लोकप्रिय पोस्ट

रविवार, 18 नवंबर 2012

कहानी मेरी अध्यापिका से घोड़ी बनने तक की

यह सारांश मौजूद नहीं है. कृपया पोस्ट देखने के लिए यहां क्लिक करें .

चूत की देन मिली परीक्षा में फेल होने पर

मैं एक शिक्षक हूँ और आज अपनी एक छात्रा की चुदाई की चूत कहानी सुनाने जा रहा हूँ | मैं कॉलेज में विज्ञान पढाता था उन दिनों और वहीँ एक लड़की जिसका नाम रुपाली था वो कॉलेज के तीसरे वर्षीय छात्रा थी | मैं भी उन दिनों कुछ ज्यादा बुड्डा नहीं हुआ था और क्यूंकि बस ३२ साला का ही था मैं और अब भी मेरी रगों में जवानी का खून जो दौड़ रहा था | मैं जानता था रुपाली पढाई में कुछ ज्यादा ही कमज़ोर है पर सुंदर और बदन के संगीन ढांचे के मामले में सही मायने में कोई भी लड़की रुपाली को टक्कर नहीं दे सकती थी | मैं भी जानता था की उसकी खूबसूरती के तो पुरे कॉलेज के लड़कों के बीच आय दिन चर्चे होते ही रहते हैं | उन दिनों स्टार की अंतिम परीक्षा चल रही थी और मैं सभी छात्रों का पेपर जांच रहा था | रुपाली परीक्षा बहुत गन्दा गया तह और वो तभी मेरे केबिन में आई की सर प्लीज़ मुझे पास कर दीजिए....नहीं तो मेरे घर वाले मेरी शादी कराके गॉंव भेज देंगे....!! मेरी पहले हंसी छूट पड़ी और मैंने कहा, जब तुम्हे कुछ पढ़ा ही नहीं थी मैं क्या कर सकता हूँ......?? जिस पर वो कहने लगी.......सर प्लीज़ मुझे पास कर दीजिए.....मैं पास होने के लिए कुछ भी करने को तैयार हूँ.....पर प्लीज़ मुझे पास कर दीजिए.....!! अब मेरे दिमाक में भी कुछ अव्वल ख्याल आने लगे और मैंने कहा, पास के मैं तो तुम्हे अछे नम्बरों से पास कर सकता हूँ....तुम मुझे वो खुशी दे पायी जो मेरी बीवी न दे सकती तो.....!! रुपाली अब तक मेरे इरादों को भांप चुकी थी और मन तो उसका नही कर रहा तह पर फेल होने के दर से उसने मुझे हां कर दी | मैंने उसे शाम को मेरे फार्म हाउस में आने को कहा और सह वक्त पर पहुँच गयी | रुपाली आई और बेठी की मैं उसके बदन से चिपट पड़ा जिस पर वो भी कोई दिक्कत नहीं जता रही थी | मैंने रुपाली के बदन को मसलते हुए उसे चूम रहा था मैंने उसकी टॉप को उतार दिया | वो भी अब कामुक सुख के आनंद में डूबती जा रही थी और चुचों को मसलते हुए चूसने लगा | मैंने अब बस उसके चुचों को भींचते हुए उसकी स्कर्ट को भी खोल और फिर उसकी चूत पर चोदने के लिए उसकी दोनों टांगों को खोलते हुए अपने लंड को उसकी चूत पर रगड़ने लगा | रुपाली अब तडपने लगी और मैंने एक दम से अपने लंड के झटकों से उसकी चूत को ठूंस चोदने लग गया | वो भी कामुकता के मज़े में पूरी तरह से डूब चुकी थी और कहने लगी की सर आपके लंड के लिए मैं हज़ार भर फेल होने को तैयार हूँ.......मैं अब भी मुस्काता हुआ उसे चोदता रहा और आखिर में उसकी बंद आँखों पर अपना मुठ छोड़ उसे कामुक नींद से जगा डाला | अब जब भी वो फेल होती तो एक रात उसकी चूत की मेरे साथ होती |

रेलगाड़ी में मल्लू प्रेमिका की आहोश में खोया


आज मैं आपको रेलगाड़ी में मल्लू प्रेमिका की चुदाई के बारे में बताने जा रहा हूँ | दोस्तों हुआ यूँ की मैं किसी काम से बहार गया हुआ था और जब आया तो मेरी प्रेमिका ने बताया की उसके पापा मुझसे बात करना चाहते हैं जिस पर मैंने उसके कहे दिया की हम अगले दिन की रेलगाड़ी से उसके पापा से भी मिलने चलेंगे | हम जल्द – बाज़ी में अपने घर से निकले और अपनी रेलगाड़ी में बैठ सफर पर भी निकल पड़े | दोस्तों मैंने काफी समय से अपनी प्रेमिका के साथ चुदाई वाला खेल नहीं खेल था और वहाँ उसके घर जाकर तो चाहकर भी मैं नहीं कर सकता था | मेरा दिमाक में तभी रोमांटिक विचार चलने लगे और मैं उसे मीठी – मीठी बातें कर पटाने लगा| हम रात को सोने का बाद उप्पर ही सीट पर सो गए जिस पर मैं उसे कुक हरकतें करते हुए उकसाने लग जिस पर वो भी उत्तेजित होकर मेरे होंठों के रस को चूसने लगी और मैं उसके चुचों को भींचे जा रहा था | हमने वहाँ सोते वक्त हलके फुले कपड़े पहने हुए थे इसीलिए चादर के अंदर हमें नागे होने वक्त नहीं लगा और अब मैं उसके नंगे बदन को मसलते हुए उसे चूम रहा था| मैंने उसके मीठे–मीठे चुचों को मसलते हुए चूसने लगा| मेरी वासना मेरे सर पर चडी तो मैंने उसकी चुत पर पहले ऊँगली फिराई और फिर उसमें ऊँगली देकर सूंघने लगा और उसकी चुत की चरबी को चाटने भी लगा| मैंने अब अपने लंड को उठाकर उसकी चुत पर रख दिया उसकी दोनों टांगों को खोलते हुए लंड को वहीं रगड़ने लगा जिस पर वो लंड को अपनी चुत में पूरी तरह समाने के लिए तडपने लगी और मैंने एक दम से अपने लंड के झटकों से उसकी चुत को चोदने लग गया | वो अब हलके–हलके सिसकियाँ ले रही थी पर मैं बिना कुछ सुने उसकी टांगो को खोल चोदे जा रहा जैसे अपने लंड को पार कर मैं उसकी चुत को फाड देना चाहता था | मैं कुत्ते की तरह उसकी चुत अपर चड हुए इतनी तेज़ी से चोदे रहा था उसकी चुत का पानी भी निकल पड़ा जिस पर अब मुझे फिर से दूसरी पारी के लिए होश बंधाते हुए उसकी चुत ऊँगली बाज़ी करनी पड़ी | अब जब सब कुछ फिर गरमाने लगा तो मैंने अपने लंड को उसकी मल्लू चुत को मसलते हुए देना शुरू कर दिया और इस बार मैंने उसे उलटे ही लिटाये रखा था जिस पर उसकी सिसकियाँ बहार–गलती से भी नहीं पहुँच सकती थी| हम पूरी रात पर चुदाई करते रहे और मैं हिलती हुई रेलगाड़ी में अपने लंड को इसी तरह तेज़ी से हिलाते हुए झड भी गया| मेरे झड़ने पर मुझे नींद आने लगी जिस पर मेरी प्रेमिका ने मुझे मस्त वाले चुम्मे दिए और हमने फ़ौरन कपड़े पहन लिए| उसके बाद ही मैंने अपने सर को अपनी प्रेमिका की गौद में रखा और उसके चुचों को हलके–हलके दबाते हुए सो गया और अंत में हम सही–सलामत पहुँच भी गये| 

क्रिकेट के बाद चूत के मैदान में मैच

आज मैं आपको सोनी की खरी चूत चुदाई की कहानी सुनाने जा रहा हूँ और मुझे उम्मीद है यह कहानी आपको खूब पसंद आएगी | दोस्तों सोनी मेरे सामने के मौहल्ले में रहा करती थी | जान मैं क्रिकेट खेलने जाया करती थी और क्यूंकि उस्भी क्रिकेट में दिलचस्पी थी तो वो हमेशा अपने घर की बालकोनी से हमारा मैच देखा करती थी | अब मैं भी उसे ताका करता था और जब हमें छक्के मारता था तो साथ में उसे भी आँख मार दिया करती था जिस पर वो भी मुस्का दिया करती थी |   ज़ाहिर तौर पर वो भी मुझसे पसंद करती थी और कई दिनों तक हमारी इसी तरह इशारों ही इशारों ही में बातें होने लगी और एक दिन मौका आ ही गया जब मैं उससे मिलने वाला था | एक दिन मैंने उसे इशारे में क्रिकेट खेलते वक्त नीचे बुलाया और वो कुछ देर में आ भी गयी | मैं वही मैदान के एक कोने में उससे बता करने लगा और वो भी मेरे मैदान के प्रदर्शन के बारे में तारीफ़ झाड रही थी | मैं सातवें आसमान पर पहले से ही था और अब उसे चोदने के लिए और भी उतावला होता जा रहा था | उसकी कामुक मुस्कान और नशीली आँखें मजबूर रही थी | तभी मैंने उसे कहा की मैदान के पीछे झाडियों में मैं उसके दिखाना चाहता हूँ और वो भी चल डी | वहाँ जाते ही मैंने उसे एक फुल तोड़कर दे दिया और कहा की मैं उससे प्यार करने लगा हूँ | वो शरमाई और मैं उसे बेतहाशा तरीके से पुरे चेहरे पर चूमने लगा | हमारे चुम्मों बहुत दम था की आज ही सारा एक बार में कांड आगे बढ़ता चला गया | सोनी मेरी बाहों में चिपकी हुई थी और मैं अब तक उसके चुचों को मसल रहा था | हम दोनों का उतावलापन बढ़ता ही जा रहा तह और तभी मैंने उसे वहीँ झाडियों में लिटा डाला और उसकी कुर्ती सलवार उतार पूरी नंगी कर दिया | वो भही चुदने के लिए दीवानी होती जा रही थी और अब मैंने भी अपनी उंगली उसकी चूत में डालते हुए अंदर बाहर करने लगा और उसकी चूत का निकल गया | मैंने अपने लंड के सुपाडे उसकी चूत के मुहाने पर टिकाया और एक मस्त वाला धक्का लगाया जिससे उसकी चींख निकल पड़ी | मैं रुकने वाला नहीं तह और अब भी ज़ोरों से धक्के पेलने लगा | अब सोनी की चूत से खून बहने लगातो मुझे न चाहते हुए भी रुकना पड़ा और फिर वहीँ झाडियों से उसका साफ़ किया और फिर उसकी चूत पर लंड को रगड़ते हुए झटके देने लगा | वो मज़े ले रही थी इस बार और जोर-जोर से चोद मुझे....और चोद मुझे...!! कहकर चिल्ला रही थी | मैंने अज तक क्रिकेट में चक्का लगाने के लिए इतना जोर नहीं लगाया जितना अभी मैं इसकी चूत पेलने में अपने लंड का लगा रहा था | उसकी चींखें और मुझे और जोश दिलाती ही गयी और लगातार उसकी चूत में अपने लंड के चक्के छुड़ाता रहा | मैं भी अब कुछ देर बाद इतना थक गया की रहत भरी सांस लेटे हुए वहीँ अपने मुठ को छोड़ लेट गया | अब जब भी रोज मेरा क्रिकेट मैच खतम हो जाया करता तो सोनी नीचे बुलाता और वहीँ झाडियों में उसकी चूत को पेल चेन की सांस लेता था |

