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रविवार, 26 अगस्त 2012

ज़हाज में दीदी -02

फिर मैं उनके बूब्स को दोनों हाथों से ज़ोर-ज़ोर से दबाने लगा मेरे इस तरह करने से वो और ज़्यादा तड़पने लगी। तब मैंने उनकी चूत को देखा, उसकी चूत पर बाल नहीं थे और उनकी चूत बहुत मस्त लग रही थी। उनकी चूत को देख कर मेरे मुंह में पानी आ गया और मैं उनकी चूत को चाटने लगा। दीदी ज़ोर-ज़ोर से चीखने लगी-आ आ आ आ ओ ऊ ऊ ओ ओ करने लगी...थोड़ी देर तक उनकी चूत चाटने के बाद मैंने देखा कि वो बहुत गरम हो चुकी थी लेकिन मैं उसको और गरम करना चाहता था इसलिए अब मैं अपने लण्ड को उनके पूरे बदन पर घुमाने लगा, पहले उनके चेहरे पर अपने लण्ड को लगाया फिर उनकी गर्दन पर, फिर उनके बूब्स पर, उनके निप्पल पर, उनके बूब्स के बीच में अच्छी तरह मैं अपने लण्ड को लगा रहा था। मेरे लण्ड से जो पानी निकल रहा था वो भी उनके पूरे बदन पर लग रहा था जिससे वो और ज़्यादा गरम हो रही थी। मैंने अपने लण्ड को उनके बूब्स के बीच में अच्छी तरह दबा दिया वो भी मेरे लण्ड को अपने बूब्स में रख कर ज़ोर-ज़ोर से दबाने लगी। 8 इंच लंबा और 3 इंच मोटा लण्ड देखते ही उनके होश उड़ गए और वो कहने लगी कि नहीं संजू प्लीज़ मेरे साथ वो मत करना मुझे बहुत दर्द होगा। मैंने कहा- डरो मत दीदी मैं बिल्कुल दर्द नहीं करूँगा। मगर वो मान ही नहीं रही थी। तो मैंने उसको कहा कि क्या तुम मेरे इस हथियार को अपने मुंह में ले सकती हो? उसने पहले तो मना किया पर फ़िर मेरे बार-बार प्लीज़ कहने पर वो मान गई। अब वो मेरे लण्ड को चूस रही थी और मानो मैं जन्नत में था। उससे खूबसूरत लड़की को मैंने अपनी ज़िंदगी में नहीं देखा था और वो मेरा लण्ड चूस रही थी। थोड़ी देर के बाद वो पूरे मज़े के साथ चुसाई का काम करने लगी और उसे भी खूब मज़ा आ रहा था। फिर क्या था मैंने अपना सारा माल दीदी की मुँह में ही डाल दिया। दीदी को शायद ख़राब लगा और उन्हें उलटी आने लगी। मैं जल्दी से उनकी चूत पर झुक गया। मादक सी गंध आ रही थी। मैंने धीरे से अपने होंठ उनकी चूत पर रख दिये। वो तिलमिला उठी मैने अपनी जीभ उनकी चूत के होठों पर रख दी। वो सिसक पड़ी। होले-होले मैं उनकी चूत की पूरी दरार चाटने लगा। वो तिलमिलाने लगी, तड़फ़ने लगी। मैंने अपनी जीभ की नोक उनकी चूत के छेद मे डाली और अन्दर तक ले गया। वो तड़फ़ती रही। मैं जोर-जोर से चूत रगड़ने लगा। उनकी सिसकियां बढ़ने लगी। अब वो सारे बहाने छोड़ कर दोनों हाथो से मेरे सर को अपनी चूत पर दबाने लगी। तभी वो काँपने लगी और उनकी चूत ने पानी छोड़ दिया और मैं उसका सारा पानी पी गया। मैंने देखा कि वो हांफ रही है ओर मेरी तरफ़ देख रही है, मैंने उनके कान के पास जाकर फुसफुसा के कहा- दीदी अब बोलो तुम्हे कैसा लगा? दीदी ने आँख खोली और गहरी साँस ली। मैं उनके ऊपर से नीचे आ गया, दीदी तुंरत बिस्तर पर से नीचे आ गयी। अब दीदी ने मुझे बेड पर लिटा दिया और मेरे ऊपर चढ़ कर लेट गई और मुस्कराया…उसने मुझे चूमना चालू कर दिया। एक हाथ नीचे ला कर मेरा मुरझाया हुआ लण्ड पकड़ लिया और उसे हिलाने लगी...