जा रहा था।
कैसा लगा मेरी जान? बहुत खूबसूरत! उसने दरवाज़ा लॉक किया, मेरे पास आया, मेरे होंठ चूमे। मेरा कौन-सा पहला स्पर्श था, मैं गर्म होने लगी। उसने मेरा टॉप उतारा, मैं चुपचाप उसकी नज़रों से नज़रें मिला नशीली आँखों से उस पर वार करने लगी। उसने मेरी गर्दन चूमी तो मैं सिहर उठी। बदन कांप सा गया, जिस्म सुलगने लगा! उसने अपनी शर्ट उतार दी। क्या छाती थी! उसने मेरे बाल खोल दिए और मुझे बिस्तर पर धक्का दिया। जैसे ही मैं गिरी, वो मेरे ऊपर गिर गया और होंठों से चूमता हुआ गर्दन पर फिर मेरे ब्रा को सरका मेरे चुचूक पर! मैं मचल उठी! फिर मेरी नाभि पर, फिर उसने मेरा बटन खोला, जिप खोली, घुटनों तक सरकाई, पैंटी के ऊपर से उसने मेरी चूत का चुम्मा लिया। मैं तड़फ उठी! मेरी जांघों पर चुम्बन लिया, जींस नीचे सरकाता गया, चूमता गया! पूरी जींस मेरी गोरी टांगो से अलग की, अब मैं सिर्फ पैंटी में थी। उसने परदे करके लाईट बंद की और छोटी लाईट जला दी। गुलाब की पंखुड़ियों के ऊपर वो मुझे बेपर्दा करता गया, मैं होती गई। उठा, वाशरूम गया, वापस आते ही उसने अपनी जींस उतारी। मैं नशीली आँखों से बिस्तर पर लेटी देखने लगी। उसने वहीं खड़े रह मुझे आँख मारी और अपने लौड़े को कच्छे के ऊपर से सहलाता हुआ चिड़ाने लगा। मेरी आग भड़कने लगी, मैं मचलने लगी। उसने थोड़ा नीचे सरका दिया अपना कच्छा और अपना लौड़ा पकड़ कर हिलाने लगा। मैं पागल हो गई, दिल कर रहा था अभी मुँह में ले लूँ! बहुत मस्त लौड़ा था उसका! बड़ा! मोटा! पूरा खड़ा हो चुका था। मुझे चिड़ाने लगा, मैंने सोचा, पहली बार आई हूँ, क्या सोचेगा। मुझे शैतानी सूझी! मैंने वहीं अपनी ब्रा उतार दी और उसको दिखाने लगी। वैसे भी मेरे मम्मे देख सबके खड़े होते हैं, उसके मुँह में भी पानी आने लगा। मैंने अपना एक हाथ पैंटी पर रख लिया और दूसरे से मम्मे सहलाने लगी। वो उसी वक़्त बिस्तर पर कूद गया और पागलों की तरह मेरे मम्मे चूसने लगा, कभी चुचूक चूसता, काट देता! मैं भी अपने को नहीं रोक पाई और उसके अंडरवीयर को उतार फेंका और उसके लौड़े को पकड़ जोर-जोर से मुठ मारने लगी। उसने चूत में ऊँगली घुसा दी तो मैंने उसी वक़्त उसके लौड़े को मुँह में लेकर चूसना शुरु कर दिया। वो भी यही चाहता था और मैं भी! उसका लौड़ा सच में सबसे बड़ा था अब तक जितने पकड़े थे, लिए थे। बहुत स्वाद था उसका नमकीन लौड़ा! और चूस रानी! खाजा इसको! और तुम भी ऊँगली हिलाओ न जोर से! हाँ-हाँ! वो मेरे दाने पर उंगली रगड़ने लगा। मैं चूस रही थी, उसने उंगली तेज़ की तो इधर मेरा मुँह तेज़ी से चल पड़ा। मैं तो झड़ने के करीब आ चुकी थी, तुरंत उसको धकेला और लौड़ा घुसाने को कह दिया। उसने उसी वक़्त टाँगें खुलवा कर कन्धों पर रखवा ली और......वाह! कितना मस्त था उसका लौड़ा! मेरी चूत की दीवारों से घिसता हुआ वो मेरे अन्दर हलचल मचाने लगा, उसकी एक-एक मारी चोट मुझे स्वर्ग दिखा रही थी। करीब दस मिनट वैसे ठोकने के बाद उसने मुझे घोड़ी बनवा दिया और घुसा दिया। फिर साथ-साथ मेरे चूतड़ मसल-मसल मेरी ले रहा था, मैं उसका लौड़ा ले रही थी! वो तेज़ हुआ और करीब सात-आठ मिनट में उसने मेरी चूत को अपने रस से भिगो दिया। मैं तो इस बीच दो बार झड़ चुकी थी, वो सच में असली मर्द था, उसने मेरा ढांचा हिला कर रख दिया था। पूरा दिन उसके साथ रही और उसने दो बार और अपने रस से मेरी चूत और एक बार गांड को पानी पिलाया। जब हम होटल से निकले तो मेरी हालत खस्ता थी। लेकिन आज एक नया लौड़ा ले चुकी थी। घर आकर मैं सो गई, शाम को आंख खुली तो माँ बोली- हमारे साथ शादी पर चल! पापा के एक पक्के दोस्त के लड़के की शादी थी, हमें बारात के साथ जाने का ख़ास न्यौता था। मैंने पढ़ाई का बहाना बना कर मना कर दिया। माँ बोली- चल खाना वगैरा बना कर खा लेना, दादी माँ को खिला देना! दरवाज़े बंद कर लेना! रात को वहाँ से निकलते वक़्त फ़ोन कर देंगे। दरवाज़ा खोल देना। ठीक है! अब भी मेरा बदन टूट रहा था, फिर सो गई। कुछ देर बाद दरवाज़े पर घण्टी बजी! मैं उठी! फिर क्या हुआ!

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