बुधवार, 24 अक्तूबर 2012

निशा इन ट्रेन


निशा मेरे छोटे भाई रुपम की वाइफ़ है। निशा काफ़ी सुंदर महिला है। उसका बदन ऊपर वाले ने काफ़ी तसल्ली से तराश कर बनाया है। मैं शिवम उसका जेठ हूं। मेरी शादी को दस साल हो चुके हैं। निशा शुरु से ही मुझे काफ़ी अच्छी लगती थी। मुझसे वो काफ़ी खुली हुई थी। रुपम एक यूके बेस्ड कम्पनी में सर्विस करता था। हां बताना तो भूल ही गया निशा का मायका नागपुर में है और हम जालंधर में रहते हैं। आज से कोई पांच साल पहले की बात है। हुआ यूं कि शादी के एक साल बाद ही निशा प्रिग्नेंट हो गयी। डिलीवरी के लिये वो अपने मायके गयी हुई थी। सात महीने में प्रीमेच्योर डिलीवरी हो गयी। बच्चा शुरु से ही काफ़ी वीक था। दो हफ़्ते बाद ही बच्चे की डेथ हो गयी। रुपम तुरंत छुट्टी लेकर नागपुर चला गया। कुछ दिन वहां रह कर वापस आया। वापस अकेला ही आया था। डिसाइड ये हुआ था कि निशा की हालत थोड़ी ठीक होने के बाद आयेगी। एक महीने के बाद जब निशा को वापस लाने की बात आयी तो रुपम को छुट्टी नहीं मिली। निशा को लेने जाने के लिये रुपम ने मुझे कहा। सो मैं निशा को लेने ट्रेन से निकला। निशा को वैसे मैने कभी गलत निगाहों से नहीं देखा था। लेकिन उस यात्रा मे हम दोनो में कुछ ऐसा हो गया कि मेरे सामने हमेशा घूंघट में घूमने वाली निशा बेपर्दा हो गयी। हमारी टिकट प्रथम क्लास में बुक थी। चार सीटर कूपे में दो सीट पर कोई नहीं आया। हम ट्रैन में चढ़ गये। गरमी के दिन थे। जब तक ट्रेन स्टेशन से नहीं छूटी तब तक वो मेरे सामने घूंघट में खड़ी थी। मगर दूसरों के आंखों से ओझल होते ही उसने घूंघट उलट दिया और कहा,”अब आप चाहे कुछ भी समझें मैं अकेले में आपसे घूंघट नहीं करूंगी। मुझे आप अच्छे लगते हो आपके सामने तो मैं ऐसी ही रहूंगी।” मैं उसकी बात पर हँस पड़ा। “मैं भी घूंघट के समर्थन में कभी नहीं रहा।” मैने पहली बार उसके बेपर्दा चेहरे को देखा। मैं उसके खूबसूरत चेहरे को देखता ही रह गया। अचानक मेरे मुंह से निकला “अब घूंघट के पीछे इतना लाजवाब हुश्न छिपा है उसका पता कैसे लगता।” उसने मेरी ओर देखा फ़िर शर्म से लाल हो गयी। उसने ग्रीन रंग की एक शिफ़ोन की साड़ी पहन रखी थी। ब्लाउज़ भी मैचिंग पहना था। गर्मी के कारण बात करते हुए साड़ी का आंचल ब्लाउज़ के ऊपर से सरक गया। तब मैने जाना कि उसने ब्लाउज़ के अन्दर ब्रा नही पहनी हुई है। उसके स्तन दूध से भरे हुए थे इसलिये काफ़ी बड़े-बड़े हो गये थे। ऊपर का एक हुक टूटा हुआ था इसलिये उसकी आधी छातियां साफ़ दिख रही थी। पतले ब्लाउज़ में से ब्रा नहीं होने के कारण निप्पल और उसके चारों ओर का काला घेरा साफ़ नजर आ रहा था। मेरी नजर उसकी छाती से चिपक गयी। उसने बात करते-करते मेरी ओर देखा। मेरी नजरों का अपनी नजरों से पीछा किया और मुझे अपने बाहर छलकते हुए बूब को देखता पाकर शरमा गयी और जल्दी से उसे आंचल से ढक लिया। हम दोनो बातें करते हुए जा रहे थे। कुछ देर बाद वो उठकर बाथरूम चली गयी। कुछ देर बाद लौट कर आयी तो उसका चेहरा थोड़ा गम्भीर था। हम वापस बात करने लगे। कुछ देर बाद वो वापस उठी और कुछ देर बाद लौट कर आ गयी। मैने देखा वो बात करते-करते कसमसा रही है। अपने हाथो से अपने ब्रेस्ट को हलके से दबा रही है। “कोई प्रोब्लम है क्या?’ मैने पूछा। “ना-नहीं ” मैने उसे असमंजस में देखा। कुछ देर बाद वो फिर उठी तो मैने कहा “मुझे बताओ न क्या प्रोब्लम है?” वो झिझकती हुई सी खड़ी रही। फ़िर बिना कुछ बोले बाहर चली गयी। कुछ देर बाद वापस आकर वो सामने बैठ गयी। “मेरी छातियों में दर्द हो रहा है।” उसने चेहरा ऊपर उठाया तो मैने देखा उसकी आंखें आंसु से छलक रही हैं। “क्यों क्या हुआ” मर्द वैसे ही औरतों के मामले में थोड़े नासमझ होते हैं। मेरी भी समझ में नहीं आया अचानक उसे क्या हो गया। “जी वो क्या है म्म वो मेरी छातियां भारी हो रही हैं।” वो समझ नहीं पा रही थी कि मुझे कैसे समझाये आखिर मैं उसका जेठ था। ” म्मम मेरी छातियों में दूध भर गया है लेकिन निकल नहीं पा रहा है।” उसने नजरें नीची करते हुए कहा। “बाथरूम जाना है?” मैने पूछा “गयी थी लेकिन वाश-वेसिन बहुत गंदा है इसलिये मैं वापस चली अयी” उसने कहा “और बाहर के वाश-वेसिन में मुझे शर्म आती है कोई देख ले तो क्या सोचेगा?” “फ़िर क्या किया जाए?” मैं सोचने लगा “कुछ ऐसा करें जिससे तुम यहीं अपना दूध खाली कर सको। लेकिन किसमें खाली करोगी? नीचे फ़र्श पर गिरा नहीं सकती और यहां कोई बर्तन भी नही है जिसमें दूध निकाल सको” उसने झिझकते हुये फ़िर मेरी तरफ़ एक नजर डाल कर अपनी नजरें झुका ली। वो अपने पैर के नखूनों को कुरेदती हुई बोली, “अगर आप गलत नहीं समझें तो कुछ कहूं?” “बोलो” “आप इन्हें खाली कर दीजिये न” “मैं? मैं इन्हें कैसे खाली कर सकता हूं।” मैने उसकी छातियों को निगाह भर कर देखा। “आप अगर इस दूध को पीलो……”उसने आगे कुछ नहीं कहा। मैं उसकी बातों से एकदम भौचक्का रह गया। “लेकिन ये कैसे हो सकता है। तुम मेरे छोटे भाई की बीवी हो। मैं तुम्हारे स्तनों में मुंह कैसे लगा सकता हूं” “जी आप मेरे दर्द को कम कर रहे हैं इसमें गलत क्या है। क्या मेरा आप पर कोई हक नहीं है।?” उसने मुझसे कहा “मेरा दर्द से बुरा हाल है और आप सही गलत के बारे में सोच रहे हो। प्लीज़।” मैं चुप-चाप बैठा रहा समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहूं। अपने छोटे भाई की बीवी के निप्पल मुंह में लेकर दूध पीना एक बड़ी बात थी। उसने अपने ब्लाउज़ के सारे बटन खोल दिये। “प्लीज़” उसने फ़िर कहा लेकिन मैं अपनी जगह से नहीं हिला। “जाइये आपको कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। आप अपने रूढ़ीवादी विचारों से घिरे बैठे रहिये चाहे मैं दर्द से मर ही जाउं।” कह कर उसने वापस अपने स्तनों को आंचल से ढक लिया और अपने हाथ आंचल के अंदर करके ब्लाउज़ के बटन बंद करने की कोशिश करने लगी लेकिन दर्द से उसके मुंह से चीख निकल गयी “आआह्हह्ह” । मैने उसके हाथ थाम कर ब्लाउज़ से बाहर निकाल दिये। फ़िर एक झटके में उसके आंचल को सीने से हटा दिया। उसने मेरी तरफ़ देखा। मैं अपनी सीट से उठ कर केबिन के दरवाजे को लोक किया और उसके बगल में आ गया। उसने अपने ब्लाउज़ को उतार दिया। उसके नग्न ब्रेस्ट जो कि मेरे भाई की अपनी मिल्कियत थी मेरे सामने मेरे होंठों को छूने के लिये बेताब थे। मैने अपनी एक उंगली को उसके एक ब्रेस्ट पर ऊपर से फ़ेरते हुए निप्पल के ऊपर लाया। मेरी उंगली की छुअन पा कर उसके निप्पल अंगूर की साइज़ के हो गये। मैं उसकी गोद में सिर रख कर लेट गया। उसके बड़े-बड़े दूध से भरे हुए स्तन मेरे चेहरे के ऊपर लटक रहे थे। उसने मेरे बालों को सहलाते हुए अपने स्तन को नीचे झुकाया। उसका निप्पल अब मेरे होंठों को छू रहा था। मैने जीभ निकाल कर उसके निप्पल को छूआ। “ऊओफ़्फ़फ़्फ़ जेठजी अब मत सताओ। प्लीज़ इनका रस चूस लो।” कहकर उसने अपनी छाती को मेरे चेहरे पर टिका दिया। मैने अपने होंठ खोल कर सिर्फ़ उसके निप्पल को अपने होंठों में लेकर चूसा। मीठे दूध की एक तेज़ धार से मेरा मुंह भर गया। मैने उसकी आंखों में देखा। उसकी आंखों में शर्म की परछाई तैर रही थी। मैने मुंह में भरे दूध को एक घूंठ में अपने गले के नीचे उतार दिया। “आआअह्हह्हह” उसने अपने सिर को एक झटका दिया। मैने फ़िर उसके निप्पल को जोर से चूसा और एक घूंठ दूध पिया। मैं उसके दूसरे निप्पल को अपनी उंगलियों से कुरेदने लगा। “ऊओह्हह ह्हह्हाआन्न हाआन्नन जोर से चूसो और जोर से। प्लीज़ मेरे निप्पल को दांतों से दबाओ। काफ़ी खुजली हो रही है।” उसने कहा। वो मेरे बालों में अपनी उंगलियां फ़ेर रही थी। मैने दांतों से उसके निप्पल को जोर से दबाया। “ऊउईईइ” कर उठी। वो अपने ब्रेस्ट को मेरे चेहरे पर दबा रही थी। उसके हाथ मेरे बालों से होते हुए मेरी गर्दन से आगे बढ़ कर मेरे शर्ट के अन्दर घुस गये। वो मेरी बालों भरी छाती पर हाथ फ़ेरने लगी। फ़िर उसने मेरे निप्पल को अपनी उंगलियों से कुरेदा। “क्या कर रही हो?” मैने उससे पूछा। “वही जो तुम कर रहे हो मेरे साथ” उसने कहा “क्या कर रहा हूं मैं तुम्हारे साथ” मैने उसे छेड़ा “दूध पी रहे हो अपने छोटे भाई की बीवी के स्तनों से” “काफ़ी मीठा है” “धत” कहकर उसने अपने हाथ मेरे शर्ट से निकाल लिये और मेरे चेहरे पर झुक गयी। इससे उसका निप्पल मेरे मुंह से निकल गया। उसने झुक कर मेरे लिप्स पर अपने लिप्स रख दिये और मेरे होंठों के कोने पर लगे दूध को अपनी जीभ से साफ़ किया। फ़िर वो अपने हाथों से वापस अपने निप्पल को मेरे लिप्स पर रख दी। मैने मुंह को काफ़ी खोल कर निप्पल के साथ उसके बूब का एक पोर्शन भी मुंह में भर लिया। वापस उसके दूध को चूसने लगा। कुछ देर बाद उस स्तन से दूध आना कम हो गया तो उसने अपने स्तन को दबा-दबा कर जितना हो सकता था दूध निचोड़ कर मेरे मुंह में डाल दिया। “अब दूसरा” मैने उसके स्तन को मुंह से निकाल दिया फ़िर अपने सिर को दूसरे स्तन के नीचे एडजस्ट किया और उस स्तन को पीने लगा। उसके हाथ मेरे पूरे बदन पर फ़िर रहे थे। हम दोनो ही उत्तेजित हो गये थे। उसने अपना हाथ आगे बढ़ा कर मेरे पैंट की ज़िप पर रख दिया। मेरे लिंग पर कुछ देर हाथ यूं ही रखे रही। फ़िर उसे अपने हाथों से दबा कर उसके साइज़ का जायजा लिया। “काफ़ी तन रहा है” उसने शर्माते हुए कहा। “तुम्हारी जैसी हूर पास इस अन्दाज में बैठी हो तो एक बार तो विश्वामित्र की भी नीयत डोल जाये।” “म्मम्म अच्छा। और आप? आपके क्या हाल हैं” उसने मेरे ज़िप की चैन को खोलते हुए पूछा “तुम इतने कातिल मूड में हो तो मेरी हालत ठीक कैसे रह सकती है” उसने अपना हाथ मेरे ज़िप से अन्दर कर ब्रीफ़ को हटाया और मेरे तने हुए लिंग को निकालते हुए कहा “देखूं तो सही कैसा लगता है दिखने में” मेरे मोटे लिंग को देख कर खूब खुश हुयी। “अरे बाप रे कितना बड़ा लिंग है आपका। दीदी कैसे लेती है इसे?” “आ जाओ तुम्हें भी दिखा देता हूं कि इसे कैसे लिया जाता है।” “धत् मुझे नहीं देखना कुछ। आप बड़े वो हो” उसने शरमा कर कहा। लेकिन उससे हाथ हटाने की कोई जल्दी नहीं की। “इसे एक बार किस तो करो” मैने उसके सिर को पकड़ कर अपने लिंग पर झुकाते हुए कहा। उसने झिझकते हुए मेरे लिंग पर अपने होंठ टिका दिये। अब तक उसका दूसरा स्तन भी खाली हो गया था। उसके झुकने के कारण मेरे मुंह से निप्पल छूट गया। मैने उसके सिर को हलके से दबाया तो उसने अपने होंठों को खोल कर मेरे लिंग को जगह दे दी। मेरा लिंग उसके मुंह में चला गया। उसने दो तीन बार मेरे लिंग को अन्दर बाहर किया फ़िर उसे अपने मुंह से निकाल लिया। “ऐसे नहीं… ऐसे मजा नहीं आ रहा है” “हां अब हमें अपने बीच की इन दीवारों को हटा देना चाहिये” मैने अपने कपड़ों की तरफ़ इशारा किया। मैने उठकर अपने कपड़े उतार दिये फ़िर उसे बाहों से पकड़ कर उठाया। उसकी साड़ी और पेटीकोट को उसके बदन से अलग कर दिया। अब हम दोनो बिल्कुल नग्न थे। तभी किसी ने दरवाजे पर नोक किया। “कौन हो सकता है।” हम दोनो हड़बड़ी में अपने अपने कपड़े एक थैली में भर लिये और निशा बर्थ पर सो गयी। मैने उसके नग्न शरीर पर एक चादर डाल दी। इस बीच दो बार नोक और हुआ। मैने दरवाजा खोला बाहर टीटी खड़ा था। उसने अन्दर आकर टिकट चेक किया और कहा “ये दोनो सीट खाली रहेंगी इसलिये आप चाहें तो अन्दर से लोक करके सो सकते हैं” और बाहर चला गया। मैने दरवाजा बंद किया और निशा के बदन से चादर को हटा दिया। निशा शर्म से अपनी जांघों के जोड़ को और अपनी छातियों को ढकने की कोशिश कर रही थी। मैने उसके हाथों को पकड़ कर हटा दिया तो उसने अपने शरीर को सिकोड़ लिया और कहा “प्लीज़ मुझे शर्म आ रही है।” मैं उसके ऊपर चढ़ कर उसकी योनि पर अपने मुंह को रखा। इससे मेरा लिंग उसके मुंह के ऊपर था। उसने अपने मुंह और पैरों को खोला। एक साथ उसके मुंह में मेरा लिंग चला गया और उसकी योनि पर मेरे होंठ सट गये। “आह शिवम जी क्या कर रहे हो मेरा बदन जलने लगा है। पंकज ने कभी इस तरह मेरी योनि पर अपनी जीभ नहीं डाली” उसके पैर छटपटा रहे थे। उसने अपनी टांगों को हवा में उठा दिया और मेरे सिर को उत्तेजना में अपनी योनि पर दबाने लगी। मैं उसके मुंह में अपना लिंग अंदर बाहर करने लगा। मेरे हाठ उसकी योनि की फ़ांकों को अलग कर रखे थे और मेरी जीभ अंदर घूम रही थी। वो पूरी तन्मयता से अपने मुंह में मेरे लिंग को जितना हो सकता था उतना अंदर ले रही थी। काफ़ी देर तक इसी तरह ६९ पोज़िशन में एक दूसरे के साथ मुख मैथुन करने के बाद लगभग दोनो एक साथ खल्लास हो गये। उसका मुंह मेरे रस से पूरा भर गया था। उसके मुंह से चू कर मेरा रस एक पतली धार के रूप में उसके गुलाबी गालों से होता हुआ उसके बालों में जाकर खो रहा था। मैं उसके शरीर से उठा तो वो भी उठ कर बैठ गयी। हम दोनो एक दम नग्न थे और दोनो के शरीर पसीने से लथपथ थे। दोनो एक दूसरे से लिपट गये और हमारे होंठ एक दूसरे से ऐसे चिपक गये मानो अब कभी भी न अलग होने की कसम खा ली हो। कुछ मिनट तक यूं ही एक दूसरे के होंठों को चूमते रहे फ़िर हमारे होंठ एक दूसरे के बदन पर घूमने लगे। “अब आ जाओ” मैने निशा को कहा। “जेठजी थोड़ा सम्भाल कर। अभी अंदर नाजुक है। आपका बहुत मोटा है, कहीं कोई जख्म न हो जाये।” “ठीक है। चलो बर्थ पर हाथों और पैरों के बल झुक जाओ। इससे ज्यादा अंदर तक जाता है और दर्द भी कम होता है।” निशा उठकर बर्थ पर चौपाया हो गयी। मैं पीछे से उसकी योनि पर अपना लंड सटा कर हलका सा धक्का मारा। गीली तो पहले ही हो रही थी। धक्के से मेरे लंड के आगे का टोपा अंदर धंस गया। एक बच्चा होने के बाद भी उसकी योनि काफ़ी टाइट थी। वो दर्द से “आआह्हह” कर उठी। मैं कुछ देर के लिये उसी पोज़ में शांत खड़ा रहा। कुछ देर बाद जब दर्द कम हुआ तो निशा ने ही अपनी गांड को पीछे धकेला जिससे मेरा लंड पूरा अंदर चला जाये। “डालो न रुक क्यों गये।” “मैने सोचा तुम्हें दर्द हो रहा है इसलिये।” “इस दर्द का मजा तो कुछ और ही होता है। आखिर इतना बड़ा है दर्द तो करेगा ही।” उसने कहा। फ़िर वो भी मेरे धक्कों का साथ देते हुए अपनी कमर को आगे पीछे करने लगी। मैं पीछे से शुरु शुरु में सम्भल कर धक्का मार रहा था लेकिन कुछ देर के बाद मैं जोर जोर से धक्के मारने लगा। हर धक्के से उसके दूध भरे स्तन उछल उछल जाते थे। मैने उसकी पीठ पर झुकते हुए उसके स्तनो को अपने हाथों से थाम लिया। लेकिन मसला नहीं, नहीं तो सारी बर्थ उसके दूध की धार से भीग जाती। काफ़ी देर तक उसे धक्के मारने के बाद उसने अपने सिर को को जोर जोर से झटकना चालू किया। “आआह्हह्ह शीईव्वव्वाअम्मम आआअह्हह्ह तूउम्म इतनीए दिन कहा थीए। ऊऊओह्हह माआईईइ माअर्रर्रर जाऊऊं गीइ। मुझीए माअर्रर्रर डालूऊओ मुझीए मसाअल्ल डाअल्लूऊ” और उसकी योनि में रस की बौछार होने लगी। कुछ धक्के मारने के बाद मैने उसे चित लिटा दिया और ऊपर से अब धक्के मारने लगा। “आअह मेरा गला सूख रहा है।” उसका मुंह खुला हुआ था। और जीभ अंदर बाहर हो रही थी। मैने हाथ बढ़ा कर मिनरल वाटर की बोतल उठाई और उसे दो घूंठ पानी पिलाया। उसने पानी पीकर मेरे होंठों पर एक किस किया। “चोदो शिवम चोदो। जी भर कर चोदो मुझे।” मैं ऊपर से धक्के लगाने लगा। काफ़ी देर तक धक्के लगाने के बाद मैने रस में डूबे अपने लिंग को उसकी योनि से निकाला और सामने वाली सीट पर पीठ के बल लेट गया। “आजा मेरे उपर” मैने निशा को कहा। निशा उठ कर मेरे बर्थ पर आ गयी और अपने घुटने मेरी कमर के दोनो ओर रख कर अपनी योनि को मेरे लिंग पर सेट करके धीरे धीरे मेरे लिंग पर बैठ गयी। अब वो मेरे लिंग की सवारी कर रही थी। मैने उसके निप्पल को पकड़ कर अपनी ओर खींचा। तो वो मेरे ऊपर झुक गयी। मैने उसके निप्पल को सेट कर के दबाया तो दूध की एक धार मेरे मुंह में गिरी। अब वो मुझे चोद रही थी और मैं उसका दूध निचोड़ रहा था। काफ़ी देर तक मुझे चोदने के बाद वो चीखी “शिवम मेरे निकलने वाला है। मेरा साथ दो। मुझे भी अपने रस से भिगो दो।” हम दोनो साथ साथ झड़ गये। काफ़ी देर तक वो मेरे ऊपर लेटी हुई लम्बी लम्बी सांसे लेती रही। फ़िर जब कुछ नोर्मल हुई तो उठ कर सामने वाली सीट पर लेट गयी। हम दोनो लगभग पूरे रास्ते नग्न एक दूसरे को प्यार करते रहे। लेकिन उसने दोबारा मुझे उस दिन और चोदने नहीं दिया, उसके बच्चेदानी में हल्का हल्का दर्द हो रहा था। लेकिन उसने मुझे आश्वासन दिया। “आज तो मैं आपको और नहीं दे सकूंगी लेकिन दोबारा जब भी मौका मिला तो मैं आपको निचोड़ लूंगी अपने अंदर। और हां अगली बार मेरे पेट में देखते हैं दोनो भाईयों में से किसका बच्चा आता है। उस यात्रा के दौरान कई बार मैने उसके दूध की बोतल पर जरूर हाथ साफ़ किया।