लण्ड ने फिर से अंगडाई ली और जाग उठा. दीदी अपने हाथों में भर लिया और धीरे-धीरे मुठ मारने लगी। कुछ ही देर में मेरा लण्ड चोदने के लिए तैयार था। दीदी मेरे ऊपर लेट गयी, अपनी दोनों टांगे फैला दी, लण्ड का स्पर्श चूत के आस-पास लग रहा था। मैंने उनके होंट अपने होटों में दबा लिए। हम दोनों अपने आप को हिला कर लण्ड और चूत को सही जगह पर लेने की कोशिश कर रहे थे। उसने अपने दोनों हाथों से मुझे जकड़ लिया। मैंने अपनी जीभ उनके मुंह में घुसा दी। अचानक मेरे अन्दर आनंद की तीखी मीठी लहर दौड़ पड़ी। मेरा लण्ड एक बार फिर मर्दानगी दिखने के लिए उतावला हो गया। मैंने बाजी पलटी और दीदी को नीचे लिटा दिया और कहा- दीदी एक बार असली खेल भी खेल लेते हैं फ़िर बहुत मज़ा आएगा। वो फ़िर भी घबरा रही थी लेकिन अबकी बार थोड़ा सा ही समझाने पर वो तुरंत मान गई और मैंने मुंह से ढेर सारा थूक निकाल कर अपने लण्ड और उनकी चूत पर लगाया और अपना काम धीरे-धीरे शुरू किया। उसे बहुत दर्द हो रहा था और मेर लण्ड उनकी चूत में रास्ता बनाता हुआ अन्दर घुस गया। उनके मुंह से एक मीठी सी सिसकारी निकल पड़ी…”संजू...अ आह हह हह हह…सी ई स स स ई एई...!” एक धक्का मारा मेरा आधा लण्ड उनकी चूत में चला गया। वोह चिल्लाई- आआआआअह ह्ह्ह्ह्ह्छ ह्ह्ह...,संजू...धीरे! उनके बाद मैंने धीरे-धीरे पूरा लण्ड उनकी चूत में पेल दिया फिर धीरे-धीरे धक्के मारने लगा, मैंने महसूस किया कि दर्द के मारे उनके आँखों से आंसू निकल आए थे। मैंने उनके गालो को चूम कर पूछा,”ज्यादा दर्द हो रहा है..?” उसने जवाब दिया “इस दर्द को पाने के लिए हर लड़की जवान होती है...इस दर्द को पाए बिना हर यौवन अधूरा है!”मैं उनके इस जवाब पे बस मुस्कुरा ही पाया क्योंकि मेरे पास बोलने को कुछ था ही नही...अब हम दोनों को बहुत मजा आ रहा था।वो मुझ में लिपटी हुई थी…और मैं उसे चूम रहा था…वो मेरे नीचे थी और अपने पैरों को मेरे कमर के इर्द गिर्द लपेटे हुए थी मानो कोई सर्पिनी चंदन के पेड़ को अपने कुंडली से कसी हो...अब मैंने धीरे-धीरे अपनी रफ़्तार तेज कर दी…पूरे केबिन में मादक माहौल था...हमारी सिसकारियां ज़हाज के इस केबिन में ऐसे गूंज रही थी मानो जलजला आने से पहले बदल गरज रहे हो…वो जलजला जल्द ही आया जब मैं अपने कमर की हरकतों की वजह से चरम सीमा पे पहुँचने वाला था...उधर दीदी भी मुझे बोल रही थी...”संजू प्लीज और जोर से..और जोर से...मेरे शरीर में अजीब सी हलचल हो रही है"…मैं समझ गया कि वो भी चरम सीमा पे है…इस पर मैंने अपनी रफ्तार काफी तेज कर दी। देखते ही देखते हम उफान पर थे और सैलाब बस फूटने ही वाला था कि मैंने अपना लण्ड बाहर निकला और मानो मेरे लण्ड से कोई झरना फ़ूट पड़ा हो.. मैं वापस उनके बाँहों में निढाल हो गया..बहुत देर बाद जब मैं उठा और देखा कि संपा दीदी की जांघों पर खून गिरा है तब मैं समझ गया कि वो अभी तक अन्छुई थी..मुझे ये देख कर अपने किस्मत पर गर्व हो रहा था और साथ ही साथ दीदी के बारे में सोचने लगा कि..वो ऐसी लड़की नहीं थी कि किसी को भी अपना शरीर सौंप दे..इतने दिनों से अकेले कोलकाता में रहने के बाद भी वो आज तक अन्छुई थी…मैंने पास में पड़े तौलिए को उठाया और उनके बूर के ऊपर लगे खून को साफ़ करने लगा।जब खून साफ़ हुआ तो मैंने एक बात गौर की और मुस्कुराने लगा। दीदी ने मुझ से पूछा कि”…तुम क्या सोच कर मुस्कुरा रहे हो ..?” मैंने उनके बिल्कुल बिना बाल के गुलाब की पंखुड़ियों सी योनि-लबों को चूम कर के बोला…” दीदी सच बताऊँ तो..मैंने तुम्हारी बूर अभी तक नहीं देखी थी..और साफ़ करते वक्त अभी ही देखा...!” और हम दोनों हंस पड़े...उस दिन से अगले 4 दिन तक आप समझ ही सकते है कि हमारे सैलाब में कितनी बार उफान आई होगी..जब तक हम अंडमान नहीं पहुँचे।

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