शनिवार, 20 अक्तूबर 2012

सोनिया : मेरी कामवाली


बात उन दिनों की है, जब मैं दिल्ली में एक कंपनी में नौकरी करता था. हम लोगों ने एक घर किराये पर ले रखा था. घर में तीन कमरे थे. पहला कमरा एक बड़ा ड्राइंग रूम था और बाकी दो कमरे बेडरूम थे. मैं बिल्कुल अकेला आखरी वाले कमरे में रहता था. हमने एक कामवाली रखी जो सिर्फ़ 19 साल की थी. देखने में तो वो ठीक थी, लेकिंग उसके मम्मे बहुत ही बड़े थे. उसका नाम सोनिया था. सोनिया आगरा की रहने वाली थी लेकिन उन दिनों वो अपने माँ-बाप के पास रहती थी क्योंकि उसके पति के साथ झगडा हो गया था. उन दिनों मुझे मेरा लण्ड बहुत ही ज़्यादा परेशान करता था. सोनिया रोज़ सुबह 8 बजे आती थी और पहले झाडू पोचा करती थी और फिर वो हम लोगो का खाना बनाती थी. मेरे मन में वो पहले दिन से ही छा गई थी, और मैं उसकी चूत मारने की सोचता रहता था. एक रोज़ वो सुबह-सुबह जब मेरे कमरे में झाडू कर रही थी तो मैंने उसे सर दबाने के लिए कहा, उसने अपने कोमल हाथों से मेरा सर दबाना शुरू कर दिया. फिर तो यह रोज़ का किस्सा हो गया. धीरे-धीरे मैंने उसके हाथ पकड़ना शुरू कर दिया और जब उसने कुछ नहीं कहा तो मेरी हिम्मत और भी बढ़ गई. फिर एक सुबह मैंने अपना सर दबवाते हुए उसके मम्मे पकड़ लिए और वो मुझसे अपना हाथ छुड़वा कर चली गई. मैंने सोचा कोई बात नहीं तुझे तो मैं अच्छे से चोदूंगा. एक शाम को मेरे दोस्त ने कहा कि उसको 10 दिन के लिए ऑफिस के काम से जयपुर जाना पड़ेगा। मेरी तो जैसे लॉटरी ही निकल गई. उस फ्लैट में अब मैं अकेला ही बचा था. अगली सुबह जब कामवाली ने दरवाज़े की घंटी बजाई तो मैंने दरवाज़ा खोला और वो मुझे देख कर चौंक गई. मैंने कहा की मेरा दोस्त जयपुर गया है, 10 दिन बाद लौटेगा. सोनिया ने शायद यह भांप लिया था कि अब तो उसको चुदना ही पड़ेगा. खैर मैंने उसे कहा कि तुम आज खाना सिर्फ़ मेरे और अपने लिए ही बनाना. फिर उसने झाडू लगना शुरू किया तो मैं वापस अपने बिस्तर पर आ कर लेट गया. जब वो मेरे कमरे में आई तो मैंने उससे कहा," सोनिया आज शरीर में बहुत दर्द हो रहा है, लगता है आज छुट्टी लेनी पड़ेगी।" उसने कहा" मैं आपको दबा देती हूँ" फिर सोनिया ने मुझे धीरे-धीरे दबाना शुरू किया. मुझे तो लग रहा था जैसे मैं जन्नत में हूँ. मैंने उससे पूछा ''सोनिया तुम अपने घरवाले के पास क्यों नहीं जाती हो?" तो उसने जवाब दिया" एक लड़की पैदा होने के बाद वो मुझे छोड़ कर चला गया था, अब माफ़ी मांगने के लिए आता है लेकिन मैं उस पर कैसे विश्वास कर लूँ?'' फिर मुझे समझ में आ गया कि उसकी चूत मारने में ज़्यादा टाइम नहीं लगेगा. मैंने धीरे-धीरे उससे कहा की मेरी पीठ को भी दबाओ. उसने मेरा कहना माना और वो मेरे बिस्तर पर बैठ गई. मैंने उसकी जांघ पर हाथ फेरना शुरू किया और उसने ज़्यादा आना-कानी नहीं की. फिर मैंने उसकी चुचियों को उसके कमीज़ के ऊपर से ही दबाना शुरू कर दिया और वोह कराहने लगी. मैंने ज़्यादा टाइम बर्बाद नही करते हुए उसे बिस्तर पर लेटा लिया और उसका कमीज़ निकल दिया. फिर मैंने उसके होठों पर अपने होंठ रखे और एक लम्बी सी किस दे दी. फिर मैंने उसकी ब्रा उतारी और मैंने उसके मम्मे चाटना शुरू कर दिया. वो तो जैसे सातवें आसमान पर थी. मैंने उसके मम्मों को दबाना भी जारी रखा. उसने कहा अब बस भी करो, अगर मैं जोश में आ गई तो गड़बड़ हो जायेगी. मैंने उसकी सलवार उतारी और उसकी जाँघों पर हाथ फेरना शुरू कर दिया. धीर-धीर मैंने उसके जाँघों पर अपनी जीभ से चाटना शुरू कर दिया.वोह " ऊउह्ह्ह्ह्ह् आआआआआआःःःःःःःः ऊऊऊईईईईई कर रही थी, और मैं रुकने का नाम भी नहीं ले रहा था. फिर मैंने उसकी पैंटी उतारी और उसकी टांगें फ़ैला कर उसकी चूत को चाटना शुरू कर दिया. उसकी चूत में से एक नमकीन सा स्वाद आ रहा था. उसकी गर्मी बढती जा रही थी उसने मेरा लण्ड ज़ोर-ज़ोर से हिलाना शुरू कर दिया. मैंने अपने सारे कपड़े उतारे और उसके मुँह में अपना लण्ड रख दिया. उसने मेरे लण्ड को लोलीपोप के जैसे चूसना शुरू कर दिया. मैंने फिर उसकी चूत को ज़ोर-ज़ोर से चाटना शुरू किया और वोह भी मेरे लण्ड को चूस रही थी। फिर मैंने अपना लण्ड उसके मुँह से निकाला और उसकी चूत पर रख दिया और एक ज़ोर से धक्का मारा. मेरा 6.5" का लण्ड उसकी चूत में चला गया. उसकी तो जैसे जान निकल गई और बोली " ज़रा धीरे-धीरे से करो ना, बहुत दर्द हो रहा है, आपका लण्ड तो बहुत ही मोटा, और तगड़ा है, मुझे बहुत दर्द हो रहा है" मैंने अपना लण्ड थोड़ा सा बाहर निकाला और पूछा,"अब ठीक है क्या?" वोह बोली," हाँ अब ठीक है" फिर मैंने धीरे से एक और धक्का मारा और इस बार मेरा सारा का सारा लण्ड उसकी चूत में समां गया. ऊऊओह्ह्ह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्छ साहब बहुत अच्छा लग रहा है! चोद दो मुझे! आज से मैं आपकी हो गई हूँ! आह्ह्ह् उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़ उईईईई आआआआआ! बहुत मज़ा आ रहा है! मैं उसकी चुदाई ज़ोर- ज़ोर से करने लगा और साथ में उसके मम्मों को चूस रहा था. मुझे बहुत दिनों के बाद कोई अच्छी चूत मिली थी इसलिए मैं अपनी सारी भड़ास निकलना चाहता था. मैंने उसके मम्मे चूसने के साथ-साथ दबाना भी चालू रखा था. उसकी सिसकियों से कमरे का माहौल काफ़ी गरम हो रहा था. ऊऊऊऊ आआआआआ अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्छ उईईईईईईई! साहब और ज़ोर से करो ना! मुझे और प्यार करो! मेरा पानी निकाल दो! आज बहुत दिनों के बाद एक असली मर्द से पला पड़ा है! आआआआआह्ह्ह्ह्ह ऊऊऊऊऊऊउह्ह्ह्ह्ह्ह्ह आआआआआआआ! मैं आआआअ रहीईईई हून्न्न्न्न साहब। मैंने भी ज़ोर-ज़ोर से उसको पेलना शुरू रखा और थोड़ी देर के बाद मैंने अपना उसकी चूत में सारा माल निकाल दिया. उसने मेरा लंड अपने मुँह से साफ़ किया और फिर मेरी बाहों में आ कर लेट गई.

रविवार, 26 अगस्त 2012

ज़हाज में दीदी -02

फिर मैं उनके बूब्स को दोनों हाथों से ज़ोर-ज़ोर से दबाने लगा मेरे इस तरह करने से वो और ज़्यादा तड़पने लगी। तब मैंने उनकी चूत को देखा, उसकी चूत पर बाल नहीं थे और उनकी चूत बहुत मस्त लग रही थी। उनकी चूत को देख कर मेरे मुंह में पानी आ गया और मैं उनकी चूत को चाटने लगा। दीदी ज़ोर-ज़ोर से चीखने लगी-आ आ आ आ ओ ऊ ऊ ओ ओ करने लगी...थोड़ी देर तक उनकी चूत चाटने के बाद मैंने देखा कि वो बहुत गरम हो चुकी थी लेकिन मैं उसको और गरम करना चाहता था इसलिए अब मैं अपने लण्ड को उनके पूरे बदन पर घुमाने लगा, पहले उनके चेहरे पर अपने लण्ड को लगाया फिर उनकी गर्दन पर, फिर उनके बूब्स पर, उनके निप्पल पर, उनके बूब्स के बीच में अच्छी तरह मैं अपने लण्ड को लगा रहा था। मेरे लण्ड से जो पानी निकल रहा था वो भी उनके पूरे बदन पर लग रहा था जिससे वो और ज़्यादा गरम हो रही थी। मैंने अपने लण्ड को उनके बूब्स के बीच में अच्छी तरह दबा दिया वो भी मेरे लण्ड को अपने बूब्स में रख कर ज़ोर-ज़ोर से दबाने लगी। 8 इंच लंबा और 3 इंच मोटा लण्ड देखते ही उनके होश उड़ गए और वो कहने लगी कि नहीं संजू प्लीज़ मेरे साथ वो मत करना मुझे बहुत दर्द होगा। मैंने कहा- डरो मत दीदी मैं बिल्कुल दर्द नहीं करूँगा। मगर वो मान ही नहीं रही थी। तो मैंने उसको कहा कि क्या तुम मेरे इस हथियार को अपने मुंह में ले सकती हो? उसने पहले तो मना किया पर फ़िर मेरे बार-बार प्लीज़ कहने पर वो मान गई। अब वो मेरे लण्ड को चूस रही थी और मानो मैं जन्नत में था। उससे खूबसूरत लड़की को मैंने अपनी ज़िंदगी में नहीं देखा था और वो मेरा लण्ड चूस रही थी। थोड़ी देर के बाद वो पूरे मज़े के साथ चुसाई का काम करने लगी और उसे भी खूब मज़ा आ रहा था। फिर क्या था मैंने अपना सारा माल दीदी की मुँह में ही डाल दिया। दीदी को शायद ख़राब लगा और उन्हें उलटी आने लगी। मैं जल्दी से उनकी चूत पर झुक गया। मादक सी गंध आ रही थी। मैंने धीरे से अपने होंठ उनकी चूत पर रख दिये। वो तिलमिला उठी मैने अपनी जीभ उनकी चूत के होठों पर रख दी। वो सिसक पड़ी। होले-होले मैं उनकी चूत की पूरी दरार चाटने लगा। वो तिलमिलाने लगी, तड़फ़ने लगी। मैंने अपनी जीभ की नोक उनकी चूत के छेद मे डाली और अन्दर तक ले गया। वो तड़फ़ती रही। मैं जोर-जोर से चूत रगड़ने लगा। उनकी सिसकियां बढ़ने लगी। अब वो सारे बहाने छोड़ कर दोनों हाथो से मेरे सर को अपनी चूत पर दबाने लगी। तभी वो काँपने लगी और उनकी चूत ने पानी छोड़ दिया और मैं उसका सारा पानी पी गया। मैंने देखा कि वो हांफ रही है ओर मेरी तरफ़ देख रही है, मैंने उनके कान के पास जाकर फुसफुसा के कहा- दीदी अब बोलो तुम्हे कैसा लगा? दीदी ने आँख खोली और गहरी साँस ली। मैं उनके ऊपर से नीचे आ गया, दीदी तुंरत बिस्तर पर से नीचे आ गयी। अब दीदी ने मुझे बेड पर लिटा दिया और मेरे ऊपर चढ़ कर लेट गई और मुस्कराया…उसने मुझे चूमना चालू कर दिया। एक हाथ नीचे ला कर मेरा मुरझाया हुआ लण्ड पकड़ लिया और उसे हिलाने लगी...लण्ड ने फिर से अंगडाई ली और जाग उठा. दीदी अपने हाथों में भर लिया और धीरे-धीरे मुठ मारने लगी। कुछ ही देर में मेरा लण्ड चोदने के लिए तैयार था। दीदी मेरे ऊपर लेट गयी, अपनी दोनों टांगे फैला दी, लण्ड का स्पर्श चूत के आस-पास लग रहा था। मैंने उनके होंट अपने होटों में दबा लिए। हम दोनों अपने आप को हिला कर लण्ड और चूत को सही जगह पर लेने की कोशिश कर रहे थे। उसने अपने दोनों हाथों से मुझे जकड़ लिया। मैंने अपनी जीभ उनके मुंह में घुसा दी। अचानक मेरे अन्दर आनंद की तीखी मीठी लहर दौड़ पड़ी। मेरा लण्ड एक बार फिर मर्दानगी दिखने के लिए उतावला हो गया। मैंने बाजी पलटी और दीदी को नीचे लिटा दिया और कहा- दीदी एक बार असली खेल भी खेल लेते हैं फ़िर बहुत मज़ा आएगा। वो फ़िर भी घबरा रही थी लेकिन अबकी बार थोड़ा सा ही समझाने पर वो तुरंत मान गई और मैंने मुंह से ढेर सारा थूक निकाल कर अपने लण्ड और उनकी चूत पर लगाया और अपना काम धीरे-धीरे शुरू किया। उसे बहुत दर्द हो रहा था और मेर लण्ड उनकी चूत में रास्ता बनाता हुआ अन्दर घुस गया। उनके मुंह से एक मीठी सी सिसकारी निकल पड़ी…”संजू...अ आह हह हह हह…सी ई स स स ई एई...!” एक धक्का मारा मेरा आधा लण्ड उनकी चूत में चला गया। वोह चिल्लाई- आआआआअह ह्ह्ह्ह्ह्छ ह्ह्ह...,संजू...धीरे! उनके बाद मैंने धीरे-धीरे पूरा लण्ड उनकी चूत में पेल दिया फिर धीरे-धीरे धक्के मारने लगा, मैंने महसूस किया कि दर्द के मारे उनके आँखों से आंसू निकल आए थे। मैंने उनके गालो को चूम कर पूछा,”ज्यादा दर्द हो रहा है..?” उसने जवाब दिया “इस दर्द को पाने के लिए हर लड़की जवान होती है...इस दर्द को पाए बिना हर यौवन अधूरा है!”मैं उनके इस जवाब पे बस मुस्कुरा ही पाया क्योंकि मेरे पास बोलने को कुछ था ही नही...अब हम दोनों को बहुत मजा आ रहा था।वो मुझ में लिपटी हुई थी…और मैं उसे चूम रहा था…वो मेरे नीचे थी और अपने पैरों को मेरे कमर के इर्द गिर्द लपेटे हुए थी मानो कोई सर्पिनी चंदन के पेड़ को अपने कुंडली से कसी हो...अब मैंने धीरे-धीरे अपनी रफ़्तार तेज कर दी…पूरे केबिन में मादक माहौल था...हमारी सिसकारियां ज़हाज के इस केबिन में ऐसे गूंज रही थी मानो जलजला आने से पहले बदल गरज रहे हो…वो जलजला जल्द ही आया जब मैं अपने कमर की हरकतों की वजह से चरम सीमा पे पहुँचने वाला था...उधर दीदी भी मुझे बोल रही थी...”संजू प्लीज और जोर से..और जोर से...मेरे शरीर में अजीब सी हलचल हो रही है"…मैं समझ गया कि वो भी चरम सीमा पे है…इस पर मैंने अपनी रफ्तार काफी तेज कर दी। देखते ही देखते हम उफान पर थे और सैलाब बस फूटने ही वाला था कि मैंने अपना लण्ड बाहर निकला और मानो मेरे लण्ड से कोई झरना फ़ूट पड़ा हो.. मैं वापस उनके बाँहों में निढाल हो गया..बहुत देर बाद जब मैं उठा और देखा कि संपा दीदी की जांघों पर खून गिरा है तब मैं समझ गया कि वो अभी तक अन्छुई थी..मुझे ये देख कर अपने किस्मत पर गर्व हो रहा था और साथ ही साथ दीदी के बारे में सोचने लगा कि..वो ऐसी लड़की नहीं थी कि किसी को भी अपना शरीर सौंप दे..इतने दिनों से अकेले कोलकाता में रहने के बाद भी वो आज तक अन्छुई थी…मैंने पास में पड़े तौलिए को उठाया और उनके बूर के ऊपर लगे खून को साफ़ करने लगा।जब खून साफ़ हुआ तो मैंने एक बात गौर की और मुस्कुराने लगा। दीदी ने मुझ से पूछा कि”…तुम क्या सोच कर मुस्कुरा रहे हो ..?” मैंने उनके बिल्कुल बिना बाल के गुलाब की पंखुड़ियों सी योनि-लबों को चूम कर के बोला…” दीदी सच बताऊँ तो..मैंने तुम्हारी बूर अभी तक नहीं देखी थी..और साफ़ करते वक्त अभी ही देखा...!” और हम दोनों हंस पड़े...उस दिन से अगले 4 दिन तक आप समझ ही सकते है कि हमारे सैलाब में कितनी बार उफान आई होगी..जब तक हम अंडमान नहीं पहुँचे।

क्या टीचर, सेक्स नहीं करती?

दोस्तों, मेरा नाम अनु है और आज मै आपको अपनी एक आपबीती सुनाती हु| जब मैने जवानी के दहलीज़ पर कदम रखा था, तभी से मुझे सेक्स और संभोग की आदत पड़ गयी थी| मुझे ये सेक्स की आदत, अपने एक टुशन टीचर से पड़ी| वो मुझे घर पर पढ़ाने आते थे और हम एक बंद कमरे मे पढ़ते थे और उनकी सख्त हिदायत थी, कि जब तक वो कमरे मे रहे, कोई कमरे मे नहीं आएगा| किसी को नहीं मालूम था, कि वो पढ़ाने के साथ-साथ, अपनी काम वासना को शांत करते है| उन्होंने मुझे करीब 2 साल पढाया और पता नहीं, कितनी बार चोदा और अपनी और मेरी कामवासना को बुझाया| जब वो चले गये, तो मुझे लंड की याद सताने लगी, लेकिन कुछ काम नहीं बन रहा था| मेरा कॉलेज पूरा हो गया और मुझे एक कंप्यूटर सेण्टर मे काम मिल गया| दुसरे दिन ही मुझे समझ आ गया था, कि वहा का मालिक, बहुत ही ठरकी इंसान है और उसने सेण्टर की दो-तीन लड़कियों से नाजायज संभंद बना रखे थे| मेरे आने के बाद, उसकी नज़र मुझ पर आ गयी और उसकी नज़र इतनी पारखी थी, उसे पता चल गया, कि मै भी काफी चुदकड़ हु और मुझे भी लंड की तलाश है| सेण्टर का मालिक अकेला था और उसने शादी नहीं की थे| वो घर मे अकेला ही रहता था| उसका मन घर पर नहीं लगता था, तो वो सन्डे को भी सेण्टर आ जाता था और कुछ ना कुछ करता रहता था| एक दिन, सन्डे को सिर्फ मेरी ही क्लास थी, मजेदार बात थी, कि मै समय से पहले ही पहुच गयी थी और थोड़ी देर बाद बारिश होनी शुरू हो गयी और सारे बच्चो को मैने फ़ोन करके मना कर दिया| अब बस मुझे बारिश के रुकने का इंतज़ार था और मै क्लास मे बैठी हुई काफी पी रही थी| इतने मे, मालिक आ गये और मुझे अकेले बैठा देखकर मेरे पास आ गये और वो भी काफ्फी पीने लगे| हम कुछ इधर-उधर की फालतू बातें करने लगे और फिर उन्होंने मेरे ऊपर काफी का कप गिरा दिया| उन्होंने मुझे से छमा मांगी और बाथरूम मे जाने  के लिए बोला| मेरा सारा कुरता गन्दा हो गया था| उन्होंने बोला, कि आप मेरे ऑफिस मे चले जाओ, वहा पर एक तोलिया रखा है| मै, मालिक के ऑफिस के बाथरूम चली गये और दरवाजे को अन्दर से बंद कर लिया और शीशे मे अपने को निहारने लगी| अचानक से बाथरूम का दरवाजा खुला और मालिक अंदर आ गया और मुझे पीछे से पकड़ लिया और मेरी गर्दन पर अपने होठ रख दिया| मैने पीछे देखा और मुस्कुरा दिया| कोई विरोध नहीं किया| बारिश ने मेरे मन भी हलचल कर दी थी| फिर, उनके हाथ मेरे पुरे शरीर पर रेंगने लगे, मेरी कमर, मेरे पेट और फिर उनके हाथ मेरे चूचो पर आकर रुक गये और मेरे बड़े चूचो को ब्रा के ऊपर से दबाने लगे| ब्रा के ऊपर से उन्हें मज़ा नहीं आ रहा था, तो उन्होंने मेरी ब्रा का हुक खोल दिया और मेरे मस्त गोरे और बड़े चुचे उनके सामने झूल गये| वो मेरे चूचो को शीशे मे देखकर आनंद ले रहे थे और पीछे खड़े हुए मेरे चूचो को दबा रहे थे| उनका लंड काफी फूल चुका था और खड़ा था, मुझे उसकी लम्बाई और मोटाई का अहसास अपनी गांड की लकीर पर हो रहा था| फिर,उन्होंने मुझे झटके से पलटा और मुझे अपनी बाहों मे भर लिया और मेरे होठो पर अपने होठ रख दिया| हम दोनों की ही सांसे गरम हो चुकी थी और हम दोनों मस्ती मे एक दुसरे को चूस रहे थे| मेरा शरीर भी मस्ती मे हिल रहा था| चूसते-चूसते,मैने उनके कपडे उतार दिये और उनको पूरा नंगा कर दिया| उनका बड़ा मोटा काला लंड मेरे सामने झूल रहा था और मेरी चूत मे उसे देखकर खुजली होनी शुरू हो गयी| वो कमोड पर बैठ गयी और अपने पैरो को खोल लिया| मैने उनका लंड अपने मुह मे लेकर चुसना शुरू कर दिया| उसके मुह से मस्ती भरी आवाज़े निकलने लगी…आआआआ…ऊऊऊओ…बस……बस करो…चुसे ले साली….मुझे उनकी बातें और मस्ती मे भर रही थी और मैने उनका लंड चुसना छोड़कर, जमीन पर लेट गयी और अपनी टाँगे खोल ली| वो मेरा इशारा समझ गये और मेरे पास आ गये और 61 मे मेरी चूत को चूसने लगे| उनकी जीभ मेरी चूत की घंटी पर लगी थी और मस्ती मे उसे चाट रहे थे| उनका लंड मेरे मुह के ऊपर झूल रहा था और उसके लंड से पानी निकलना शुरू हो गया| फिर, उन्होंने अपनी दो उंगलियों से मेरी चूत को खोला और अपना पूरा मुह उसमे घूसा दिया | उनकी जीभ मेरी चूत को अन्दर से चाट रही थे और मुझे से रुका नहीं जा रहा था और मैने उसके लंड पर काठ लिया | फिर, वो उठकर कमोड पर बैठ गये और अपने लंड को हिलाने लगे | मै उठी और अपनी चूत को दोनों हाथो से खोलकर उनके लंड के ऊपर रख लिया और अपने आप को नीचे धक्का मार दिया | ये वाली सेक्स पोज काफी मस्त होती है, और चूत कितनी भी फटी हो, मज़ा आता ही है और लंड की खाल भी नीचे खीच जाती है | उनका लंड काफी मोटा और लम्बा था और उनके एक ही वार करते ही मेरा सारा वीर्य निकल पड़ा और लंड के ऊपर नीचे होने साथ-साथ, सारा बाहर निकल कर मालिक के शरीर पर आ गया | वो साला अभी बाकी था, तो मैने अब उनका लंड निकल लिया और उनको फ्लश के साथ टिका दिया और सीधी होकर अपनी चूत उनके लंड पर रख दी |उनका लंड मेरी चूत पर चिपक गया था और मेरे कुछ मजेदार झटको, ने लंड का पानी निकल दिया | मैने अपनी चूत झट से हटा ली और उसके लंड के आगे अपना मुह रख लिया और चूसकर सारा वीर्य निगल लिया | हम दोनों मस्त हो चुके थे और बाथरूम के फर्श पर गिर गये | कुछ देर मे, बारिश बंद हो गयी और मै कपडे  पहनकर घर चली गयी | अगले दिन, जब मै ऑफिस पहुची, तो मेरा प्रोमोशन लेटर दिया गया और अब मुझे मालिक पर प्यार आने लगा था |

दीदी फिर से part II


कान्खो में हेयर रिमूविंग क्रीम लगा लेने के बाद दीदी फिर से नल की तरफ घूम गई और अपने हाथ को पीछे ले जाकर अपनी ब्रा का स्ट्रैप खोल दिया और अपने कंधो से सरका कर बहार निकाल फर्श पर दाल दिया और जल्दी से निचे बैठ गई. अब मुझे केवल उनका सर और थोड़ा सा गर्दन के निचे का भाग नज़र आ रहा था. अपनी किस्मत पर बहुत गुस्सा आया. काश दीदी सामने घूम कर ब्रा खोलती या फिर जब वो साइड से घूमी हुई थी तभी अपनी ब्रा खोल देती मगर ऐसा नहीं हुआ था और अब वो निचे बैठ कर शायद अपनी ब्लाउज और ब्रा और दुसरे कपड़े साफ़ कर रही थी. मैंने पहले सोचा की निकल जाना चाहिए, मगर फिर सोचा की नहाएगी तो खड़ी तो होगी ही, ऐसे कैसे नहा लेगी. इसलिए चुप-चाप यही लैट्रिन में ही रहने में भलाई है. मेरा धैर्य रंग लाया थोड़ी देर बाद दीदी उठकर खड़ी हो गई और उसने पेटीकोट को घुटनों के पास से पकड़ कर जांघो तक ऊपर उठा दिया. मेरा कलेजा एक दम धक् से रह गया. दीदी ने अपना पेटिकोट पीछे से पूरा ऊपर उठा दिया था. इस समय उनकी जांघे पीछे से पूरी तरह से नंगी हो गई थी. मुझे औरतो और लड़कियों की जांघे सबसे ज्यादा पसंद आती है. ऐसी जांघे जो की शारीरिक अनुपात में हो. पेटीकोट के उठते ही मेरे सामने ठीक वैसी ही जांघे थी जिनकी कल्पना कर मैं मुठ मारा करता था. एकदम चिकनी और मांसल. जिन पर हलके-हलके दांत गरा कर काटते हुए जीभ से चाटा जाये तो ऐसा अनोखा मजा आएगा की बयान नहीं किया जा सकता. दीदी की जांघे मसल होने के साथ सख्त और गठी हुई थी उनमे कही से भी थुलथुलापन नहीं था. इस समय दीदी की जांघे केले के पेड़ के चिकने तने की समान दिख रही थी. मैंने सोचा की जब हम केले के पेड़ के तने को काटते है या फिर उसमे कुछ घुसाते है तो एक प्रकार का रंगहीन तरल पदार्थ निकलता है शायद दीदी के जांघो को चूसने और चाटने पर भी वैसा ही रस निकलेगा. मेरे मुंह में पानी आ गया. लण्ड के सुपाड़े पर भी पानी आ गया था. सुपाड़े को लकड़ी के पट्टे पर हल्का सा सटा कर उस पानी को पोछ दिया और पैंटी में कसी हुई दीदी के चुत्तरों को ध्यान से देखने लगा. दीदी का हाथ इस समय अपनी कमर के पास था और उन्होंने अपने अंगूठे को पैंटी के इलास्टिक में फसा रखा था. मैं इस बात का इन्तेज़ार कर रहा था की कब दीदी अपनी पैंटी को निचे की तरफ सरकाती है. पेटीकोट कमर के पास जहा से पैंटी की इलास्टिक शुरू होती है वही पर हाथो के सहारे रुका हुआ था. दीदी ने अपनी पैंटी को निचे सरकाना शुरू किया और उसी के साथ ही पेटीकोट भी निचे की तरफ सरकता चला गया. ये सब इतनी तेजी से हुआ की दीदी के चुत्तर देखने की हसरत दिल में ही रह गई. दीदी ने अपनी पैंटी निचे सरकाई और उसी साथ पेटीकोट भी निचे आ कर उनके चुत्तरों और जांघो को ढकता चला गया. अपनी पैंटी उतार उसको ध्यान से देखने लगी पता नहीं क्या देख रही थी. छोटी सी पैंटी थी, पता नहीं कैसे उसमे दीदी के इतने बड़े चुत्तर समाते है. मगर शायद यह प्रश्न करने का हक मुझे नहीं था क्योंकी अभी एक क्षण पहले मेरी आँखों के सामने ये छोटी सी पैंटी दीदी के विशाल चुत्तरों पर अटकी हुई थी. कुछ देर तक उसको देखने के बाद वो फिर से निचे बैठ गई और अपनी पैंटी साफ़ करने लगी. फिर थोड़ी देर बाद ऊपर उठी और अपने पेटीकोट के नाड़े को खोल दिया. मैंने दिल थाम कर इस नज़ारे का इन्तेज़ार कर रहा था. कब दीदी अपने पेटीकोट को खोलेंगी और अब वो क्षण आ गया था. लौड़े को एक झटका लगा और दीदी के पेटीकोट खोलने का स्वागत एक बार ऊपर-निचे होकर किया. मैंने लण्ड को अपने हाथ से पकर दिलासा दिया. नाड़ा खोल दीदी ने आराम से अपने पेटीकोट को निचे की तरफ धकेला. पेटीकोट सरकता हुआ धीरे-धीरे पहले उसके तरबूजे जैसे चुत्तरो से निचे उतरा फिर जांघो और पैर से सरक निचे गिर गया. दीदी वैसे ही खड़ी रही. इस क्षण मुझे लग रहा था जैसे मेरा लण्ड पानी फेंक देगा. मुझे समझ में नहीं आ रहा था मैं क्या करू. मैंने आजतक जितनी भी नंगी लड़कियों की फिल्में और तस्वीरे देखी थी. वो सब उस क्षण में मेरी नजरो के सामने गुजर गई और मुझे यह अहसास दिला गई की मैंने आज तक ऐसा नज़ारा कभी नहीं देखा. वो तस्वीरें वो लड़कियाँ सब बेकार थी. उफ़ दीदी पूरी तरह से नंगी हो गई थी. हालाँकि मुझे केवल उनके पिछले भाग का नज़ारा मिल रहा था, फिर भी मेरी हालत ख़राब करने के लिए इतना ही काफी था. गोरी चिकनी पीठ जिस पर हाथ डालो तो सीधा फिसल का चुत्तर पर ही रुकेंगी. पीठ के ऊपर काला तिल, दिल कर रहा था आगे बढ़ कर उसे चूम लू. रीढ़ की हड्डियों की लाइन पर अपने तपते होंठ रख कर चूमता चला जाऊ. पीठ इतनी चिकनी और दूध की धुली लग रही थी की नज़र टिकाना भी मुश्किल लग रहा था. तभी तो मेरी नज़र फिसलती हुई दीदी के चुत्तरो पर आ कर टिक गई. ओह, मैंने आज तक ऐसा नहीं देखा था. गोरी चिकनी चुत्तर. चुत्तरों के मांस को हाथ में पकर दबाने के लिए मेरे हाथ मचलने लगे. दीदी के चुत्तर एकदम गोरे और काफी विशाल थे. उनके शारीरिक अनुपात में, पतली कमर के ठीक निचे मोटे मांसल चुत्तर थे. उन दो मोटे-मोटे चुत्तरों के बीच ऊपर से निचे तक एक मोटी लकीर सी बनी हुई थी. ये लकीर बता रही थी की जब दीदी के दोनों चुत्तरों को अलग किया जायेगा तब उनकी गांड देखने को मिल सकती है या फिर यदि दीदी कमर के पास से निचे की तरफ झुकती है तो चुत्तरों के फैलने के कारण गांड के सौंदर्य का अनुभव किया जा सकता है. तभी मैंने देखा की दीदी अपने दोनों हाथो को अपनी जांघो के पास ले गई फिर अपनी जांघो को थोड़ा सा फैलाया और अपनी गर्दन निचे झुका कर अपनी जांघो के बीच देखने लगी शायद वो अपनी चूत देख रही थी. मुझे लगा की शायद दीदी की चूत के ऊपर भी उसकी कान्खो की तरह से बालों का घना जंगल होगा और जरुर वो उसे ही देख रही होंगी. मेरा अनुमान सही था और दीदी ने अपने हाथ को बढा कर रैक पर से फिर वही क्रीम वाली बोतल उतार ली और अपने हाथो से अपने जांघो के बीच क्रीम लगाने लगी. पीछे से दीदी को क्रीम लगाते हुए देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वो मुठ मार रही है. क्रीम लगाने के बाद वो फिर से निचे बैठ गई और अपने पेटीकोट और पैंटी को साफ़ करने लगी. मैंने अपने लौड़े को आश्वाशन दिया की घबराओ नहीं कपरे साफ़ होने के बाद और भी कुछ देखने को मिल सकता है. ज्यादा नहीं तो फिर से दीदी के नंगे चुत्तर, पीठ और जांघो को देख कर पानी गिरा लेंगे. करीब पांच-सात मिनट के बाद वो फिर से खड़ी हो गई. लौड़े में फिर से जान आ गई. दीदी इस समय अपनी कमर पर हाथ रख कर खड़ी थी. फिर उसने अपने चुत्तर को खुजाया और सहलाया फिर अपने दोनों हाथों को बारी-बारी से उठा कर अपनी कान्खो को देखा और फिर अपने जांघो के बीच झाँकने के बाद फर्श पर परे हुए कपड़ो को उठाया. यही वो क्षण था जिसका मैं काफी देर से इन्तेज़ार कर रहा था. फर्श पर पड़े हुए कपड़ो को उठाने के लिए दीदी निचे झुकी और उनके चुत्तर लकड़ी के पट्टो के बीच बने गैप के सामने आ गए. निचे झुकने के कारण उनके दोनों चुत्तर अपने आप अलग हो गए और उनके बीच की मोटी लकीर अब दीदी की गहरी गांड में बदल गई. दोनों चुत्तर बहुत ज्यादा अलग नहीं हुए थे मगर फिर भी इतने अलग तो हो चुके थे की उनके बीच की गहरी खाई नज़र आने लगी थी. देखने से ऐसा लग रहा था जैसे किसी बड़े खरबूजे को बीच से काट कर थोड़ा सा अलग करके दो खम्भों के ऊपर टिका कर रख दिया गया है. दीदी वैसे ही झुके हुए बाल्टी में कपड़ो को डाल कर खंगाल रही थी और बाहर निकाल कर उनका पानी निचोड़ रही थी. ताकत लगाने के कारण दीदी के चुत्तर और फ़ैल गए और गोरी चुत्तरों के बीच की गहरी भूरे रंग की गांड की खाई पूरी तरह से नज़र आने लगी. दीदी की गांड की खाई एक दम चिकनी थी. गांड के छेद के आस-पास भी बाल उग जाते है मगर दीदी के मामले में ऐसा नहीं था उसकी गांड, जैसा की उसका बदन था, की तरह ही मलाई के जैसी चिकनी लग रही थी. झुकने के कारण चुत्तरों के सबसे निचले भाग से जांघो के बीच से दीदी की चूत के बाल भी नजर आ रहे थे. उनके ऊपर लगा हुआ सफ़ेद क्रीम भी नज़र आ रहा था. चुत्तरो की खाई में काफी निचे जाकर जहा चूत के बाल थे उनसे थोड़ा सा ऊपर दीदी की गांड की सिकुरी हुई भूरे रंग की छेद थी. ऊँगली के अगले सिरे भर की बराबर की छेद थी. किसी फूल की तरह से नज़र आ रही थी. दीदी के एक दो बार हिलने पर वो छेद हल्का सा हिला और एक दो बार थोड़ा सा फुला-पिचका. ऐसा क्यों हुआ मेरी समझ में नहीं आया मगर इस समय मेरा दिल कर रहा था की मैं अपनी ऊँगली को दीदी की गांड की खाई में रख कर धीरे-धीरे चलाऊ और उसके भूरे रंग की दुप-दुपाती छेद पर अपनी ऊँगली रख हलके-हलके दबाब दाल कर गांड की छेद की मालिश करू. उफ़ कितना मजा आएगा अगर एक हाथ से चुत्तर को मसलते हुए दुसरे हाथ की ऊँगली को गांड की छेद पर डाल कर हलके-हलके कभी थोड़ा सा अन्दर कभी थोड़ा सा बाहर कर चलाया जाये तो. पूरी ऊँगली दीदी की गांड में डालने से उन्हें दर्द हो सकता था इसलिए पूरी ऊँगली की जगह आधी ऊँगली या फिर उस से भी कम डाल कर धीरे धीरे गोल-गोल घुमाते हुए अन्दर-बाहर करते हुए गांड की फूल जैसी छेद ऊँगली से हलके-हलके मालिश करने में बहुत मजा आएगा. इस कल्पना से ही मेरा पूरा बदन सिहर गया. दीदी की गांड इस समय इतनी खूबसूरत लग रही थी की दिल कर रहा थी अपने मुंह को उसके चुत्तरों के बीच घुसा दू और उसकी इस भूरे रंग की सिकुरी हुई गांड की छेद को अपने मुंह में भर कर उसके ऊपर अपना जीभ चलाते हुए उसके अन्दर अपनी जीभ डाल दू. उसके चुत्तरो को दांत से हलके हलके काट कर खाऊ और पूरी गांड की खाई में जीभ चलाते हुए उसकी गांड चाटू. पर ऐसा संभव नहीं था. मैं इतना उत्तेजित हो चूका था की लण्ड किसी भी समय पानी फेंक सकता था. लौड़ा अपनी पूरी औकात पर आ चूका था और अब दर्द करने लगा था. अपने अंडकोष को अपने हाथो से सहलाते हुए हलके से सुपाड़े को दो उँगलियों के बीच दबा कर अपने आप को सान्तवना दिया.
सारे कपड़े अब खंगाले जा चुके थे. दीदी सीधी खड़ी हो गई और अपने दोनों हाथो को उठा कर उसने एक अंगराई ली और अपनी कमर को सीधा किया फिर दाहिनी तरफ घूम गई. मेरी किस्मत शायद आज बहुत अच्छी थी. दाहिनी तरफ घूमते ही उसकी दाहिनी चूची जो की अब नंगी थी मेरी लालची आँखों के सामने आ गई. उफ़ अभी अगर मैं अपने लण्ड को केवल अपने हाथ से छू भर देता तो मेरा पानी निकल जाता. चूची का एक ही साइड दिख रहा था. दीदी की चूची एक दम ठस सीना तान के खड़ी थी. ब्लाउज के ऊपर से देखने पर मुझे लगता तो था की उनकी चूचियां सख्त होंगी मगर 28-29 साल की होने के बाद भी उनकी चुचियों में कोई ढलकाव नहीं आया था. इसका एक कारण ये भी हो सकता था की उनको अभी तक कोई बच्चा नहीं हुआ था. दीदी को शायद ब्रा की कोई जरुरत ही नहीं थी. उनकी चुचियों की कठोरता किसी भी 17-18
साल की लौंडिया के दिल में जलन पैदा कर सकती थी. जलन तो मेरे दिल में भी हो रही थी इतनी अच्छी चुचियों मेरी किस्मत में क्यों नहीं है. चूची एकदम दूध के जैसी गोरे रंग की थी. चूची का आकार ऐसा था जैसे किसी मध्यम आकार के कटोरे को उलट कर दीदी की छाती से चिपका दिया गया हो और फिर उसके ऊपर किशमिश के एक बड़े से दाने को डाल दिया गया हो. मध्यम आकार के कटोरे से मेरा मतलब है की अगर दीदी की चूची को मुट्ठी में पकड़ा जाये तो उसका आधा भाग मुट्ठी से बाहर ही रहेगा. चूची का रंग चूँकि हद से ज्यादा गोरा था इसलिए हरी हरी नसे उस पर साफ़ दिखाई पर रही थी, जो की चूची की सुन्दरता को और बढा रही थी. साइड से देखने के कारण चूची के निप्पल वन-डायेमेन्शन में नज़र आ रहे थे. सामने से देखने पर ही थ्री-डायेमेन्शन में नज़र आ सकते थे. तभी उनकी लम्बाई, चौड़ाई और मोटाई का सही मायेने में अंदाज लगाया जा सकता था मगर क्या कर सकता था मजबूरी थी मैं साइड व्यू से ही काम चला रहा था. निप्पलों का रंग गुलाबी था, पर हल्का भूरापन लिए हुए था. बहुत ज्यादा बड़ा तो नहीं था मगर एक दम छोटा भी नहीं था किशमिश से बड़ा और चॉकलेट से थोड़ा सा छोटा. मतलब मुंह में जाने के बाद चॉकलेट और किशमिश दोनों का मजा देने वाला. दोनों होंठो के बीच दबा कर हलके-हलके दबा-दबा कर दांत से काटते हुए अगर चूसा जाये तो बिना चोदे झर जाने की पूरी सम्भावना थी
दाहिनी तरफ घूम कर आईने में अपने दाहिने हाथ को उठा कर देखा फिर बाएं हाथ को उठा कर देखा. फिर अपनी गर्दन को झुका कर अपनी जांघो के बीच देखा. फिर वापस नल की तरफ घूम गई और खंगाले हुए कपरों को वही नल के पास बनी एक खूंटी पर टांग दिया और फिर नल खोल कर बाल्टी में पानी भरने लगी. मैं समझ गया की दीदी अब शायद नहाना शुरू करेंगी. मैंने पूरी सावधानी के साथ अपनी आँखों को लकड़ी के पट्टो के गैप में लगा दिया. मग में पानी भर कर दीदी थोड़ा सा झुक गई और पानी से पहले अपने बाएं हाथ फिर दाहिनी हाथ के कान्खो को धोया. पीछे से मुझे कुछ दिखाई नहीं पर रहा था मगर. दीदी ने पानी से अच्छी तरह से धोने के बाद कान्खो को अपने हाथो से छू कर देखा. मुझे लगा की वो हेयर रेमोविंग क्रीम के काम से संतुष्ट हो गई और उन्होंने अपना ध्यान अब अपनी जांघो के बीच लगा दिया. दाहिने हाथ से पानी डालते हुए अपने बाएं हाथ को अपनी जांघो बीच ले जाकर धोने लगी. हाथों को धीरे धीरे चलाते हुए जांघो के बीच के बालों को धो रही थी. मैं सोच रहा था की काश इस समय वो मेरी तरफ घूम कर ये सब कर रही होती तो कितना मजा आता. झांटों के साफ़ होने के बाद कितनी चिकनी लग रही होगी दीदी की चुत ये सोच का बदन में झन-झनाहट होने लगी. पानी से अपने जन्घो के बीच साफ़ कर लेने के बाद दीदी ने अब नहाना शुरू कर दिया. अपने कंधो के ऊपर पानी डालते हुए पुरे बदन को भीगा दिया. बालों के जुड़े को खोल कर उनको गीला कर शैंपू लगाने लगी. दीदी का बदन भीग जाने के बाद और भी खूबसूरत और मदमस्त लगने लगा था. बदन पर पानी पड़ते ही एक चमक सी आ गई थी दीदी के बदन में. शैंपू से खूब सारा झाग बना कर अपने बालों को साफ़ कर रही थी. बालो और गर्दन के पास से शैंपू मिला हुआ मटमैला पानी उनकी गर्दन से बहता हुआ उनकी पीठ पर चुते हुए निचे की तरफ गिरता हुआ कमर के बाद सीधा दोनों चुत्तरों के बीच यानी की उनके बीच की दरार जो की दीदी की गांड थी में घुस रहा था. क्योंकि ये पानी शैंपू लगाने के कारण झाग से मिला हुआ था और बहुत कम मात्रा में था इसलिए गांड की दरार में घुसने के बाद कहा गायब हो जा रहा था ये मुझे नहीं दिख रहा था. अगर पानी की मात्रा ज्यादा होती तो फिर वो वहां से निकल कर जांघो के अंदरूनी भागो से ढुलकता हुआ निचे गिर जाता. बालों में अच्छी तरह से शैंपू लगा लेने के बाद बालों को लपेट कर एक गोला सा बना कर गर्दन के पास छोड़ दिया और फिर अपने कंधो पर पानी डाल कर अपने बदन को फिर से गीला कर लिया. गर्दन और पीठ पर लगा हुआ शैंपू मिला हुआ मटमैला पानी भी धुल गया था. फिर उन्होंने एक स्पोंज के जैसी कोई चीज़ रैक पर से उठा ली और उस से अपने पुरे बदन को हलके-हलके रगरने लगी. पहले अपने हाथो को रगरा फिर अपनी छाती को फिर अपनी पीठ को फिर बैठ गई. निचे बैठने पर मुझे केवल गर्दन और उसके निचे का कुछ हिस्सा दिख रहा था. पर ऐसा लग रहा था जैसे वो निचे बैठ कर अपने पैरों को फैला कर पूरी तरह से रगर कर साफ़ कर रही थी क्योंकि उनका शरीर हिल रहा था. थोरी देर बाद खड़ी हो गई और अपने जांघो को रगरना शुरू कर दिया. मैं सोचने लगा की फिर निचे बैठ कर क्या कर रही थी. फिर दिमाग में आया की हो सकता है अपने पैर के तलवे और उँगलियों को रगर कर साफ़ कर रही होंगी. मेरी दीदी बहुत सफाई पसंद है. जैसे उसे घर के किसी कोने में गंदगी पसंद नहीं है उसी तरह से उसे अपने शरीर के किसी भी भाग में गंदगी पसंद नहीं होगी. अब वो अपने जांघो को रगर रगर कर साफ़ कर रही थी और फिर अपने आप को थोड़ा झुका कर अपनी दोनों जांघो को फैलाया और फिर स्पोंज को दोनों जांघो के बीच ले जाकर जांघो के अंदरूनी भाग और रान को रगरने लगी. पीछे से देखने पर लग रहा था जैसे वो जांघो को जोर यानि जहाँ पर जांघ और पेट के निचले हिस्से का मिलन होता और जिसके बीच में चूत होती है को रगर कर साफ़ करते हुए हलके-हलके शायद अपनी चूत को भी रगर कर साफ़ कर रही थी ऐसा मेरा सोचना है. वैसे चुत जैसी कोमल चीज़ को हाथ से रगर कर साफ़ करना ही उचित होता. वाकई ऐसा था या नहीं मुझे नहीं पता, पीछे से इस से ज्यादा पता भी नहीं चल सकता था. थोड़ी देर बाद थोड़ा और झुक कर घुटनों तक रगर कर फिर सीधा हो कर अपने हाथों को पीछे ले जाकर अपने चुत्तरों को रगरने लगी. वो थोड़ी-थोड़ी देर में अपने बदन पर पानी डाल लेती थी जिस से शरीर का जो भाग सुख गया होता वो फिर से गीला हो जाता था और फिर उन्हें रगरने में आसानी होती थी. चुत्तरों को भी इसी तरह से एक बार फिर से गीला कर खूब जोर जोर से रगर रही थी. चुत्तरों को जोर से रगरने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था क्योंकि वहां का मांस बहुत मोटा था, पर जोर से रगरने के कारण लाल हो गया था और थल-थलाते हुए हिल रहा था. मेरे हाथों में खुजली होने लगी थी और दिल कर रहा था की थल-थलाते हुए चुत्तरों को पकड़ कर मसलते हुए हलके-हलके मारते हुए खूब हिलाउ. चुत्तारों को रगरने के बाद दीदी ने स्पोंज को दोनों चुत्तरों की दरार के ऊपर रगरने लगी फिर थोड़ा सा आगे की तरफ झुक गैई जिस से उसके चुत्तर फ़ैल गए. फिर स्पोंज को दोनों चुत्तरों के बीच की खाई में डाल कर रगड़ने लगी. कोमल गांड की फूल जैसी छेद शायद रगड़ने के बाद लाल हो गुलाब के फूल जैसी खिल जायेगी. ये सोच कर मेरे मन में दीदी की गांड देखने की तीव्र इच्छा उत्पन्न हो गई. मन में आया की इस लकड़ी की दिवार को तोड़ कर सारी दुरी मिटा दू, मगर, सोचने में तो ये अच्छा था, सच में ऐसा करने की हिम्मत मेरी गांड में नहीं थी. बचपन से दीदी का गुस्सैल स्वभाव देखा था, जानता था, की जब उस दुबई वाले को नहीं छोड़ती थी तो फिर मेरी क्या बिसात. गांड पर ऐसी लात मारेगी की गांड देखना भूल जाऊंगा. हालाँकि दीदी मुझे प्यार भी बहुत करती थी और मुझे कभी भी परेशानी में देख तुंरत मेरे पास आ कर मेरी समस्या के बारे में पूछने लगती थी.
स्पोंज से अपने बदन को रगड़ने के बाद. वापस स्पोंज को रैक पर रख दिया और मग से पानी लेकर कंधो पर डालते हुए नहाने लगी. मात्र स्पोंज से सफाई करने के बाद ही दीदी का पूरा बदन चम-चमाने लगा था. पानी से अपने पुरे बदन को धोने के बाद दीदी ने अपने शैंपू लगे बालों का गोला खोला और एक बार फिर से कमर के पास से निचे झुक गई और उनके चुत्तर फिर से लकड़ी के पट्टो के बीच बने गैप के सामने आ गए. इस बार उनके गोरे चम-चमाते चुत्तरों के बीच की चमचमाती खाई के आलावा मुझे एक और चीज़ के दिखने को मिल रही थी. वो क्या थी इसका अहसास मुझे थोड़ी देर से हुआ. गांड की सिकुरी हुई छेद से करीब चार अंगुल भर की दूरी पर निचे की तरफ एक लम्बी लकीर सी नज़र आ रही थी. मैं ये देख कर ताज्जुब में पर गया, पर तभी ख्याल आया की घोंचू ये तो शायद चूत है. पहले ये लकीर इसलिए नहीं नज़र आ रही थी क्योंकि यहाँ पर झान्ट के बाल थे, हेयर रिमुविंग क्रीम ने जब झांटो की सफाई कर दी तो चूत की लकीर स्पष्ट दिखने लगी. इस बात का अहसास होते ही की मैं अपनी दीदी की चूत देख रहा हूँ, मुझे लगा जैसे मेरा कलेजा मुंह को आ जायेगा और फिर से मेरा गला सुख गया और पैर कांपने लगे. इस बार शायद मेरे लण्ड से दो बूँद टपक कर निचे गिर भी गया पर मैंने इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया. लण्ड भी मारे उत्तेजना के काँप रहा था. बाथरूम में वैसे तो लाइट आँन थी मगर चूँकि बल्ब भी लकरी के पट्टो के सामने ही लगा हुआ था इसलिए दीदी की पीठ की तरफ रोशनी कम थी. फिर भी दोनों मोटी जांघो के बीच ऊपर की तरफ चुत्तरों की खाई के ठीक निचे एक गुलाबी लकीर सी दिख रही थी. पट्टो के बीच से देखने से ऐसा लग रहा था जैसे सेब या पके हुए पपीते के आधे भाग को काट कर फिर से आपस में चिपका कर दोनों जांघो के बीच फिट कर दिया गया है. मतलब दीदी की चूत ऐसी दिख रही थी जैसे सेब को चार भागो में काट कर फिर दो भागो को आपस में चिपका कर गांड के निचे लगा दिया गया हो. कमर या चुत्तरों के इधर-उधर होने पर दोनों फांकों में भी हरकत होती थी और ऐसा लगता जैसे कभी लकीर टेढी हो गई है कभी लकीर सीधी हो गई है. जैसे चूत के दोनों होंठ कभी मुस्कुरा रहे है कभी नाराज़ हो रहे है. दोनों होंठ आपस में एक दुसरे से एक दम सटे हुए दिख रहे थे. होंठो के आपस में सटे होने के मतलब बाद में समझ में आया की ऐसा चूत के बहुत ज्यादा टाइट होने के कारण था. दोनों फांक एक दम गुलाबी और पावरोटी के जैसे फूले हुए थे. मेरे मन में आया की काश मैं चूत की लकीर पर ऊपर से निचे तक अपनी ऊँगली चला और हलके से दोनों फांकों को अलग कर के देख पाता की कैसी दिखती है, दोनों गुलाबी होंठो के बीच का अंदरूनी भाग कैसा है मगर ये सपना ही रह गया. दीदी के बाल धुल चुके थे और वो सीधी खड़ी हो गई.
बालो को अच्छी तरह से धोने के बाद फिर से उनका गोला बना कर सर के ऊपर बाँध लिया और फिर अपने कंधो पर पानी डाल कर अपने आप को फिर से गीला कर पुरे बदन पर साबुन लगाने लगी. पहले अपने हाथो पर अच्छी तरह से साबुन लगाया फिर अपने हाथो को ऊपर उठा कर वो दाहिनी तरफ घूम गई और अपने कान्खो को आईने में देख कर उसमे साबुन लगाने लगी. पहले बाएं कांख में साबुन लगाया फिर दाहिने हाथ को उठा कर दाहिनी कांख में जब साबुन लगाने जा रही थी तो मुझे हेयर रिमुविंग क्रीम का कमाल देखने को मिला. दीदी की कांख एक दम

बुधवार, 22 अगस्त 2012

चूची में दूध है क्या?


दोस्तो, मेरी पहली कहानी में मैंने अपनी चाची अनीता के साथ हुए हसीं लम्हों को सुनाया था! इस कहानी मैं आगे की बातें करने जा रहा हूँ। अनीता चाची के साथ चुदाई समारोह अब रोज चलता था। मैं और चाची हमेशा साथ में खाना खाते थे। हम सबके सामने काफी गप्पें मारते थे। शायद मेरी छोटी चाची हेमा को कुछ शक हो गया था...एक दिन डिनर के बाद मेरी दोनों चाचियाँ गप्पे हांक रही थीं...मैं पीछे छुप कर उनकी बात सुन रहा था।हेमा:-दीदी, मैं कुछ पूछूँ आपसे?अनीता:-हाँ हेमा। पूछ ना!हेमा:-आजकल राज हमेशा आपके साथ ही रहता है, आपके कमरे में ही पढ़ता है और आप दोनों हमेशा इतने खुश रहते हैं, इसके पीछे कोई खास बात तो नहीं है?अनीता:-अरे नहीं हेमा! वो राज को गणित में प्रोब्लम है और मुझे गणित आता है तो मैं उसे पढ़ा देती हूँ इसलिए वो मेरे कमरे में ही पढ़ता है और हम दोनों खुश रहते हैं तो इसमे बुरा क्या है?हेमा:-दीदी तब आप लोग लंच के बाद रोज दरवाजा क्यूँ बंद के पढ़ते हो?अनीता:-अरे हेमा वो तो ऐसे ही कि कोई तंग न करे!हेमा:-दीदी आप तो ऐसे जवाब दे रही हो जैसे कि मैं बच्ची हूँ, मुझे कुछ पता ही नहीं है। अनीता:-तू ऐसा क्यूँ बोले रही है?हेमा:-मैंने एक दिन दरवाज़े पे कान लगा के आपकी पढ़ाई की कहानी सुनी थी!मुझे सब पता है वहां कैसी गणित की पढ़ाई होती है!अनीता:-(मुस्कुराते हुए) अच्छा तो तुझे सब पता है! तो ऐसा बोलो ना! देखो सोनम दीदी को मत बोलना! पर क्या करूँ, राज ने यह सब करने के लिए पता नहीं कैसे मुझे पटा लिया!फिर मुझे अच्छा लगने लगा तो मैंने भी शर्म छोड़ दी। अब रात में पति जी से और दिन में राज से चुदवाती हूँ। बूर को अजब सी शान्ति मिलती है, राज का जवान लंड मेरी सारी प्यास बुझा देता है। तेरा रमेश तुझे अच्छे से चोदता है ना?हेमा:-अरे कहाँ दीदी! आजकल वो काफी थके हुए आते हैं, कुछ भी नहीं करते, मैं तो भूल ही गई कि पिछली बार मैंने कब चुदवाया था! इसलिए तो!अनीता:-अच्छा तो यह बात है! तो तू चाहती है कि राज तुझे भी चोदे?हेमा:-चाहने से क्या होगा दीदी!आप इतनी सेक्सी हो,आपको छोड़ के मुझे क्यूँ चोदेगा वो?अनीता:-(हँसते हुए) अरे तू तो काफी प्यासी लगती है...अच्छा यह बता!तेरे स्तन से दूध अभी भी आता होगा ना? हेमा:-हाँ दीदी,दूध तो निकलता है और अब सोनू भी नहीं पीता...सो भरा हुआ है...अनीता:-तब तो राज तुझे जरूर चोदेगा...उसे दूध पीने की बहुत इच्छा है...राज, वो मुझसे 
बोलता है! रुक जा मैं उसे कल हिंट दे दूँगी!हेमा:-दीदी पर कोई परेशानी तो नहीं हो जाएगी ना?अनीता:-अरे नहीं,कुछ नहीं होगा...तू अब जा! रमेश आएगा...उससे अच्छे से प्यार कर... उसे शक नहीं होने देना कि तेरा कहीं और का मन भी है...फिर वो दोनों अपने-अपने कमरे में चली गई।आज तो जैसे मैंने दुनिया की सबसे हसीं मूवी देखी थी...दोनों चाचियाँ मेरे बारे में जो बात कर रही थी...उससे मेरा लंड तो सलामी देने को तैयार था...दूसरे दिन जब मैंने हेमा चाची को देखा तो चाची मुझे दुनिया की सबसे हसीन औरत लगी...मैंने उन्हें देख के हल्की सी मुस्कान दी...चाची भी बड़े अंदाज़ से हँसी...लंच के बाद जब मैं अनीता चाची के पास गया तो...आज चाची बेड पे लेटी हुई थी...जैसे बीमार हो...मैं:-चाची आपकी तबियत ठीक नहीं है क्या?चाची:-नहीं रे...पता नहीं आज कुछ अच्छा नहीं लग रहा...आज तुझे चोदने नहीं मिलेगा...मैं:-कोई बात नहीं चाची...आप अच्छी हो जाओ पहले...अनीता:-तुझे पता है...हेमा चाची क्या समझती है...कि मेरे कमरे में गणित पढ़ने आता है...तो आज वो बोल रही थी कि दीदी आपकी तबियत ठीक नहीं है...यदि उसे कोई प्रॉब्लम है तो मेरा पास भेज देना...मैं बता दूंगी...अब तू हेमा के पास चला जा, नहीं तो उसे शक हो जाएगा...चाची को क्या पता था कि मुझे सब पता है...उनके बीच क्या चल रहा है...मैं:-चाची पर वहां जाकर मैं क्या करूँगा...चाची:-अरे गणित में कुछ पूछ लेना...और एक बात बोलूं!तू जो रोज बोलता है चाची आपकी चूची में दूध नहीं है...दूध से हेमा की चूची भरी हुई है...जा देख शायद तुझे पीने को मिल जाए...मैं:-चाची आप तो मजाक कर रही हो...हेमा चाची ऐसे थोड़े दे देगी अपना चूची निकाल के...ठीक है, आप बोलती हो तो मैं जाता हूँ...कुछ गणित से सम्बन्धित सवाल पूछ लूँगा...मन में तो मैंने सोच लिया था कि आज ही हेमा चाची की चूत का रस और चूची का दूध सब पी जाना है। मैं वहां से सीधा हेमा चाची के कमरे में गया...चाची ने जैसे ही दरवाजा खोला, मैं तो देखता ही रह गया...चाची कुछ माल लग रही थी...उन्होंने कोई नया सूट पहन रखा था...मैं:-चाची क्या मैं अन्दर आ सकता हूँ...आपसे कुछ गणित के सवाल पूछने हैं...वो अनीता चाची बीमार है ना...चाची:-हाँ राज,मुझे दीदी ने बोला था...मैं तेरा ही इन्तज़ार कर रही थी, आ ना...मैं:-चाची आप इस ड्रेस में बहुत खूबसूरत लग रही हो...चाची:-तुझे अच्छा लगा ये ड्रेस?आज पहली बार पहनी है...मैं:-हाँ चाची,आप ऐसे ही ड्रेस पहना करो...आप पर बहुत अच्छी लगती हैं...चाची:-चल आ बैठ...!और बोल!क्या चल रहा है तेरी जिन्दगी में? तू तो बस अनीता दीदी से ही बातें करता है...मैं तेरी अच्छी चाची थोड़े ही हूँ!मैं:-नहीं चाची ऐसी कोई बात नहीं है...आप भी बहुत अच्छी हो...बात करते-करते चाची ने अपना दुपट्टा सरका दिया...चाची के उभार अब छुपाये नहीं छुप रहे थे...मैं भी अपने आप को रोक न सका...चाची की चूचियों को देखने लगा...चाची:-मुझसे नज़रें भी नहीं मिला रहे हो...क्या देख रहे हो नीचे?मैं:-चाची कुछ नहीं, सच्ची में आप भी बहुत अच्छी हो...चाची:-कहीं तू मेरे सीने को तो नहीं देख रहा?...बदमाश!मैं:-चाची आपके वक्ष इतने अच्छे और बड़े हैं कि मेरी नज़र वहां से नहीं हट रही है...चाची:-अपनी चाची की चूची को ऐसे थोड़े देखते हैं...ये तेरे छोटी बहिन को दूध पिलाने के लिए है...मैं:-चाची,सोनू तो अब बड़ी हो गई है!आप उसे अभी भी दूध पिलाती हो?चाची:-नहीं!अब दूध सोनू नहीं पीती!मैं:-चाची,आपकी चूची में दूध है क्या?चाची:-हाँ अभी भी दूध है...इसलिए तो इतने बड़े हैं!मैं:-चाची मुझे प्यास लगी है...चाची:-जा वहां पानी रखा है, पी ले...मैं:-चाची,पानी नहीं दूध पीना है...आपकी चूची का दूध...चाची:-बदमाश!कोई अपनी चाची का दूध पीता है भला?मैं:-चाची यदि माँ का पी सकते हैं तो चाची का क्यूँ नहीं?चाची:-अरे माँ का बचपन में पी रहा था...चाची का अब?मैं:-चाची,पीने दो न...आपके दूध का क़र्ज़ जरूर चुकाऊंगा...चाची:-अच्छा ठीक है पी ले...काफी दिन से भरी हुई हैं...खाली करने वाला कोई है नहीं...फिर चाची ने अपना कमीज़ उतार दिया...अब चाची ब्रा में आ गई...चाची:-आ जा राज!मेरी गोद में आ...तुझे अपने बच्चे की तरह पिलाऊंगी...मैंने चाची की गोद में सिर रख लिया...चाची ने अपनी ब्रा उतारी...और अपनी चूची को ख़ुद मेरे मुँह में डाल दिया...लो राज पी लो...अच्छे से पीना...उसके बाद में दूध का प्यासा चाची की दूध को मेमने की तरह पीने लगा...कभी बाएं चूची से तो कभी दायें से...साथ में चूची सहला भी रहा था।चाची:-तू तो ऐसे पी रहा है जैसे जन्मों से प्यासा हो!मैं:-चाची आज अपने मुझे वो खुशी दी है कि मैं सदा आपका आभारी रहूँगा...आप जो बोलोगी वो सब करूँगा...चाची:-जो बोलूंगी वो करेगा?मैं:-हाँ चाची आप एक बार बोल के तो देखो...चाची:-अच्छा ठीक है...सुन मेरे नीचे में ना काफी खुजली हो रही है...ज़रा मेरी खुजली मिटा दे ना?मैं:-नीचे कहाँ चाची?चाची:-तू सब जानता है फिर क्यूँ पूछ रहा है?मैं:-बोलो ना चाची!आपके मुँह से सुनना चाहता हूँ।चाची:-अच्छा,चल मेरी चूत में खुजली हो रही है...मिटा दे ना...मैं:-चाची कैसे मिटा दूं? ऊँगली से या चाट के? या फिर लंड ही डाल दूं?चाची:-मुझे तो तीनों की खुजली हो रही है...मैं:-क्यूँ चाची,चाचा आजकल खुजली नहीं मिटा रहे हैं क्या?चाची:-नहीं रे!वो आजकल काफी रूखे से रहते हैं, मेरी चूत का तो ख्याल नहीं है उनको...मैं:-चाची, आपका बेटा आपकी चूत का ख्याल रखेगा...चाची:-अपनी अनीता चाची से भी ज्यादा ख्याल रखेगा ना...दीदी तो तेरे लंड की बहुत तारीफ करती हैं...मैं:-आप लोग ये सब बातें भी करती हो?मेरी चाचियाँ कितनी अच्छी हैं!चाची:-तुझे कौन ज्यादा अच्छी लगती हैं?मैं:-चाची अभी आपने अपना पूरा जलवा दिखाया कहाँ है?चाची:-अच्छा तो ये बात है,तो जितना जलवा देख चुके हो उसमे कौन ज्यादा अच्छा लगा?मैं:-चाची इसमें तो पूछने की कोई बात ही नहीं है...अनीता चाची की चूची में अमृत तो है ही नहीं!दूध तो आप ही पिला सकती हो...तब इसमें आप ही न हुई रानी...चाची अब आप आपने कुछ और जलवे भी दिखाओ ना!चाची:-हाँ बेटे तेरी चाची आज ऐसे जलवे दिखायेगी कि तू पागल हो जायेगा...और फिर चाची ने आपने कपड़े खोलने शुरु किये...चाची जब पैंटी और ब्रा में आ गई तो मैं उनकी मदद करने लगा...मैं:-चाची,लाओ अब मैं खोल दूं!आप क्यूँ कर रही हो?चाची: हाँ बेटा!आओ अपनी चाची को नंगी कर दो...फिर चाची मेरे पास आ गई...मैं चाची की ब्रा को खोल के प्यार से सूंघने लगा...चाची की मादक मुस्कराहट ने और भी मज़ा भर दिया...फिर चाची की पैंटी को एक ही झटके में खोल दिया...पैंटी की मादक सुगंध मुझे दीवाना कर रही थी।चाची:-क्यूँ रे काफी मज़े ले रहे हो...कैसी लगी तुम्हे मेरी पैंटी की खुशबू...मैं:-चाची मैं तो अपने होश मैं ही नहीं हूँ...चाची:-अरे कपड़े से तेरा ये हाल है तो फिर जब सही में मेरी चूत सूंघेगा तो तेरा क्या होगा...फिर चाची अपने हाथ मेरी पैंट के उपर से लंड को सहलाने लगी...मेरी हालत भी ख़राब हो रही थी...मुझे डर भी लग रहा था कि कहीं मैं झड़ ना जाऊँ...चाची ने देखते ही देखते मुझे पूरा नंगा कर दिया...अब कमरे में दो नंगे एक दूसरे से खेलने लगे...चाची मेरे लंड से ऐसे खेल रही थी कि कोई बच्चा अपने सबसे मनपसंद खिलौने के साथ खेलता है...चाची:-बेटा तेरा लंड तो तेरे चाचाजी से काफी बड़ा है रे...तेरी पत्नी काफी खुश रहेगी...मैं:-चाची मेरे लंड से ऐसे खेलोगी तो ये जल्दी ही ढीला हो जायेगा...चाची:-क्या करूँ बेटा ऐसे लंड मेरे हाथ में पहली बार आया है...मैं:-चाची आपको पता है बड़ी चाची तो इसे आइसक्रीम से भी अच्छा प्यार करती हैं...चाची:-वाह रे बदमाश!अपनी चाची को लंड मुँह में लेने बोल रहा है...ये गरम आइसक्रीम सच में तो मुँह में लेने के लिए ही है...मैं:-चाची तो ले लो ना इसे...फिर चाची प्यार से मेरे लंड को चूसने लगी...इतना तो पता चल ही गया था कि चाची को लंड चूसने में बहुत मज़ा आता है...अनीता चाची ने इतने प्यार से कभी नहीं चूसा था... फिर जब चाची मेरे लंड से खेल रही थी...मैं चाची की चूची को मज़े देने लगा...इतनी मुलायम चूचियां को सहलाना, निचे लंड का चाची से चुसवाना...सच्ची काफ़ी बढ़िया कॉम्बिनेशन है...मैं:-चाची लंड चूसवाने में इतना मज़ा आज तक नहीं आया...चाची मेरा मुँह भी रसपान के लिए तड़प रहा है,चाची उल्टा-पुल्टा करें...चाची:-उल्टा पुल्टा ये क्या होता है रे?मैं:-क्या चाची आप मुझसे पूछोगी तो कैसे चलेगा...अच्छा चलिए मैं बताता हूँ-उल्टा पुल्टा मतलब आप मेरे ऊपर रह कर मेरा लण्ड चूसना और मैं नीचे से आपकी चूत का रसपान करूँगा!चाची:- अच्छा तो तू 61 पोज़िशन की बात कर रहा है...अच्छा नाम है उल्टा पुल्टा...चल इसमें तो और भी मज़ा आएगा...फिर हम 61 में एक दूसरे से मज़े लेने लगे...चाची की चूत का स्वाद आते ही मन चंगा तो आया था...चाची की चूत काफी गीली हो गई थी...इसलिए चाटने में बहुत मज़ा आ रहा था...मैं चाची को बहुत मन से चाट रहा था...चाची भी काफी उत्तेजित हो गई थी...चाची ने अचानक इतना पानी निकाला कि मेरा मुँह उनके रस से भर गया था।...ऐसा मज़ा हेमा चाची ने दिया कि बस मैं तो उनका दीवाना हो गया था...मैं:-चाची आपके रस कितने स्वादिस्ट हैं...चाची अब मेरा रस भी निकाल दो...चाची अब मेरी लंड आपकी चूत के लिए और नहीं तड़प सकता...चाची:-आ न बेटा, तूने तो आज अपनी चाची को एक दम रंडी बना दिया...अब ऐसा चोद कि बस मैं पानी-पानी हो जाऊँ...फिर चाची बिस्तर पे लेट गई...अपनी चूत एकदम फाड़ के मुझे अपने तरफ बुलाने लगी...चूत तो जैसे कि लंड के लिए बनी हो...मैंने भी अपना लंड हाथ में लेकर चाची की चूत पर लगा दिया...चाची:-दे धक्का मेरे लाल...चोद अपनी चाची को...चोद बेटा...मैं:-ले चाची..ये गया मेरा लंड आपकी चूत में..चुद अपने बेटे से मेरी प्यारी चाची..फिर चाची गाण्ड उठा-उठा कर मेरा लंड लेने लगी..मैं भी चाची को जी जान लगा के चोदने लगा...फिर चाची ने कुतिया बन के मुझे कुत्ता बना दिया..उस पोजिशन में बहुत मज़ा आया.. फिर चाची मेरे ऊपर सवार हो गई..इसमें तो मेरा लंड सबसे ज्यादा अंदर तक जा रहा था..करीब 30 मिनट के बाद मैं चाची की चूत में ही झड़ गया..चाची ने बड़े प्यार से फिर मेरे लंड को साफ़ किया..मुझे बेतहाशा किस कर रही थी..चाची बहुत खुश थी..मैं भी चाची की खुशी से खुश था..चाची:-बेटा, चाची को चोदने में कैसा लगा..अनीता चाची को चोदने में ज्यादा मज़ा आया था क्या?मैं:-नहीं चाची आप माल हो..आपको चोदने में बहुत मज़ा आया..मैं अब आप को ही चोदूंगा..चाची:-अरे नहीं बेटा!दोनों चाचियों को चोदना..अनीता दीदी भी बहुत अच्छी है उन्होंने ही तो मुझे तेरा लंड दिलाया..तू उन्हें कभी नाराज़ न करना..फिर मैं दोनों चाचियों के साथ मस्ती कर करने लगा..दोनों प्यार से मुझसे चुदती है..

मंगलवार, 21 अगस्त 2012

रेल यात्रा


रेलवे स्टेशन पर भारी भीड़ थी; आने वालों की भी और जाने वालों की भी. तभी स्टेशन पर घोषणा हुई," कृपया ध्यान दें, दिल्ली से मुंबई को जाने वाली न्यू गंगा एक्सप्रेस 24 घंटे लेट है" सुनते ही आशीष का चेहरा फीका पढ़ गया...कहीं घर वाले ढूँढ़ते रेलवे स्टेशन तक आ गए तो... मुंबई के लिए उसने 3 दिन पहले ही आरक्षण करा लिया था...पर घोषणा सुनकर तो उसके सारे प्लान का कबाड़ा हो गया...हताशा में उसने चलने को तैयार खढी एक पस्सेंजेर ट्रेन की सीटी सुनाई दी...हडबडाहट में वह उसकी और भागा...अन्दर घुसने के लिए आशीष को काफी मशक्कत करनी पड़ी...अन्दर पैर रखने की जगह भी मुश्किल से थी...सभी खड़े थे...क्या पुरुष और क्या औरत...सभी का बुरा हाल था और जो बैठे थे; वो बैठे नहीं थे...लेटे थे...पूरी सीट पर कब्ज़ा किये...आशीष ने बाहर झाँका; उसको डर था...घरवाले आकर उसको पकड़ न लें; वापस न ले जाएं उसका सपना न तोड़ दें...हीरो बनने का! हीरो बनने के लिए आशीष घर से भाग कर आया था...शकल सूरत से हीरो ही लगता था कद में अमिताभ जैसा; स्मार्टनेस में अपने सल्मान जैसा...बॉडी में गजनी वाला आमिर खान लगता था और एक्टिंग में शाहरुख़ खान...वो इन सबका दीवाना था...इसके साथ ही हेरोइंस का भी...उसने सुना था...एक बार कामयाब हो जाओ फिर सारी जवान हसीन माडल्स, हीरो और निर्देशक के नीचे ही रहती हैं...बस यही मकसद था उसका हीरो बनने का ...रेल गाढ़ी के चलने पर उसने रहत की सांस ली...हीरोगिरी के सपनों में खोये हुए आशीष को अचानक पीछे से किसी ने धक्का मारा...वो चौंक कर पीछे पलटा..."देखकर नहीं खड़े हो सकते क्या भैया...बुकिंग करा रखी है क्या?"आशीष देखता ही रह गया...गाँव की लगने वाली एक अल्हड़ जवान युवती उसको झाड पिला रही थी...उम्र करीब 22 साल होगी...चोली और घाघरे में ब्याहता लगती थी...छोटे कद की होने की वजह से आशीष को उसकी श्यामल रंग की चूचियां काफी अन्दर तक दिखाई दे रही थी...चूचियों का आकार ज्यादा बड़ा नहीं था, पर जितना था मनमोहक था...आशीष उसकी बातों पर कम उसकी छलकती हुई मस्तियों पर ज्यादा ध्यान दे रहा था...उस अबला की पुकार सुनकर भीड़ से करीब 45 साल के एक आदमी ने सर निकल कर कहा,"कौन है बे?" पर जब आशीष के डील डौल को देखा तो उसका सुर बदल गया,"भाई कोई मर्ज़ी से थोड़े ही किसी के ऊपर चढ़ना चाहता है..." उसकी बात पर सब ठाहाका लगाकर हंस पडे...तभी भीड़ से एक बूढ़े की आवाज आई," कृष्णा! ठीक हो बेटी "पल्ले से सर ढकते उस 'कृष्णा ' ने जवाब दिया," कहाँ ठीक हूँ बापू!" और फिर से बद्बदाने लगी," अपने पैर पर खड़े नहीं हो सकते क्या?"आशीष ने उसके चेहरे को देखा...रंग गोरा नहीं था पर चेहरे के नयन-नक्श तो कई हीरोइनों को भी मात देते थे...गोल चेहरा, पतली छोटी नाक और कमल की पंखुड़ियों जैसे होंट...आशीष बार-बार कन्खियों से उसको देखता रहा...तभी कृष्णा ने आवाज लगायी,"रानी ठीक है क्या बापू? वहां जगह न हो तो यहाँ भेज दो...यहाँ थोड़ी-सी जगह बन गयी है..."और रानी वहीं आ गयी...कृष्णा ने अपने और आशीष के बीच रानी को फंसा दिया...रानी के गोल मोटे चूतड आशीष की जांघों से सटे हुए थे...ये तो कृष्णा ने सोने पर सुहागा कर दिया...अब आशीष कृष्णा को छोड़ रानी को देखने लगा...उसके लट्टू भी बढे-बढे थे...उसने एक मैली सी सलवार-कमीज डाल राखी थी...उसका कद भी करीब 5' 2" होगा... कृष्णा से करीब 2" लम्बी! उसका चहरा भी उतना ही सुन्दर था और थोड़ी सी लाली भी झलक रही थी...उसके जिस्म की नक्काशी मस्त थी...कुल मिला कर आशीष को टाइम पास का मस्त साधन मिल गया था...रानी कुंवारी लगती थी...उम्र से भी और जिस्म से भी...उसकी छातियाँ भारी-भारी और कसी हुई गोलाई लिए हुए थी...नितम्बों पर कुदरत ने कुछ ज्यादा ही इनायत बक्षी थी...आशीष रह-रह कर अनजान बनते हुए उसकी गांड से अपनी जांघें घिसाने लगा...पर शायद उसको अहसास ही नहीं हो रहा था...या फिर क्या पता उसको भी मजा आ रहा हो!अगले स्टेशन पर डिब्बे में और जनता घुश आई और लाख कोशिश करने पर भी कृष्णा अपने चारों और लफ़ंगे लोगों को सटकर खड़ा होने से न रोक सकी...उसका दम घुटने सा लगा...एक आदमी ने शायद उसकी गांड में कुछ चुभा दिया...वह उछल पड़ी...क्या कर रहे हो?दिखता नहीं क्या?""ऐ मैडम; ज्यास्ती बकवास नहीं मारने का;ठंडी हवा का इतना इच शौक पल रैल्ली है...तो अपनी गाड़ी में बैठ के जाने को मांगता था..."आदमी बिघढ़ कर बोला और ऐसे ही खड़ा रहा...कृष्णा एकदम दुबक सी गयी...वो तो बस आशीष जैसों पर ही डाट मार सकती थी...कृष्णा को मुश्टंडे लोगों की भीड़ में आशीष ही थोडा शरीफ लगा...वो रानी समेत आशीष के साथ चिपक कर कड़ी हो गई, जैसे कहना चाहती हो,"तुम ही सही हो, इनसे तो भगवन बचाए!"आशीष भी जैसे उनके चिपकने का मतलब समझ गया;उसने पलट कर अपना मुंह उनकी और कर लिया और अपनी लम्बी मजबूत बाजू उनके चारों और बैरियर की तरह लगा दी...कृष्णा ने आशीष को देखा;आशीष थोड़ी हिचक के साथ बोला,"जी उधर से दबाव पड़ रहा है...आपको परेशानी ना हो इसीलिए अपने हाथ सीट से लगा लिए..."कृष्णा जैसे उसका मतलब समझी ही ना हो...उसने आशीष के बोलना बंद करते ही अपनी नजरें हटा ली...अब आशीष उसकी चुचियों को अन्दर तक और रानी की चूचियों को बहार से देखने का आनंद ले रहा था...कृष्णा ने उनको अब आशीष की नजरों से बचने की कोशिश भी नहीं की..."कहाँ जा रहे हो?..."कृष्णा ने लोगों से बचने के लिए धन्यवाद् देने की खातिर पूछ लिया..."मुंबई"आशीष उसकी बदली आवाज पर काफी हैरान ठा..."और तुम?""भैया जा तो हम भी मुंबई ही रहे हैं...पर लगता नहीं की मुंबई तक पहुँच पायेंगे...!"कृष्णा अब मीठी आवाज में बात कर रही थी..."क्यूँ ?"आशीष ने बात बाधा दी!"अब इतनी भीड़ में क्या भरोसा!"मैंने कहा है बापू को जयपुर से तत्काल करा लो; पर वो माने तब न!""भाभी!बापू को ऐसे क्यूँ बोलती हो?"रानी की आवाज उसके चिकने गलों जैसी ही मीठी थी..आशीष ने एक बार फिर कृष्णा की चूचियों को अन्दर तक देखा... उसके लड में तनाव आने लगा...और शायद वो तनाव रानी अपनी गांड की दरार में महसूस करने लगी...रानी बार-बार अपनी गांड को लंड की सीधी टक्कर से बचने के लिए इधर-उधर मटकाने लगी...उसका ऐसा करना उसकी ही गोल मटोल गांड के लिए नुक्सान देह साबित होने लगा...लंड गांड से सहलाया जाता हुआ और अधिक सख्त होने लगा...और अधिक खड़ा होने लगा...पर रानी के पास ज्यादा विकल्प नहीं थे...वो दाई गोलाई को बचाती तो लड बायीं पर ठोकर मारता...और अगर बायीं को बचाती तो दाई पर उसको लंड चुभता हुआ महसूस होता...उसको एक ही तरीका अच्छा लगा...वो सीधी खड़ी हो गयी...पर इससे उसकी मुसीबत और भयंकर हो गयी...बिलकुल खड़ा होकर लंड उसकी गांड की दरारों के बीचों बीच फंस गया...वो शर्मा कर इधर-उधर देखने लगी...पर कुछ नहीं बोली...आशीष ने मन ही मन एक योजना बना ली...अब वो इनके साथ ज्यादा से ज्यादा रहना चाहता था..."मैं आपके बापू से बात करू;मेरे पास आरक्षण के चार टिकट हैं...मेरे और दोस्त भी आने वाले थे पर वो आ नहीं पाए!मैं भी जयपुर से उसी में जाऊँगा कल रात को करीब 10 बजे वो जयपुर पहुंचेगी...तुम चाहो तो आगे का मुझे साधारण किराया दे देना!"आशीष को डर था कि किराया न मांगने पर कहीं वो और कुछ न समझ बैठे...लम्बा हो होकर!...उसका लंड रानी कि गांड में घुसपैठ करता ही जा रहा था..."बापू!"जरा इधर कू आना!कृष्णा ने जैसे गुस्से में आवाज लगायी..."अरे मुश्किल से तो यहाँ दोनों पैर टिकाये हैं!अब इस जगह को भी खो दूं क्या?"बुद्धे ने सर निकाल कर कहा...रानी ने हाथ से पकड़ कर अन्दर फंसे लंड को बहार निकलने की कोशिश की पर उसके मुलायम हाथों के स्पर्श से ही लंड फुफकारा...कसमसा कर रानी ने अपना हाथ वापस खींच लिया...अब उसकी हालत खराब होने लगी थी...आशीष को लग रहा था जैसे रानी लंड पर टंगी हुयी है...उसने अपनी एडियों को ऊँचा उठा लिया ताकि उसके कहर से बच सके पर लंड को तो ऊपर ही उठाना था...आशीष की तबियत खुश हो गयी...!रानी आगे होने की भी कोशिश कर रही थी पर आगे तो दोनों की चूचियां पहले ही एक दुसरे से टकरा कर मसली जा रही थी...बेचारी रानी एड़ियों पर कब तक खड़ी रहती;वो जैसे ही नीचे हुयी, लंड और आगे बढ़कर उसकी चूत की चुम्मी लेने लगा...रानी की सिसकी निकाल गयी...,"आःह्ह!""क्या हुआ रानी?"कृष्णा ने उसको देखकर पूछा..."कुछ नहीं भाभी!"तुम बापू से कहो न भैया से आरक्षण वाला टिकट लेने के लिए!"आशीष को भैया कहना अच्छा नहीं लगा... आखिर भैया ऐसे गांड में लंड थोडा ही फंसाते हैं...धीरे-धीरे रानी का बदन भी बहकने सा लगा...आशीष का लंड अब ठीक उसकी चूत के दाने पर टिका हुआ था..."बापू"कृष्णा चिल्लाई..."बापू" ने अपना मुंह इस तरफ निकला, इस तरह खड़े होने के लिए आशीष को घूरा, और फिर भीड देखकर समझ गया की आशीष तो उनको उल्टा बचा ही रहा है," क्या है बेटी?"कृष्णा ने घूंघट निकल लिया था,"इनके पास जयपुर से आगे के लिए आरक्षण की टिकट हैं;इनके काम की नहीं हैं...कह रहे हैं सामान्य किराया लेकर दे देंगे!"उसके बापू ने आशीष को ऊपर से नीचे तक देखा;संतुस्ट होकर बोला,"हम गरीबों पर ये बड़ा उपकार होगा...किराया सामान्य का ही लोगे न!"आशीष ने खुश होकर कहा," ताऊजी मेरे किस काम की हैं...मुझे तो जो मिल जायेगा...फायदे का ही होगा..."कहते हुए वो दुआ कर रहा था की ताऊ को पता न हो की टिकट वापस भी हो जाती हैं..."ठीक है भैया...जयपुर उतर जायेंगे...बड़ी मेहरबानी!"कहकर भीड़ में उसका मुंह गायब हो गया...आशीष का ध्यान रानी पर गया वो धीरे-धीरे आगे पीछे हो रही थी...उसको मजा आ रहा था...कुछ देर ऐसे ही होते रहने के बाद उसकी आँखें बंद हो गयी...और उसने कृष्णा को जोर से पकड़ लिया..."क्या हुआ रानी?"...सँभलते हुए वह बोली..."कुछ नहीं भाभी चक्कर सा आ गया था...अब तक आशीष समझ चूका था कि रानी चुदाई के मुफ्त में ही मजे ले गयी...उसका तो अब भी ऐसे ही खड़ा था...एक बार आशीष के मन में आई कि टोइलेट में जाकर मुठ मार आये...पर उसके बाद ये ख़ास जगह खोने का डर था... अचानक किसी ने लाइट के आगे कुछ लटका दिया जिससे आसपास अँधेरा सा हो गया...रानी कि गांड में लंड वैसे ही अकड़ा खड़ा था;जैसे कह रहा हो...अन्दर घुसे बिना नहीं मानूंगा मेरी रानी!लंड के धक्को और अपनी चूचियों के कृष्णा भाभी की चूचियों से रगड़ खाते-खाते वो जल्दी ही फिर लाल हो गयी...इस बार आशीष से रहा नही गया...कुछ तो रौशनी कम होने का फायदा...कुछ ये विश्वास की रानी मजे ले रही है... उसने थोडा सा पीछे हटकर अपने पेन्ट की जिप खोल कर रानी की गांड की घटी में खुला चरने के लिए अपने घोड़े को खुला छोड़ दिया...रानी को इस बार ज्यादा गर्मी का अहसास हुआ...उसने अपने नीचे हाथ लगा कर देखा की नीचे से कहीं गीली तो नहीं हो गयी;और जब मोटे लंड की मुंड पर हाथ लगा तो वो उचक गयी...अपना हाथ हटा लिया...और एक बार पीछे देखा...आशीष ने महसूस किया,उसकी आँखों में गुस्सा नहीं था...भाभी का और दूसरी सवारियों के देख लेने का थोडा डर जरुर था...थोड़ी देर बाद उसने धीरे-2 करके अपना कमीज पीछे से निकल दिया...अब लंड और चूत के बीच में दो दीवारें थी...एक तो उसकी सलवार और दूसरा उसकी कच्छी...आशीष ने हिम्मत करके उसकी गांड में अपनी उंगली डाल दी और उसमें से रास्ता बनाने के लिए धीरे-धीरे सलवार को कुरेदने लगा...योजना रानी को भा गयी...उसने खुद ही सूट ठीक करने के बहाने अपनी सलवार में हाथ डालकर नीचे से थोड़ी सी सिलाई उधेड़ दी...लेकिन आशीष को ये बात तब पता चली...जब कुरेदते-कुरेदते एकदम से उसकी अंगुली सलवार के अन्दर दाखिल हो गयी...ज्यों-ज्यों रात गहराती जा रही थी...यात्री खड़े-खड़े ही ऊँघने से लगे थे...आशीष ने देखा...कृष्णा भी खड़ी-खड़ी झटके खा रही है... आशीष ने भी किसी सज्जन पुरुष की तरह उसकी गर्दन के साथ अपना हाथ सटा दिया...कृष्णा देवी ने एक बार आशीष को देखा फिर आँखें बंद कर ली...आशीष अब खुल कर खतरा उठा सकता था...उसने अपने लंड को उसकी गांड की दरार से निकाल कर सीध में दबा दिया और रानी के बनाये रस्ते में से उंगली घुसा दी...अंगुली अन्दर जाकर उसकी कच्छी से जा टकराई!आशीष को अब रानी का डर नहीं था...उसने एक तरीका निकला...रानी की सलवार को ठोडा ऊपर उठाया...उसको कच्ची समेत सलवार पकड़ कर नीचे खीच दी...कच्छी थोड़ी नीचे आ गयी और सलवार अपनी जगह पर...ऐसा करते हुए आशीष खुद के दिमाग की दाद दे रहा था...हींग लगे न फिटकरी और रंग चौखा...रानी ने कुछ देर ये तरीका समझा और फिर आगे का काम खुद संभल लिया...जल्द ही उसकी कछी उसकी जांघो से नीचे आ गयी...अब तो बस हमला करने की देर थी...आशीष ने उसकी गुदाज जांघो को सलवार के ऊपर से सहलाया; बड़ी मस्त और चिकनी थी...उसने अपने लंड को रानी की साइड से बहार निकल कर उसके हाथ में पकड़ा दिया...रानी उसको सहलाने लगी...आशीष ने अपनी उंगली इतनी मेहनत से बनाये रास्तों से गुजार कर उसकी चूत के मुंहाने तक पहुंचा दी...रानी सिसक पड़ी... अब उसका हाथ आशीष के मोटे लंड पर जरा तेज़ी से चलने लगा... उत्तेजित होकर उसने रानी को आगे से पीछे दबाया और अपनी अंगुली गीली हो चुकी छूट के अन्दर घुसा दी...रानी चिल्लाते-चिल्लाते रुक गयी...आशीष निहाल हो गया...उसने धीरे-धीरे जितनी खड़े-खड़े जा सकती थी उतनी उंगली घुसाकर अन्दर बहार करनी शुरू कर दी...रानी के हाठों की जकदन बढ़ते ही आशीष समझ गया की उसकी अब बस छोड़ने ही वाली है...उसने लंड अपने हाथ में पकड़ लिया और जोर-जोर से हिलाने लगा...रानी ने अपना दबाव पीछे की और बड़ा दिया ताकि भाभी पर उनके झटकों का असर कम से कम हो...और अनजाने में ही वह एक अनजान लड़के की उंगली से चुदवा बैठी...पर यात्रा अभी बहुत बाकी थी...उसने पहली बार आशीष की तरफ देखा और मुस्कुरा दी! अचानक आशीष को धक्का लगा और वो हडबडा कर परे हट गया... आशीष ने देखा उसकी जगह करीब 45-46 साल के एक काले कलूटे आदमी ने ले ली...आशीष उसको उठाकर फैंकने ही वाला था की उस आदमी ने धीरे से रानी के कान में बोला,"चुप कर के खड़ी रहना साली... मैंने तुझे इस लम्बू से मजे लेते देखा है...ज्यादा हिली तो सबको बता दूंगा...सारा डिब्बा तेरी गांड फाड़ डालेगा कमसिन जवानी में...!"वो डर गयी उसने आशीष की और देखा...आशीष पंगा नहीं लेना चाहता था;और दूर हटकर खड़ा हो गया...उस आदमी का जायजा अलग था...उसने आगे हिम्मत दिखाते हुए रानी की कमीज में हाथ दाल दिया...रानी पूरा जोर लगा कर पीछे हट गयी; कहीं भाभी न जाग जाये...उसकी गांड उस कालू के खड़े होते हुए लंड को और ज्यादा महसूस करने लगी...रानी का बुरा हाल था...कालू उसकी चूचियां को बुरी तरह उमेठ रहा था...उसने निप्पलों पर नाखोन गड़ा दिए...रानी विरोध नहीं कर सकती थी... एकाएक उस काले ने हाथ नीचे ले जाकर उसकी सलवार में डाल दिया... ज्यों ही उसका हाथ रानी की चूत के मुहाने पर पहुंचा...रानी सिसक पड़ी...उसने अपना मुंह फेरे खड़े आशीष को देखा...रानी को मजा तो बहुत आ रहा था पर आशीष जैसे सुन्दर छोकरे के हाथ लगने के बाद उस कबाड़ की छेड़-छाड़ बुरी लग रही थी...अचानक कालू ने रानी को पीछे खींच लिया...उसकी चूत पर दबाव बनाकर...कालू का लंड उसकी सलवार के ऊपर से ही रानी की चूत पर टक्कर मरने लगा...रानी गरम होती जा रही थी...अब तो कालू ने हद कर दी...रानी की सलवार को ऊपर उठाकर उसके फटे हुए छेद को तलाशा और उसमें अपना लंड घुसा कर रानी की चूत तक पहुंचा दिया...रानी ने कालू को कसकर पकड़ लिया...अब उसको सब कुछ अच्छा लगने लगा था...आगे से अपने हाथ से उसने रानी की कमसिन चूत की फानको को खोला और अच्छी तरह अपना लंड सेट कर दिया...लगता था जैसे सभी लोग उन्ही को देख रहे हैं...रानी की आँखें शर्म से झुक गयी पर वो कुछ न बोल पाई...कहते हैं जबरदस्ती में रोमांस ज्यादा होता है...इसको रानी का सौभाग्य कहें या कालू का दुर्भाग्य...गोला अन्दर फैकने से पहले ही फट गया...कालू का सारा माल रानी की सलवार और उसकी चिकनी मोटी जाँघों पर ही निकल गया...! कालू जल्द ही भीड़ में गुम हो गया...रानी का बुरा हाल था...उसको अपनी चूत में लंड का खालीपन लगा...ऊपर से वो कालू के रस में सारी चिपचिपी सी हो गयी...गनीमत हुयी की जयपुर स्टेशन आ गया...वरना कई और भेढ़िये इंतज़ार में खड़े थे...अपनी-अपनी बारी के...जयपुर रेलवे स्टेशन पर वो सब ट्रेन से उतर गए...रानी का बुरा हाल था...वो जानबुझकर पीछे रह रही थी ताकि किसी को उसकी सलवार पर गिरे सफ़ेद धब्बे न दिखाई दे जाये...आशीष बोला,"ताऊजी, कुछ खा पी लें!बहार चलकर..."ताऊ पता नहीं किस किस्म का आदमी था,"बोला भाई जाकर तुम खा आओ! हम तो अपना लेकर आये हैं...कृष्णा ने उसको दुत्कारा"आप भी न बापू!जब हम खायेंगे तो ये नहीं खा सकता... हमारे साथ..."ताऊ-बेटी मैंने तो इसलिए कह दिया था कहीं इसको हमारा खाना अच्छा न लगे...शहर का लौंडा है न...हे राम!पैर दुखने लगे हैं..."आशीष-इसीलिए तो कहता हूँ ताऊजी...किसी होटल में चलते हैं... खा भी लेंगे...सुस्ता भी लेंगे...ताऊ-बेटा,कहता तो तू ठीक ही है...पर उसके लिए पैसे...आशीष-पैसों की चिंता मत करो ताऊजी...मेरे पास हैं...आशीष के ATM में लाखों रुपैये ठे...ताऊ-फिर तो चलो बेटा, होटल का ही खाते हैं...होटल में बैठते ही तीनो के होश उड़ गए...देखा रानी साथ नहीं थी...ताऊ और कृष्णा का चेहरा तो सफ़ेद जैसा हो गया... आशीष ने उनको तसल्ली देते हुए कहा"ताऊजी, मैं देखकर आता हूँ... आप तब तक यहीं बैठकर खाना खाईये...कृष्णा-मैं भी चलती हूँ साथ! ताऊ-नहीं! कृष्णा मैं अकेला यहाँ कैसे रहूँगा...तुम यहीं बैठी रहो...जा बेटा जल्दी जा...और उसी रस्ते से देखते जाना, जिससे वो आए थे...मेरे तो पैरों में जान नही है...नहीं तो मैं ही चला जाता...आशीष उसको ढूँढने निकल गया...आशीष के मन में कई तरह की बातें आ रही थी..."कही पीछे से उसको किसी ने अगवा न कर लिया हो!कही वो कालू..."वह स्टेशन के अन्दर घुसा ही था की पीछे से आवाज आई"भैया!"आशीष को आवाज सुनी हुयी लगी तो पलटकर देखा...रानी स्टेशन के परवेश द्वार पर सहमी हुयी सी खड़ी थी...आशीष जैसे भाग कर गया..."पागल हो क्या? यहाँ क्या कर रही हो?...चलो जल्दी..."रानी को अब शांति सी थी ..."मैं क्या करती भैया...तुम्ही गायब हो गए अचानक!""ए सुन! ये मुझे भैया-भैया मत बोल""क्यूँ?""क्यूँ! क्यूंकि ट्रेन में मैंने".....और ट्रेन का वाक्य याद आते ही आशीष के दिमाग में एक प्लान कौंध गया!"मेरा नाम आशीष है समझी! और मुझे तू नाम से ही बुलाएगी...चल जल्दी चल!"आशीष कहकर आगे बढ़ गया और रानी उसके पीछे-पीछे चलती रही...आशीष उसको शहर की और न ले जाकर स्टेशन से बहार निकलते ही रेल की पटरी के साथ-साथ एक सड़क पर चलने लगा...आगे अँधेरा था...वहां काम बन सकता था!"यहाँ कहाँ ले जा रहे हो, आशीष!"रानी अँधेरा सा देखकर चिंतित सी हो गयी..."तू चुप चाप मेरे पीछे आ जा... नहीं तो कोई उस कालू जैसा तुम्हारी...जान गयी न...आशीष ने उसको ट्रेन की बातें याद दिला कर गरम करने की कोशिश की..."तुमने मुझे बचाया क्यूँ नहीं...इतने तगड़े होकर भी डर गए"रानी ने शिकायती लहजे में कहा..."अच्छा!याद नहीं वो साला क्या बोल रहा था...सबको बता देता..."रानी चुप हो गयी..."आशीष बोला,"और तुम खो कैसे गयी थी... साथ-साथ नहीं चल सकती थी...?"रानी को अपनी सलवार याद आ गयी..."वो मैं...!"कहते-कहते चुप हो गयी..."क्या?" आशीष ने बात पूरी करने को कहा..."उसने मेरी सलवार गन्दी कर दी...मैं झुक कर उसको साफ़ करने लगी...उठकर देखा तो...."आशीष ने उसकी सलवार को देखने की कोशिश की पर अँधेरा इतना गहरा था की सफ़ेद सी सलवार भी उसको दिखाई न दी...आशीष ने देखा...साइड वाले अतिरिक्त पटरी पर एक खली डिब्बा है...आशीष काँटों से होता हुआ उस रेलगाड़ी के डिब्बे की और जाने लगा..."ये तुम जा कहाँ रहे हो?,आशीष!""आना है तो आ जाओ...वरना भाड़ में जाओ...ज्यादा सवाल मत करो!"वो चुपचाप चलती गयी...उसके पास कोई विकल्प ही नहीं था...आशीष इधर-उधर देखकर डिब्बे में चढ़ गया...रानी न चढ़ी...वो खतरे को भांप चुकी थी," प्लीस मुझे मेरे बापू के पास ले चलो..."वो डरकर रोने लगी...उसकी सुबकियाँ अँधेरे में साफ़-साफ़ सुनाई पद रही थी..."देखो रानी! दरो मत, मैं वही करूँगा बस जो मैंने ट्रेन में किया था...फिर तुम्हे बापू के पास ले जाऊँगा!अगर तुम नहीं करोगी तो मैं यहीं से भाग जाऊँगा...फिर कोई तुम्हे उठाकर ले जाएगा और चोद चाद कर रंडी मार्केट में बेच देगा... फिर चुद्वाती रहना साडी उम्र..."आशीष ने उसको डराने की कोशिश की और उसकी तरकीब काम कर गयी...रानी को सारी उम्र चुदवाने से एक बार की छेड़छाड़ करवाने में ज्यादा फायदा नजर आया...वो डिब्बे में चढ़ गयी...डिब्बे में चढ़ते ही आशीष ने उसको लपक लिया...वह पागलों की तरह उसके मैले कपड़ों के ऊपर से ही उसको चूमने लगा...रानी को अछा नहीं लग रहा था...वो तो बस अपने बापू के पास जाना चाहती थी..."अब जल्दी कर लो न...ये क्या कर रहे हो?"आशीष भी देरी के मूड में नहीं था...उसने रानी के कमीज को उठाया और उसी छेद से अपनी ऊँगली रानी के पिछवाड़े से उसकी चूत में डालने की कोशिश करने लगा...जल्द ही उसको अपनी बेवकूफी का अहसास हुआ...वासना में अँधा वह ये तो भूल ही गया था की अब तो वो दोनों अकेले हैं...उसने रानी की सलवार का नाडा खोलने की कोशिश की...रानी सहम सी गयी..."छेद से ही डाल लो न...!""ज्यादा मत बोल...अब तुने अगर किसी भी बात को "न " कहा तो मैं यहीं छोड़ कर तभी भाग जाऊँगा...समझी!" आशीष की धमकी काम कर गयी...अब वो बिलकुल चुप हो गयी...आशीष ने सलवार के साथ ही उसके कालू के रस में भीगी कच्छी को उतार कर फैंक दिया कच्छी डिब्बे से नीचे गिर गयी...रानी नीचे से बिलकुल नंगी हो चुकी थी...आशीष ने उसको हाथ ऊपर करने को कहा और उसका कमीज और ब्रा भी उतार दी...रानी रोने लगी..."चुप करती है या जाऊ मैं!"